खेती-किसानी में लागत के अनुपात में मुनाफे की न्यूनता हमेशा राष्ट्रीय चिंता के केंद्र में रही है. पिछले कुछ दशकों में जहां अन्य सेक्टर्स में लोगों की आमदनी में इजाफा हुआ, वहीं कृषि क्षेत्र में मायूसी छाई रही. यह मायूसी धान उत्पादक किसानों में रही. उपज की सही कीमत नहीं मिलने से धान के रकबे में गिरावट आने लगी. किसानों ने या तो अन्य फसलों की ओर रुख कर लिया, या फिर वे खेती से पलायन कर गए. देशभर में छाई इस हताशा से छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं था, लेकिन इसी बीच यहां का वातावरण एकदम बदल गया. सवा साल में ही धान छत्तीसगढ़ की आर्थिक धुरी बन गया. देशव्यापी आर्थिक मंदी के बीच जब छत्तीसगढ़ ने इसी फसल की बदौलत अपने बाजार को बूस्ट कर दिखाया, तब यह किसी चमत्कार से कम नहीं था.


किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य दिलाने के संकल्प के साथ छत्तीसगढ़ सरकार काम कर रही है. इसी क्रम में बीते वर्ष धान की कीमत बढ़ाकर 2500 रुपए प्रति क्विंटल कर दी गई थी. किसानों के कर्ज भी माफ किए गए थे. इन उपायों ने यहां के बाजार में जान फूंक दी थी. फौरी असर यह था कि यहां आटोमोबाइल समेत सभी सेक्टर्स में सालभर रौनक रही. यहां का उद्योग-व्यापार मंदी की मार से अछूता रहा. इन उपायों से कृषि क्षेत्र में भी दूरगामी परिणामों की उम्मीदें थीं, जो अभी से पूरी होती दिख रही हैं.


उम्मीदों के मुताबिक धान की खेती को लेकर प्रदेश के किसानों में नये उत्साह का संचार हुआ है. इस साल धान खरीदी के जो आंकड़े अब तक सामने आए हैं, उनमें इस उत्साह को देखा जा सकता है. पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 2.5 लाख टन से अधिक किसान अब तक धान बेच चुके हैं. राज्य निर्माण के बाद से अब तक इसी वर्ष सबसे बड़ी संख्या में किसानों ने धान बेचा है.


इस वर्ष 18 लाख 20 हजार से अधिक किसानों ने धान बेचा है, जबकि पिछले साल 15 लाख 71 हजार किसानों ने ही धान बेचा था. असल में उपज की सही कीमत मिलने के भरोसे ने किसानों को धान की ओर लौटाया है. साथ ही कर्ज माफी की वजह से लाखों किसानों को पहली बार सहकारी समितियों के माध्यम से धान बेचने का अवसर मिला है. इनमें से ज्यादातर छोटे किसान हैं.


राज्य निर्माण के बाद से अब तक के आंकड़ों के देखें तो वर्ष 2013-14 में 78 लाख टन धान की खरीदी हुई थी. नया आर्थिक माडल अपनाए जाने के बाद इस बार का 82.80 लाख टन धान की खरीदी हुई है, जो एक रेकार्ड है. यह आंकड़ा इस फसल पर किसानों के बढ़ते भरोसे के ग्राफ को दर्शाता है, साथ ही कृषि क्षेत्र में शासन की नयी नीति को उनके भारी समर्थन को भी.


इस साल शासन ने धान-खरीदी को लेकर जो चाक-चौबंद व्यवस्था की थी, रेकार्ड धान की खरीदी-बिक्री उसी से संभव हो पाई. सभी जिलों में वरदानों की उपलब्धता को लेकर सरकार लगातार चौकस रही. अवैध धान पर नियंत्रण के लिए लगातार कार्यवाही की गई, ताकि राज्य से बाहर की उपज को यहां न खपाया जा सके, 'धान-खरीदी' का पूरा लाभ केवल राज्य के किसानों को मिल सके. किसानों की शिकायतों के त्वरित निराकरण के लिए किसान हेल्प-लाइन नंबर जारी किए गए थे.


फरवरी 2020 की स्थिति में इनमें से 93.13 प्रतिशत किसान धान बेच चुके थे. जाहिर है कि इस रेकार्ड धान खरीदी ने एक और बार बाजार को बूस्ट कर दिया है. किसानों को भुगतान किए गए 14751 करोड़ रुपए बाजार में आए हैं. पिछले साल की तरह इस साल भी छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने 2500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से धान का मूल्य उपलब्ध कराने की घोषणा की थी. केंद्र समर्थित मूल्य पर धान खरीद चुकने के बाद अब अंतर की राशि से किसानों को शीघ्र ही लाभान्वित करने के लिए तैयारी की जा चुकी है. यानी अभी और भी पैसा बाजार में आना है. अभी और भी खुशहाली छत्तीसगढ़ में आनी है. कृषि क्षेत्र में अभी और भी हरियाली आनी है.


(लेखक आईएएस हैं और छत्तीसगढ़ के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक हैं. ये उनके निजी विचार हैं)