लखनऊ: उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण पर दिए फैसले की तारीफ की. मायावती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत योग्य है. कोर्ट ने ना तो पहले पाबंदी लगाई थी और ना ही अब लगाई है. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि सरकारें चाहें तो इन वर्ग के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण दे सकती हैं.


उन्होंने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के पूरे फैसले को देखने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी. मीडिया में जो अभी तक समाचार आ रहे हैं उसके मुताबिक देश में एससी-एसटी वर्ग के सरकारी कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्वागत के योग्य है. कोर्ट ने ना तो पाबंदी पहले लगाई थी और ना ही अब लगाई है. कोर्ट ने साफ तौर पर कहा है कि सरकारें चाहें तो इन वर्ग के कर्मचारियों को प्रमेशन में आरक्षण दे सकती हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने 2006 के आंकड़े जुटाने के फैसले को भी खत्म कर दिया है.


आपको बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) वाले लोगों को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए उनके पिछड़ेपन पर आंकड़े इकठ्ठा करने की जरूरत नहीं है.


प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने केंद्र द्वारा अदालत के साल 2006 में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए दाखिल याचिका पर यह बात कही. अदालत ने अपने पहले फैसले में एससी/एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले आंकड़े मुहैया कराने के लिए कहा था.


शीर्ष अदालत ने अपने 2006 के फैसले में कहा था, "राज्य को पदोन्नति में आरक्षण के प्रावधान करने से पहले प्रत्येक मामले में अनिवार्य कारणों यानी की पिछड़ापन, प्रतिनिधित्व की अपर्याप्तता और समग्र प्रशासनिक दक्षता की स्थिति को दिखाना होगा."


प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायामूर्ति रोहिंटन फली नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा की पीठ ने एससी/एसटी के भीतर क्रीमी लेयर की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए पहले कहा था, "हो सकता है जो कुछ लोग (एससी/एसटी के भीतर आने वाले) इस दाग से उबर चुके हो लेकिन यह समुदाय इसका अभी भी सामना कर रहा है." पीठ ने 30 अगस्त को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.