लखनऊ. बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने प्रवासी श्रमिकों को रोजगार उपलब्ध कराने के मुद्दे पर केंद्र और यूपी सरकार को फिर घेरा है. उन्होंने कहा कि सरकार चीन से लौट रही कंपनियों के इंतजार में न रहे. सरकार को नसीहत देते हुये बसपा सुप्रमो ने कहा कि राज्य सरकार को अपने बूते आत्मनिर्भर बनना चाहिये.
ट्विटर पर बेहद सक्रिय रहने वाली मायावती ने सरकार पर निशाना साधते हुये कहा कि एमओयू साइन करने का छलावा फिर से शुरू हो गया है. बसपा अध्यक्ष ने चार ट्वीट किये और प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देने के लिये जमीन पर एमओयू को उतारने की बात कही.
मायावती ने ट्वीट के पहले हिस्से में कहा कि चीन छोड़कर आने वाली कंपनियों के भरोसे रहने से बेहतर है कि वह आत्म निर्भर बने. ट्वीट में उन्होंने कहा कि शेनजेन इकोनॉमिक जोन की सुविधाएं सड़क, आवास यहां कहां है. 'चीन छोड़कर भारत आने वाली कम्पनियों की प्रतीक्षा के बजाए केन्द्र व यूपी सरकार को अपने बूते आत्मनिर्भर बनने का प्रयास शुरू करना चाहिए क्योंकि शेनजेन इकोनोमिक जोन जैसी सड़क, पानी, बिजली आदि की फ्री आधारभूत सुविधा व श्रमिकों को कार्यस्थल के पास रहने की व्यवस्था आदि यहाँ कहाँ है'.
सरकार की गतिविधियों पर पैनी निगाह रखने वाली बसपा सुप्रीमो ने कहा कि सरकार को चाहिये कि यहां भारतीय उद्यमियों को शेनजेन जैसी सुविधाएं दी जाएं जिससे कि वे मजबूत हो सकें और हमारे श्रमिकों को रोजगार भी मिले. ट्वीट के इस हिस्से में उन्होंने लिखा 'किन्तु शेनजेन स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन जैसी सुविधायें भारतीय उद्यमियों को देकर उनका सदुपयोग उत्कृष्ट वस्तुओं के उत्पादन हेतु सुनिश्चित किया जाए तो उजड़े छोटे व मझोले उद्योग, पीड़ित श्रमिक वर्ग का हित व कल्याण तथा भारत को सही मायने में आत्मनिर्भर बनाना थोड़ा जरूर आसान हो जाए''.
एमओयू को बताया छलावा
इसके अलावा मायावती ने राज्य सरकार के एमओयू साइन करने पर सवाल उठाये. उन्होंने एमओयू को सरकार का छला अभियान तक बता दिया. अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा कि ''लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी व बदहाली में घर लौटे सर्वसमाज के लाखों श्रमिकों को जरूरी प्रभावी मदद पहुँचाने के बजाय यूपी में एमओयू हस्ताक्षर व घोषणाओं आदि द्वारा छलावा अभियान एक बार फिर शुरू हो गया है. अति-दुःखद। जनहित के ठोस उपायों के बिना समस्या और विकराल बन जाएगी''.
यही नहीं बसपा मुखिया ने कहा कि ''अच्छा होता सरकार नया एमओयू करने व फोटो छपवाने से पहले यह बताती कि पिछले वर्षों में साइन किए गए इसी प्रकार के अनेकों एमओयू का क्या हुआ? एमओयू केवल जनता को वरगलाने व फोटो के लिए नहीं हो तो बेहतर है क्योंकि लाखों श्रमिकों को जीने के लिए लोकल स्तर पर रोजगार की प्रतीक्षा है.