गोरखपुर: लोकसभा चुनाव-2019 का बिगुल बजने की घड़ी जैसे-जैसे करीब आ रही है, वैसे-वैसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के माथे पर चिंता की लकीरें भी साफ दिखाई देने लगी है. यही वजह है कि उप-चुनाव में हार के बाद वे छाछ भी फूंककर पी रहे हैं. निषाद समुदाय के लोगों को एससी/एसटी में शामिल करने के बयान को भी उपचुनाव में हार से जोड़कर देखा जा रहा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान पर गोरखपुर के सपा सांसद प्रवीण निषाद ने उन्हें आड़े हाथों लिया है. उनका कहना है निषाद समाज के लोगों को आरक्षण मिल चुका है. बस उसका अनुपालन उन्हें कराना है. निषाद समाज को आरक्षण दिलाने और डीएनए में रामभक्ति बसी होने वाला उनका बयान महज दिखावा है.
सपा से गोरखपुर के सांसद प्रवीण निषाद का कहना है कि सीएम योगी का बयान दिखावा ही लगता है. उनका कहना है कि 2014 के चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इलाहाबाद की रैली में आरक्षण की सुविधा देने का वायदा किया था. चार साल बीत जाने के बाद भी उन्होंने वायदा पूरा नहीं किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी अपने घोषणापत्र में निषाद के साथ अन्य उप जातियां जो केवट, मल्लाह और मंझवार के नाम से हैं उन्हें भी अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र देने की बात कही थी.
2 जुलाई 2016 को भी उन्होंने हमारे मंच पर आकर घोषणा की थी कि हमारी सरकार होती तो हम निषादों का आरक्षण देते. लेकिन, एक साल बीत जाने के बाद भी उनको निषादों की याद नहीं आई. अब 2019 का लोकसभा चुनाव होने वाला है, तो अब वे फिर से अपना तानाबाना बुन रह हैं और जुमले के माध्यम से लुभावने वादे कर रहे हैं.
वे कह रहे हैं कि निषादों के डीएनए में रामभक्ति बसी है. उनका अर्थ है कि हम भक्ति और उनकी सेवा करते रहे. आज हम अपने अधिकारों के प्रति अपनी लड़ाई लड़ने के लिए खड़े हुए तो उनके दुश्मन हो गए हैं. आज हम लोग अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ेंगे. अभी इसका परिणाम आप देखें कि चार की चार सीटें हम लोगों ने जीतीं. गोरखपुर, फूलपुर, कैराना, नूरपुर इसका परिणाम है.
मुख्यमंत्री बनने के बाद चुप्पी साधने और मामला कोर्ट में जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ये गलत है. उनका कहना है कि मामला कोर्ट में नहीं गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिग्भ्रमित करने का काम कर रहे हैं. हमारा शासनादेश जारी हो चुका है. 21-22 और 31 दिसंबर 2017 को पिछड़ी जाति की सूची से हमलोगों को निकाल भी दिया गया है. 29 मार्च 2017 के हाईकोर्ट के फैसले में आदेश जारी कर दिया गया है कि इनके प्रमाणपत्र हाईकोर्ट के अधीन होने चाहिए. शासनादेश जारी हो चुका है और इन्हें बस अनुपालन कराना है. ये निषाद समाज के लोगों को बस दिग्भ्रमित करने का काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि हमें तो 1961 से आरक्षण मिला हुआ है. जब उस समय आरक्षण मिल रहा था और सूची बन रही थी, तो 53 नंबर पर मंझवार और अन्य उप जातियों के नाम से हमें सूची में शामिल किया गया था.
उपचुनाव में हार के बाद उन्हें 2019 के चुनाव में हार का डर सता रहा है. ये उनके चेहरे पर भी साफ दिखाई दे रहा है. उनकी पार्टी में क्योंकि उनकी सत्ता खिसकने वाली है. इसलिए ये निचली जाति के लोगों के बीच जा रहे है. चार साल केन्द्र और एक साल राज्य में सरकार चलाने के बाद उन्हें निषाद समाज के लोगों की याद आई. जब वे मुख्यमंत्री बने तो उन्हें हमारी याद नहीं आई. महागठबंधन के साथ हम अपनी लड़ाई लड़ेंगे. वे जब अपनी सीट उपचुनाव में नहीं बचा पाए, तो अब वे दूसरे की सीट क्या जिताएंगे.