पटना: क्या बिहार के राज्यपाल की भूमिका राज्य की राजनीति में कठपुतली की है? बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) की मेन्स परीक्षा में पूछे गए इस सवाल को लेकर सरकार और विपक्ष दोनों ही आयोग पर सवाल उठा रहे हैं. यह प्रश्न संवैधानिक पद से जुड़ा हुआ है, ऐसे में सरकार ने भी सवाल बनाने वालों पर उंगली उठा दी. जल संसाधन मंत्री संजय झा ने कहा कि ऐसा प्रश्न नहीं आना चाहिए. उन्होंने कहा कि बीपीएससी में सरकार इंटफेयर नहीं करती है. वो एक आटोनॉमस बॉडी है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी पूछ लीजिएगा. यह प्रश्न बिल्कुल नहीं होना चाहिए.
जबकि शिक्षा मंत्री कृष्णनन्दन वर्मा ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति के बारे में इस तरह की बात बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि ये मामला उनके विभाग से जुड़ा हुआ नहीं है. इसके अलावा मुख्य विपक्षी पार्टी आरजेडी के नेता भाई वीरेंद्र ने कहा कि जो लोग भी इस तरह का सवाल तैयार कर रहे हैं वो बिल्कुल अनपढ़ हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मांग की कि वे इसका संज्ञान लें और जिसने इसतरह का प्रश्न सेट किया है उसे बाहर करने का काम करें.
बिहार में राज्यपाल की भूमिका पर उठते रहे हैं सवाल
हालांकि कई ऐसे मौके आए जब बिहार में राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं. खासतौर पर जब अल्पमत की सरकार बनाने का मामला आया हो. साल 2000 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बहुमत नहीं होते हुए भी सरकार बनाने का मौका दिया गया था. तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार थी.
इसके बाद 2005 के फरवरी महीने में मनमोहन सिंह सरकार पर विधानसभा को भंग किए जाने का आरोप लगा था. उस समय किसी को बहुमत नहीं मिलने का और सरकार नहीं बनाए जाने का बहाना लगाकर लालू प्रसाद के दबाव में आधी रात को विधान सभा भंग कर दिया गया था. कई बार कानून व्यवस्था खराब होने के आरोप में राज्यपाल की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति शासन भी लगाया गया.