नई दिल्ली: एक बार फिर से यह सवाल उठने लगा है कि क्या विपक्षी दलों में फूट उभर रही है? दरअसल, 10 सितंबर को पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ कांग्रेस ने भारत बंद बुलाया. कांग्रेस ने दावा किया कि 21 दल इस बंद में शामिल हुए. लेकिन इस बंद से एक प्रमुख विपक्षी दल मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) दूर रही. यही नहीं मायावती ने बढ़ती पेट्रोल डीजल की कीमतों को लेकर मोदी सरकार को घेरने के साथ कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा किया.


मायावती ने कहा, "पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी व महंगाई के विरुद्ध हुए भारत बंद की स्थिति उत्पन्न होने के लिए हम बीजेपी और कांग्रेस दोनों को ही बराबर की जिम्मेवार मानते हैं. कांग्रेस ने ही यूपीए-2 के शासनकाल में पेट्रोल को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने का फैसला किया था और उसके बाद केंद्र की सत्ता में आई बीजेपी सरकार भी उसी आर्थिक नीति को आगे बढ़ाती रही.''


मायावती के इस बयान के बाद कांग्रेस सांसत में है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा, ''जब विपक्षी दलों को एकजुट होने की जरूरत है, ऐसे समय में ये बयान आम लोगों में गलत संदेश देता है. सत्तारूढ़ दल भी विपक्षी दलों की एकजुटता पर सवाल उठाते रहे हैं. उन्हें मजबूती मिलेगी.'' उन्होंने कहा कि मायावती के बयान से पार्टी के नेता खुश नहीं हैं और वे उनके इरादों पर संदेह जता रहे हैं.


मायावती ने बीजेपी और कांग्रेस को एक तराजू पर तौला, दोनों से दूरियां बनाई


पार्टी के वरिष्ठ नेता ने दावा किया कि हो सकता है कि मायावती मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में अधिक सीटों की मांग के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों का जिक्र कर दबाव बना रही हों.


आपको बता दें कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए मायावती और अखिलेश यादव दोनों समाजवादी पार्टी-बीएसपी गठबंधन के लिए एलान कर चुके हैं. हालांकि दोनों दल कांग्रेस को भी साथ लाने की बात कर चुकी है.


विपक्षी दलों की कोशिश है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल (महागठबंधन) साथ चुनाव लड़े. इस फॉर्मूले से बीजेपी को कड़ी चुनौती पेश की जा सकती है. लेकिन मायावती के ताजा हमलों के बाद विपक्षी एकता पर प्रश्न चिह्न लगते दिख रहे हैं.