Chhath Puja 2018: छठ महापर्व की धूम शुरू हो चुकी है. बिहार के लोग अलग-अलग शहरों से अपने-अपने घरों की और लौटने लगे हैं. दीवाली के छह दिन बाद छठ महापर्व मनाया जाता है. धीरे-धीरे देश के कई हिस्सों में इस त्योहार को अब धूमधाम से मनाया जाने लगा है. बिहार और उत्तर प्रदेश समेत भारत के कई राज्यों में मनाये जाने वाले इस पर्व का एक विशेष महत्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार छठ सूर्यवंशी राजाओं के मुख्यपर्वों में से एक माना जाता था. कहा जाता है कि एक समय मगध सम्राट जरासंध के एक पूर्वज को कुष्ठ रोग हो गया था. रोग से निजात पाने के लिए राज्य के ब्राह्मणों ने सूर्य देव की उपासना की थी. जिसके बाद राजा के पूर्वज को कुष्ठ रोग से छुटकारा मिल गया था.


माना जाता है कि छठ व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस पर्व को विधी-विधान के साथ करने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है. छठी मईया के उपासना से पहले साफ-सफाई और शुद्धता का खासा ख्याल रखा जाता है. इस पर्व में बनने वाले प्रसाद की शुद्धता का भी खासा ख्याल रखा जाता है.


कब होता है खड़ना का व्रत


छठ से दो दिन पहले चतुर्थी पर स्नानादि से निवृत्त होकर भोजन किया जाता है. इस भोजन को बनाने के लिए सेंधा नमक का उपयोग किया जाता है. नहाय-खाय के बाद अगले दिन शाम में खड़ना का व्रत होता है. व्रति इस दिन शाम को सूर्य देव के उपासना के बाद खीर का प्रसाद खाती है. जिसके बाद सभी लोगों को के बीच प्रसाद को बांटा जाता है.


खड़ना के बाद छठ के दिन व्रति लोग शाम को डूबते सूर्य का उपासना करती है. इस दौरान महिलाएं जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं. जिसके बाद अगले दिन सप्तवीं को उपवास करने वाले लोग उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत की तोड़ते हैं.


कैसे दिया जाता है अर्घ्य


व्रति खड़ना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद पारायण तक कुछ भी नहीं खाते हैं. अर्घ्य देने की भी एक विधि होती है. बांस के सूप में केला, अमरूद, संतरा सहित कई अन्य फल के साथ-साथ गन्ना, ठेकुआं और अन्य फलों को नए वस्त्र से ढंक कर घाट तक ले जाते हैं.


जल में खड़े होने के बाद दीप जलाकर सूप में रखा जाता है जिसके बाद सूप को व्रतियों के हाथ में दिया जाता जाता है. इस सूप के जरिए व्रति सूर्य की उपासना करते हैं. लोग तब तक पानी में खड़े रहते हैं जबतक सूर्य अस्त न हो जाए. वहीं दूसरे दिन भी ठीक यही विधि अपनाते हुए लोग सूर्य उदय के पहले से ही जल में खड़े होते हैं और सूर्य उगने के बाद ही जल से लोग निकलते हैं.


जल से निकलने के बाद लोग हवन करते हैं जिसके बाद वहां मौजूद लोगों के बीच प्रसाद बांटा जाता है. प्रसाद वितरण के बाद व्रत की समाप्ती हो जाती है.