वाराणसी: आगामी लकोसभा चुनावों को देखते हुए बीजेपी अपनी जातिगत गणित को साधने में जुट गई है. हाल ही में हुए लोकसभा उप-चुनावों में गोरखपुर, फूलपुर और अब कैराना हाथ से निकलने के बाद बीजेपी लीडरशिप कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती है. इसी को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने वाराणसी के सारनाथ इलाके में पूर्वांचल युवा संगोष्ठी का आयोजन किया. गोष्ठी का विषय "समृद्धि की ओर बढ़ते भारत में हमारी भूमिका" जरूर था, लेकिन इसमें शामिल होने के लिए पूर्वांचल के यादव युवाओं को खासतौर से बुलाया गया था.
इस गोष्ठी में मुख्य अथिति के रूप में यूपी बीजेपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल मौजूद थे. इस गोष्ठी में यादव युवाओं तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में किस तरह देश सभी को साथ लेकर तरक्की कर रहा है, यह संदेश पहुंचाने की कोशिश की गई.
लोकसभा चुनावों को देखते हुए वाराणसी और आसपास के जिलों में दलित, पिछड़ा और मुस्लिम वोटबैंक बीजेपी के लिए बहुत मायने रखता है. साल 2014 के चुनावों में बीजेपी ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग के जरिए मायावती के बड़े वोटबैंक को अपने पाले में कर लिया था. अब बारी है खासतौर से यादव वोटर को अपने पक्ष में खड़ा करने की.
सवालों से बचते रहे सुनील बंसल
कार्यक्रम के बाद सुनील बंसल का सामना जब मीडिया से हुआ तो वे सवालों से बचते रहे. उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण विचार मंच का कार्यक्रम था, उसी में भाग लेने आए हैं. उन्होंने कहा कि किस तरह मोदी जी के नेतृत्व में देश और योगी जी के नेतृत्व में प्रदेश बदल रहा है, उसी को लेकर संवाद था.
यह पूछे जाने पर कि इस कार्यक्रम में पूर्वांचल के ज्यादातर यादव युवाओं को बुलाया गया है, सुनील बंसल ने इस सवाल से बचते हुए कहा कि श्रीकृष्ण विचार मंच का कार्यक्रम था और सभी युवाओं को बुलाया गया है. वे लोकसभा चुनाव 2019 के चुनावों के सवाल पर कुछ न बोलते हुए आगे बढ़ गए.
लक्ष्मण आचार्य ने स्वीकारा आए हैं यादव युवा
कार्यक्रम के बारे में पूछे जाने पर बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष लक्ष्मण आचार्य ने इस तथ्य को स्वीकारा कि इस सम्मलेन में भाग लेने के लिए पूर्वांचल के यादव युवाओं ने बड़ी संख्या में भागीदारी की है.
उन्होंने मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि यादव समाज में वंशवाद की राजनीति को लेकर बहुत आक्रोश है. वंशवाद और कुनबे की राजनीति देश के विकास में रोड़ा है. उन्होंने कहा कि वैचारिक गोष्ठी का आयोजन डॉ शोभनाथ यादव की तरफ से हुआ था, जिसमें भाग लेने पार्टी के वरिष्ठ नेता सुनील बंसल भी आये थे.
उन्होंने बताया कि गोष्ठी का विषय समृद्धि की ओर बढ़ता भारत था, जिस पर काफी सार्थक चर्चा हुई. उन्होंने इसे एक अच्छी पहल बताया और कहा कि युवाओं की सदी है, देश आगे बढ़ रहा है, इसमें हमारी भी भूमिका भी सकारात्मक होनी चाहिए.
उन्होंने श्रीकृष्ण द्वारा गीता में कहे गए श्लोक को दोहराया लेकिन बात अधूरी छोड़ दी. राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर भी लक्ष्मण आचार्य फिर कभी बात होगी कहकर आगे बढ़ गए.
इलाकाई यादवों के आक्रोश को भुनाने की कोशिश
बीजेपी के सूत्रों के मुताबिक़ सूबे में जब-जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी है, मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने केवल एक क्षेत्र के यादवों का विकास किया है. इसके चलते सूबे के अन्य क्षेत्र के यादव और उनकी कई उप-जातियों में मुलायम कुनबे को लेकर नाराजगी है.
उनका मानना है कि मुलायम सिंह ने इटावा, मैनपुरी और इनके आसपास के इलाकों के यादवों को न केवल पार्टी में ऊंचे पदों पर बिठाया बल्कि सरकारी नौकरियों में भी उन्हें ही प्राथमिकता दी है. लेकिन वे अन्य इलाकों के यादव समाज और उनकी उप-जातियों तक विकास का लाभ नहीं पहुंचा सके.
बीजेपी ने नेताओं का मानना है कि पार्टी अगर यह संदेश पूर्वांचल के यादवों को देने में सफल होती है तो आने वाले चुनावों में पार्टी को बड़ा फायदा पहुंच सकता है.
प्रधानमंत्री ने भी इस तरह दिया था यादवों को संदेश
साल 2017 विधानसभा चुनावों के समय प्रचार के लिए पीएम नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में तीन दिन तक रुके थे. इन तीन दिनों में उनका गढ़वा घाट स्थित मठ में जाना चर्चा का विषय बना रहा. पीएम मोदी यूपी के यादवों का गढ़ माने जाने वाले गढ़वा घाट आश्रम पर विशेष तौर पर गए थे. यहां उन्होंने गायों को चारा खिलाया और मंदिर में शीश नवाया था. पीएम का इस आश्रम में आना एक राजनितिक रणनीति का हिस्सा था, जिसके लिए पहले से ही तैयारियां कर ली गईं थीं.
पीएम के वाराणसी पहुंचने से पहले ही बीजेपी के यादव सांसद भूपेंद्र यादव को आश्रम भेजा गया था. इस आश्रम से मुलायम सिंह के छोटे भाई और सपा नेता शिवपाल यादव का ख़ास जुड़ाव रहा है और उनकी इस आश्रम पर अच्छी पकड़ भी मानी जाती है. इस आश्रम में मुलायम सिंह यादव से लेकर सपा के कई दिग्गज आकर पीठ के प्रमुख महंत स्वामी शरणानंद से आशीर्वाद लेते रहे हैं. गढ़वा घाट आश्रम पहुंच कर पीएम मोदी ने यह संदेश देने की कोशिश की थी कि यादवों की अपनी माने जाने वाली अखिलेश सरकार में केवल एक सीमित क्षेत्र के यादवों का ही विकास हुआ जबकि बीजेपी का समर्थन करने वाले यादव समाज को उपेक्षित किया गया है.
बता दें कि केवल वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में ही यादव वोटरों की संख्या लगभग पौने दो लाख की है. साथ ही वाराणसी और आसपास की सीटों पर पिछले तीन दशक से जातीय समीकरण चुनावों के नतीजे प्रभावित करते रहे हैं. जातीयता हावी होने के चलते विकास और बेहतरी के दावे करने वाली पार्टियां भी इस समीकरण को नहीं तोड़ पाती हैं. इसलिए अब बीजेपी ने एक सोची समझी रणनीति के तहत अपना पूरा ध्यान इस ओर लगा रखा है कि भी है कि किस तरह अलग-अलग जातियों के वोटरों को अपने पक्ष में किया जाए. गुरुवार को हुई पूर्वांचल युवा गोष्ठी में बड़ी संख्या में यादव युवाओं को बुलाकर उन्हें मुलायम और अखिलेश की उपेक्षा का ध्यान दिलाना, बीजेपी की इसी रणनीति की ओर इशारा कर रहा है.