पटना: मुजफ्फरपुर कांड में जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ती जा रही है, एक से बढ़कर एक रसूखदारों के नाम सामने आ रहे हैं. अब इनमें और भी कई बड़े नाम शामिल हो सकते हैं क्योंकि अब इस केस की जांच सीबीआई के हाथों में आ चुकी है. लेकिन टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की रिपोर्ट के बाद समाज कल्याण विभाग की एफआईआर के बाद जो पहली गिरफ्तारी हुई वो ब्रजेश ठाकुर की है. ब्रजेश ठाकुर, जिसके एनजीओ सेवा संकल्प एवं विकास समिति को बालिका गृह चलाने का जिम्मा बिहार सरकार ने सौंपा था.


ब्रजेश ठाकुर के पिता ने शुरू किया था 'प्रात: कमल' नाम का अखबार


ब्रजेश ठाकुर रहने वाला मुजफ्फरपुर का ही है. इसके पिता राधामोहन ठाकुर ने 1982 में मुजफ्फरपुर से एक हिंदी अखबार शुरू किया था. इस अखबार का नाम 'प्रात: कमल' था. राधामोहन ठाकुर की पत्रकारों के बीच अच्छी पहुंच थी. बिहार में छोटे अखबारों को शुरू करने वाले शुरुआती नामों में से एक नाम राधामोहन ठाकुर का भी था. राधामोहन ठाकुर ने खूब पैसे बनाए और फिर उसे रियल स्टेट में लगा दिया. वो रियल स्टेट का शुरुआती दौर था. जब पिता की मौत हो गई तो विरासत संभालने का जिम्मा ब्रजेश ठाकुर के कंधों पर आया. पैसे पहले से ही थे और पिता का रसूख भी था. इसलिए ब्रजेश के हाथ में कमान आते ही उसने रियल स्टेट के कारोबार से एक कदम आगे बढ़कर राजनीति में हाथ आजमाना शुरू कर दिया.


पहली बार कुढ़नी से लड़ा विधानसभा का चुनाव


1993 में जब बिहार के चर्चित नेता आनंद मोहन ने जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बिहार पीपल्स पार्टी बनाई तो ब्रजेश ठाकुर उसमें शामिल हो गया. 1995 में बिहार में विधानसभा के चुनाव हुए, तो ब्रजेश ठाकुर मुजफ्फरपुर के कुढ़नी विधानसभा सीट से बिहार पीपल्स पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ गया, लेकिन उसे जीत नहीं मिली.


2000 के विधानसभा चुनाव में भी ब्रजेश ठाकुर एक बार फिर से कुढ़नी से ही चुनाव लड़ने उतरा. ब्रजेश ने जमकर चुनाव प्रचार किया और खूब पैसे खर्च किए, लेकिन वो इस बार भी जीत नहीं सका. हालांकि इस चुनाव में ब्रजेश दूसरे नंबर पर आ गया था. 2005 में ब्रजेश ठाकुर फिर से चुनाव लड़ता, उससे पहले ही 2004 में बिहार पीपल्स पार्टी के मुखिया आनंद मोहन ने अपनी पार्टी का कांग्रेस के साथ विलय कर दिया. इसके बाद ब्रजेश ठाकुर के चुनाव लड़ने के रास्ते बंद हो गए.


लेकिन ब्रजेश ठाकुर की आनंद मोहन से नज़दीकी बरकरार रही. इसके साथ ही आरजेडी और जेडीयू के नेताओं के साथ भी ब्रजेश ठाकुर का उठना-बैठना जारी रहा. इसी बीच ब्रजेश ठाकुर ने अपने अखबार प्रात: कमल का मालिक अपने बेटे राहुल आनंद को बना दिया. कागज़ात के मुताबिक ब्रजेश खुद उस अखबार में सिर्फ पत्रकार है.


2012 में ब्रजेश ठाकुर ने शुरू किया अंग्रेजी अखबार


साल 2012 में ब्रजेश ठाकुर ने एक अंग्रेजी का अखबार भी शुरू कर दिया. इस अखबार का नाम है News Next, जिसकी एडिटर इन चीफ ब्रजेश ठाकुर की बेटी निकिता आनंद हैं. इसके अगले ही साल 2013 में ब्रजेश ठाकुर ने अपना एनजीओ शुरू किया, जिसका नाम सेवा संकल्प एवं विकास समिति है. इस एनजीओ के बैनर तले ब्रजेश ठाकुर ने बालिका गृह की शुरुआत कर दी. इस बीच उसने ऊर्दू का भी एक अखबार लॉन्च कर दिया, जिसका नाम हालात-ए-बिहार है. अब तीनों अखबार प्रात: कमल, News Next और हालात-ए-बिहार के साथ ही बालिका गृह का भी संचालन एक ही बिल्डिंग से होने लगा, जो ब्रजेश ठाकुर के घर से सटी हुई है. तीनों ही अखबारों को बिहार सरकार की ओर से विज्ञापन मिलते हैं और अब भी तीनों ही अखबार हर रोज छपते हैं.


