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बुलंदशहर हिंसा: ऐसा था शहीद इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह का जीवन, बहादुरी के थे चर्चे
सुबोध कुमार झांसी, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा में तैनात रहे और उनकी अंतिम पोस्टिंग बुलंदशहर के स्याना थाना में रही. कई जिलों में बदमाशों से लोहा लेने के उनके किस्से आज भी ताजा हैं.
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मेरठ: लंबा कद, इकहरा शरीर और चेहरे पर तावदार मूछें. उत्तर प्रदेश पुलिस के जांबाज इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की यह पहचान थी. एटा में पैदा हुए सुबोध कुमार ने 1994 में उत्तर प्रदेश पुलिस की नौकरी जॉइन की और उसके बाद यूपी के बुंदेलखंड से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक कई जिलों में उनकी तैनाती रही. हर जिला, हर थाने में उन्होंने बड़ी जांबाजी से नौकरी की. जनता से भी उनके ताल्लुकात बेहद अच्छे रहे.
सुबोध कुमार एटा जिले के जैथरा थाने के अंतर्गत आने वाले गांव परगंवा के रहने वाले थे. सिंघम जैसी फिल्म के दबंग इंस्पेक्टर के किरदार को तो लोगों ने बाद में देखा लेकिन सुबोध पहले से ही यूपी पुलिस के सिंघम थे और सिंघम स्टाइल में ही रहना और जीना उन्हें पसंद था. सुबोध कुमार झांसी, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा में तैनात रहे और उनकी अंतिम पोस्टिंग बुलंदशहर के स्याना थाना में रही. कई जिलों में बदमाशों से लोहा लेने के उनके किस्से आज भी ताजा है.
मथुरा में बदमाशों को दी थी टक्कर मथुरा में वृंदावन के प्रभारी निरीक्षक रहते हुए सुबोध कुमार की बदमाशों से मुठभेड़ हुई थी. तारीख थी 23 जनवरी 2016. बदमाशों से आमना सामना हुआ और दोनों ओर से ताबड़तोड़ फायरिंग हुई. मगर सुबोध कुमार ने हौसला बनाए रखा. वह खुद बदमाशों के बीच घिर गए थे मगर गोलियां बरसाते रहे. उसी दौरान एक गोली उनके हाथ में भी लगी थी. उस समय यह पुलिस मुठभेड़ अखबारों की सुर्खियां बनी थी.
2001 में सुबोध कुमार मेरठ के सरधना थाने में तैनात रहे. यहां के कुख्यात बदमाश सुरजी की उन दिनों अपराध जगत में तूती बोलती थी और वह यूपी पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. 3 जुलाई 2001 को पुलिस को मिली सूचना के बाद सुरजी को घेरा गया. नवादा गांव के जंगल में एक नलकूप पर सुरजी और उसका पूरा गैंग शरण लिए हुए था. एसपी देहात रहे ओंकार सिंह के नेतृत्व में पुलिस टीम ने घेराबंदी की और जब बदमाशों ने गोली चलानी शुरू की तो सुबोध कुमार और उनके साथियों ने भी बदमाशों के छक्के छुड़ा दिए. बदमाशों की एक गोली सुबोध कुमार की गर्दन को छूते हुए निकल गई. सुबोध घायल हुए लेकिन हौसला नहीं खोया. बाद में उन्हें जसवंत राय अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां उनका इलाज चला.
बिसाहड़ा कांड में जांच अधिकारी रहे थे सुबोध समाजवादी पार्टी की सरकार के बहुचर्चित बिसाहड़ा कांड में सुबोध जांच अधिकारी रहे थे. बिसाहड़ा में गोकशी के आरोप में मारे गए इकलाख की हत्या के 10 आरोपियों को उन्होंने दूसरे दिन ही गिरफ्तार किया था. उनकी कार्रवाई के बाद ही यह मामला सुर्खियों में आया और इस केस में भाजपा के नेताओं ने राजनीति शुरू कर दी. सुबोध के पिता रामप्रताप राठौर भी उत्तर प्रदेश पुलिस में थे. ट्रेन में बदमाशों से मुठभेड़ के दौरान वह शहीद हुए जिसके बाद मृतक आश्रित के तौर पर सुबोध कुमार राठौर को उनकी जगह पुलिस विभाग में नौकरी मिली थी.
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