नई दिल्ली: क्या गठबंधन को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी में बात बन गयी है? लखनऊ से लेकर दिल्ली तक अटकलों का बाज़ार गर्म है. जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं. पिछले दो दिनों से सोशल मीडिया में दोनों पार्टियों के समझौते को लेकर तरह-तरह की ख़बरें आ रही हैं. व्हाट्सऐप मैसेज में तो सीटों का बंटवारा भी हो गया. वाट्सएप मैसेज के मुताबिक कांग्रेस 78, राष्ट्रीय लोक दल 22 और बाकी 303 सीटों पर समाजवादी पार्टी चुनाव लड़ेगी. आपको बता दें कि यूपी में विधानसभा में 403 सीटें हैं.



एक-दूसरे को बधाई देने लगे नेता और कार्यकर्ता


गठबंधन की खबर फैलते ही लखनऊ के कांग्रेस ऑफिस में नेताओं चहल पहल बढ़ गयी. नेता और कार्यकर्ता एक दूसरे को बधाई देने लगे. सबके मोबाईल फोन घनघनाने लगे. पार्टी दफ्तर में मौजूद तीन विधायक तो फूले नहीं समा रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे चुनाव से पहले ही वे जीत गए हों.


इनमें से एक तो ऐसे हैं जो तीसरी बार एमएलए बने हैं. उनके बगल में खड़े दूसरे नेता ने कहा "आप मंत्री तो बनेंगे ही, तो फिर समझिये मेरे भी अच्छे दिन आ जाएंगे." वैसे भी यूपी में कांग्रेस 27 साल से सत्ता से बाहर है. इन्तजार में पार्टी नेताओं की एक पीढी ही बुजुर्ग हो गयी है. दिल्ली में सरकार थी तो लाज बची थी. समाजवादी पार्टी से समझौते को लेकर कांग्रेस के नेताओं के पांव ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे. कुछ ने तो ये खबर तक फैला दी कि मुलायम सिंह किसी भी वक्त गठबंधन का एलान कर सकते हैं.


''अगर गठबंधन हुआ तो जीतेंगे 300 से अधिक सीटें''


"समाजवादी पार्टी तो अपने दम पर फिर सरकार बनाएगी, लेकिन अगर गठबंधन हो गया तो फिर हम 300 से भी अधिक सीटें जीत लेंगे." पिछले महीने भर में ये बात अखिलेश यादव कई बार कह चुके हैं. जब भी कांग्रेस से चुनावी तालमेल पर उनसे सवाल होता है. उनका यही जवाब होता है. कांग्रेस के नेताओं को अचानक अखिलेश यादव बड़े अच्छे लगने लगे हैं. ख़ास तौर से वे जो अभी विधायक हैं.


समाजवादी पार्टी से गठबंधन की खबर ऐसी फ़ैली कि कांग्रेस के नेताओं को डैमेज कंट्रोल में जुटना पड़ा. पहले यूपी के प्रभारी ग़ुलाम नवी आज़ाद और फिर खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर. राज बब्बर ने तो सैकड़ों कांग्रेस नेताओं को एसएमएस और व्हाट्सऐप मैसेज भेजे और ये बताया कि ये सब बस अफवाह है और विरोधियों की साजिश है.



क्या चीजें हवा में फाइनल होती हैं ?


चौधरी साहेब भी हैरान और परेशान हो गए. ना बात हुई ना मुलाक़ात हुई और आरएलडी को 22 सीटें मिल गयी. अजीत सिंह की समझ में ही नहीं आ रहा है कि आखिर ये खबर कहां से फ़ैली. हमसे उन्होंने कहा "ये कौन बता रहा है कि हमने समझौता कर लिया है. किसने हमारे लिए 22 सीटें तय कर ली, क्या हवा में चीजें फाइनल होती हैं."


यूपी में कांग्रेस पार्टी के नेताओं का एक गुट समाजवादी पार्टी से हाथ मिलाने को बेकरार है. ये ऐसे नेता हैं जिनके पहले नेताजी से और अब अखिलेश से जुगाड़ू रिश्ते हैं. उन्हें लगता है अगर साइकिल को पंजे ने थाम लिया तो फिर बल्ले ही बल्ले है.


कांग्रेस से समझौते को तैयार नहीं थे अखिलेश यादव


शुरुआत में खुद अखिलेश यादव भी कांग्रेस से समझौते को तैयार नहीं थे. वे तो प्रशांत किशोर से भी मिलने को तैयार नहीं थे, एक बार तो पीके को लखनऊ से बैरंग लौटना पड़ा था. कुछ दिनों बाद प्रशांत फिर लखनऊ आये, पहले मुलायम से मिले और फिर शिवपाल यादव से. नेताजी के कहने पर अखिलेश से उनके घर पर पीके की भेंट हुई. इस बात को महीना हो गया है. लेकिन बात इसके आगे रत्ती भर भी नहीं बढ़ी है.


अखिलेश यादव, शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव, आज़म खान. कांग्रेस से चुनावी तालमेल को लेकर सबके एक ही सुर है. "फैसला नेताजी करेंगे." लेकिन जो नेताजी को जानते हैं, वे कहते हैं "उन्हें समझ लिया तो फिर भगवान ना बन जाएंगे." वैसे मुलायम सिंह की राजनीति तो यही कहती है. वे कब किसके साथ हो जाएं और कब किसे गुड बॉय कह दें. किसी को नहीं पता. हरकिशन सिंह सुरजीत, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी से लेकर नितीश कुमार. इन सबके साथ ऐसा हो चुका है.



शिवपाल यादव भी कांग्रेस से समझौते के हक़ में नहीं


फैसला नेताजी को करना है, लेकिन कांग्रेस से उनकी चिढ को दुनिया जानती है. वे मंच से पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक की तारीफ़ कर चुके है. एक बार तो अखिलेश को फटकारते हुए मुलायम ने कहा था "आडवाणी जी कभी झूठ नहीं बोलते, उन्होंने मुझे संसद में कहा यूपी में क़ानून व्यवस्था बहुत खराब है."


नेताजी के भतीजे के बेटे और सांसद तेजप्रताप की सगाई में खुद मोदी उनके गाँव सैफई गए थे. दिल्ली से लेकर लखनऊ तक सब जानते हैं नेताजी के बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं से हमेशा ही अच्छे रिश्ते रहे हैं. सोनिया गांधी को लेकर मुलायम सिंह के मन में क्या है. ये किसको नहीं पता है. शिवपाल यादव भी कांग्रेस से समझौते के हक़ में नहीं है.


नेताजी को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहती कांग्रेस पार्टी


वैसे सच तो यही है कि गठबंधन को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच कोई बातचीत तो छोड़िये, पहल भी शुरू नहीं हुई है. सब हवा में ही है. वैसे भी नेताजी को लेकर कांग्रेस पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. ग़ुलाम नवी आज़ाद से बात हुई तो बोले "हम तो पार्टी की यात्रा पर है. कौन किस से बात कर रहा है? बिहार में नेताजी ने क्या किया ये सब आप जानते हो, जब तक वे लोग सीरियस नहीं होते किस बात का समझौता."


बस अखिलेश यादव के एक बयान से चंडूखाने की बात खबर बनने लगी. जब-जब अखिलेश कहते हैं, "गठबंधन के बाद हम तीन सौ सीटें जीत लेंगे." दोनों ही पार्टियों के नेता गठबंधन की ज़ुबानी कसरत करने लगते हैं. ये बात जरूर है राहुल गांधी और अखिलेश यादव दोनों एक दूसरे के लिए 'अच्छे लड़के' बने हुए है.