ब्रजेश के सियासी रसूख का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रात: कमल जैसे अखबार को भारी सरकारी विज्ञापन मिलने लगे और उसे बिहार सरकार की ओर से मान्यता प्राप्त पत्रकार का तमगा भी मिल गया.


ब्रजेश ठाकुर ने अपने बेटे राहुल आनंद को 2016 में जिला परिषद के चुनाव में सकरा ब्लॉक से मैदान में उतारा. चुनाव हुआ और राहुल आनंद को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद से लगातार ब्रजेश ठाकुर सेवा संकल्प एवं विकास समिति एनजीओ चलाता रहा, जिसमें बालिका गृह भी चलता था.


बालिका गृह कांड सामने आने के बाद ब्रजेश ठाकुर और उनके परिवार की तरफ़ से लगातार दावा किया जा रहा है कि ब्रजेश ठाकुर का इस एनजीओ से कोई लेना-देना ही नहीं था. जबकि मुजफ्फरपुर बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक देवेश शर्मा के मुताबिक़ एनजीओ के प्रतिनिधि के तौर पर हमेशा ब्रजेश ठाकुर ने ही उनसे मुलाक़ात की थी.


एबीपी न्यूज़ के पास मौजूद एक्स्क्लूसिव जानकारी के मुताबिक़ एनजीओ का सचिव रमेश कुमार नाम का कोई व्यक्ति है जिसे आज तक किसी ने नहीं देखा लेकिन ख़ास बात ये है कि एनजीओ की तरफ़ से जब भी कोई पत्राचार होता था तो उस पर रमेश कुमार के ही दस्तखत होते थे. लेकिन जैसे ही ब्रजेश ठाकुर गिरफ़्तार हुए एनजीओ के सचिव रमेश कुमार के हस्ताक्षर भी बदल गए. ऐसे में ये सवाल उठना लाज़िमी है कि क्या ब्रजेश ठाकुर ही रमेश कुमार के फर्ज़ी नाम पर एनजीओ का सचिव बना बैठा था, एबीपी न्यूज़ ने ये सवाल समाज कल्याण विभाग से जाननी चाही लेकिन कोई भी जवाब नहीं मिला.


इस एनजीओ को सिर्फ़ बालिका गृह ही नहीं बल्कि और भी कई काम बिहार सरकार ने सौंपे थे. सेवा संकल्प एवं विकास समिति एनजीओ को बालिका गृह, वृद्धाश्रम, अल्पावास गृह, स्वाधार गृह और खुला आश्रम चलाने के लिए बिहार सरकार हर साल 1 करोड़ रुपए देती थी लेकिन बालिका गृह कांड सामने आने के बाद ये सभी गृह बंद करा दिए गए हैं.


बाल संरक्षण इकाई से मिली जानकारी के मुताबिक़


• महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने के लिए स्वाधार गृह चलाया जाता था, 20 मार्च तक यहां 11 महिलाएं और उनके चार बच्चे मौजूद थे. बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक देवेश शर्मा की जानकारी में इस एवज़ में एनजीओ को कोई भुगतान नहीं किया गया है.


• 0-18 साल तक के 25 बच्चों के लिए खुला आश्रम चलाया जाता था जिसमें ग़रीब-अनाथ और भीख मांगने वाले बच्चों के रहने, खाने-पीने की व्यवस्था थी. ये खुला आश्रम 25 बच्चों के लिए स्वीकृत था लेकिन अधिकतर विजिट में वहां सिर्फ़ 13-14 बच्चों को ही पाया गया था. इसे चलाने के लिए एनजीओ को सालाना 19 लाख रुपए दिए जाते थे.


• 60 साल से ज़्यादा की उम्र वालों के लिए एक वृद्धाश्रम चलाती थी NGO जो 50 वृद्धों के लिए स्वीकृत था लेकिन अधिकतर 12-15 वृद्ध ही रहा करते थे, इसके मद में एनजीओ को सालाना लगभग 18 लाख रुपए दिए जाते थे.


• 18 साल से ज़्यादा उम्र की महिलाओं के लिए अल्पावास गृह चलाया जाता था, जिसकी क्षमता 25 महिलाओं की थी, इसके एवज़ में एनजीओ को सालाना क़रीब 19 लाख रुपए मिलते थे.


• 6-18 साल की उम्र की बच्चियों के लिए बालिका गृह का संचालन होता था जिसमें यौन शोषण का मामला सामने आया है. ये बालिका गृह 50 बच्चियों के लिए स्वीकृत था, घटना सामने आने के वक़्त 44 बच्चियां बालिका गृह में थीं. बालिका गृह चलाने के लिए एनजीओ को सालाना 40-45 लाख रुपए बिहार सरकार देती थी.