Bulandshahr Violence: आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 500 किलोमीटर दूर बुलंदशहर जिले का स्याना इलाका सोमवार की दोपहर से ही नफरत की आग में रह रहकर झुलसता-जलता रहा. इस हिंसा की आग इतनी भयानक थी कि उसे बुझाने में जुटे एक बाहदुर इंस्पेक्टर को अपनी तक जान गंवानी पड़ी. दंगाइयों ने उन्हें सरेआम मारा-पीटा और आखिर में गोली मार दी, जिससे मौके पर ही इंस्पेक्टर ने दम तोड़ दिया. पुलिस की कार्रवाई में प्रदर्शनकारियों में शरीक एक युवक भी मारा गया. अब सवाल है कि आखिर ऐसे क्या हालात क्यों बने, प्रशासन से कहां चूक हुई और मुख्यमंत्री इन हालात से कैसे निपट रहे थे?


एक पुलिस को अपनी जान क्यों गंवानी पड़ी और तब प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ को किस चीज़ की फिक्र पड़ी थी? अगर ये समझना चाहते हैं तो इसका अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि सीएम महोदय ने देर रात अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर क्या ट्वीट किए हैं.


बुलंदशहर हिंसा की आग में जल रहा था और उधर सीएम योगी आदित्यनाथ ट्विटर पर अपनी जनता से कुछ यूं मुखातिब होते हैं, ट्वीट करते हैं, ''आज गुरु श्री गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर परिसर स्थित भीम सरोवर पर छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री आदरणीय डॉ. रमन सिंह जी के साथ लाइट एवं साउंड सिस्टम के माध्यम से महायोगी गोरक्षनाथ जी के जीवन पर आधारित शो को देखा.''





इस ट्वीट से आप सीएम योगी की चिंता से वाकिफ हो गए. अब सवाल है कि क्या सीएम महोदय से ये नहीं पूछा जा सकता कि जब बुलंदशहर हिंसा की चपेट में था तब भी उन्होंने अपने तयशुदा कार्यक्रम में क्यों बदलाव नहीं किया. क्या एक पुलिस इंस्पेक्टर का मारा जाना सूबे के लिए सीएम के लिए कोई बड़ी घटना नहीं थी?


सीएम योगी के ट्वीट पर अनेक यूजर्स ने सवाल उठाए हैं.











एक बात ध्यान देने की है. जब से योगी आदित्यनाथ सीएम बने हैं, वो बीजेपी के स्टार प्रचारक की भूमिका में होते हैं. देश के किसी राज्य में चुनाव हो, उनकी धुआंधार रैलियां होती है. बीते कुछ हफ्ते से सीएम पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में जमकर जुटे हुए हैं. कभी छत्तीसगढ़ तो कभी मध्य प्रदेश और अब राजस्थान और तेलंगाना में देखे जाते हैं. गुजरात विधानसभा चुनाव में उनके जलवे का क्या पूछना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ ने गुजरात में सबसे अधिक रैलियां की थी. कर्नाटक में भी खूब रैलियां की.

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बीजेपी के प्रवक्ताओं की दलील है कि योगी अब ब्रांड बन चुके हैं. वे लोगों से सीधे कनेक्ट करते हैं और उनकी फ़ायरब्रांड नेता वाली छवि लोगों को लुभाती है और इसीलिए चुनावी रैलियों में उनकी डिमांड कुछ ज्यादा ही होती है.


लेकिन अफसोस की बात ये है कि जब से योगी सत्ता में आए हैं, सूबे में सांप्रदायिक हिंसा की संख्या बढ़ गई है. इसी साल मार्च में जारी केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 में यूपी में सांप्रदायिक हिंसा में 44 लोग मारे गए और 540 लोग जख्मी हुए. जबकि 2016 में सिर्फ 29 लोग मारे गए और 490 लोग ही ही घायल हुए. इसी तरह 2015 में 22 लोग मारे गए और 410 लोग जख्मी हुए.


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गृह मंत्रालय की रिपोर्ट कहती कि बीते सात साल में यूपी में 2013 में ही सांप्रदायिक हिंसा ज्यादा हुए, जिसमें 60 से ज्यादा लोग मारे गए. उसके बाद सबसे ज्यादा सांप्रदायिक हिंसा 2017 में हुई.