लखनऊ: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोगों को सलाह दी है कि योग करो तो कोरोना जैसा वायरस दूर भागेगा. उन्होंने यह भी कहा कि योग भारत की ऋषि परम्परा का प्रसाद है. आज पूरी दुनिया मन और शरीर से जुड़ी हुई बीमारियों से मुक्ति चाहती है. योग करने से इनसे जुड़ी बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है. ऋषिकेश में अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव-2020 में मौजूद साधकों को संबोधित करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कहा कि भौतिक और आध्यात्म योग के दो पक्ष हैं. इन दोनों के बीच में समन्वय बनाकर जब हम कार्य करते हैं, तो सही मायने में योग विकसित होता दिखाई देता है.
उन्होंने कहा कि योग की पूरी परम्परा आदिनाथ भगवान शिव से प्रारम्भ होती है और शिव का वास हिमालय है, तो स्वाभाविक रूप से उत्तराखंड इसका प्रतिनिधित्व करता है. यहां से निकले हुए योगी और साधक पूरी दुनिया में उत्तराखंड और देश का नाम रोशन कर रहे हैं. यह हम सबके लिए प्रसन्नता की बात है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि योग की प्राचीन विद्या को हम सबने कुछ लोगों तक सीमित कर दिया था. इसे दुनिया के सामने व्यापक रूप से प्रस्तुत करने का कार्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया. आज दुनिया के 193 से अधिक देश इस परम्परा से जुड़ रहे हैं. इन देशों का योग की परम्परा से जुड़ने का मतलब है कि भारत के साथ उनका आत्मीय संवाद हुआ है. इसके लिए सभी भारतवासी और योग प्रेमियों को पीएम मोदी का अभिनंदन करना चाहिए.
अंतरिक्ष में जाने से पहले योग से जुड़ी शिक्षा दी जाती है
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि अंतरिक्ष में जाने वाले यात्रियों को दिया जाने वाला पहला प्रशिक्षण योग से जुड़ा हुआ है. जिसमें थोड़ी यौगिक क्रियाओं को प्राणायाम के साथ जोड़कर लम्बी और गहरी सांस लेना सिखाया जाता है. इससे वह लम्बे समय तक अंतरिक्ष की यात्रा कर पाते हैं. हठ योग हमारी दो नाड़ियां हैं. जिन्हें सूर्य और चंद्र नाड़ियां कहा जाता है. योग की भाषा में इन नाड़ियों को गंगा और यमुना नाड़ी भी कहा जाता है.
उन्होंने कहा कि गंगा और यमुना नदियों का उद्गम स्थल उत्तराखंड है. इसलिए योग की उद्गम स्थली भी उत्तराखंड ही है. सीएम ने कहा कि प्राणायाम की साधना हठ योग है और मन की साधना राजयोग है. इन दोनों माध्यमों में अंतर यही है कि मन को साधने के लिए थोड़ी ज्यादा चुनौतियां हैं. प्राणायाम के माध्यम से अपनी सांसों को साध लेने पर मन अपने आप नियंत्रित हो जाता है. मन की एकाग्रता के लिए जिस प्रकृति का व्यक्ति है अपने अनुरूप माध्यमों का चयन कर सकता है. प्राचीन ऋषियों एवं अर्वाचीन योगाचार्यों ने अलग-अलग विधाओं को अलग-अलग तरीके से प्रस्तुत किया है. हर एक साधक अपनी प्रकृति के अनरूप साधना पथ को चुन सकता है.
उन्होंने कहा कि महर्षि पंतजलि ने यम से लेकर समाधि तक योग के आठ साधन बताए हैं. बाह्य शुद्धि, आतंरिक शुद्धि, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये आठ साधन हैं. जो क्रमिक रूप से मंजिल तक पहुंचने की आठ अलग-अलग सीढ़ियां हैं. ब्रह्मलीन महायोगी गुरु गोरक्षनाथ ने हठ योग पर बहुत समृद्ध साहित्य दिया है. जिसमें उन्होंने बताया है कि हठ योग क्या है और क्या हमें करना चाहिए. उन्होंने बताया है कि शरीर की शुद्धि के बगैर हम लोग योग की किसी भी पद्धति और विधा में पारंगत नहीं हो सकते हैं, उसके लिए सबसे आवश्यक है काया शोधन.
योगी ने कहा कि हठ योग में सात साधनों में समेटकर शरीर की शुद्धि के साथ इसे जोड़ा गया है. शोधन के लिए इसमें हठ कर्म दिया गया है. धौति, नेति, बस्ती, नौलि, त्राटक, कपालभाति यह शोधन की पहली क्रिया है. इसके बाद आसन, बंध और मुद्राएं, प्राणायाम, धारणा, ध्यान फिर समाधि है. ये सातों साधन मिलकर क्रियात्मक योग कहलाते हैं.
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