इलाहाबाद: संगम का शहर इलाहाबाद अब प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा. नाम बदलने के योगी सरकार के फैसले पर विवाद खड़ा हो गया है.  पुराणों से लेकर रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक ग्रंथों में सिर्फ और सिर्फ प्रयाग का ही जिक्र है. 1574 में अकबर द्वारा किये गए नामकरण से पहले इलाहाबाद नाम की जगह का कहीं कोई जिक्र इतिहास में नहीं है. प्रयाग पौराणिक नाम है और इलाहाबाद अकबर का दिया हुआ, लेकिन इन्हें एक साथ जोड़ना या एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना सही नहीं है. पूर्वाग्रहों को छोड़कर अगर ईमानदारी से आंकलन करें तो प्रयागराज और इलाहाबाद दोनों ने एक-दूसरे की पहचान को न तो मिटाने की कोशिश की और न ही उनका महत्व कम किया.


अकबर ने  एक अलग जगह पर नया शहर बसाया था


दरअसल धर्मग्रंथों में दर्ज प्रयागराज सिर्फ एक तीर्थस्थल रहा है. गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी और ब्रह्मा जी द्वारा किये गए अश्वमेध यज्ञ की वजह से ही प्रयाग को तीर्थों का राजा कहा गया. कुंभ-अर्द्धकुंभ और माघ के मेले यहां संगम किनारे प्राचीन समय से लगते थे, लेकिन प्रयाग वह क्षेत्र नहीं था, जिसे अकबर ने शहर के तौर पर बसाया. अकबर ने प्रयाग में गंगा के दूसरे छोर पर वीरान पड़ी जगहों को विकसित कर नया शहर बसाया था, जिसे उसने इलाहाबाद नहीं बल्कि, अल्लाहाबास नाम दिया था. मुग़लकाल से पहले गंगा-यमुना के मौजूदा दोआब में किसी नगर या कसबे का कहीं कोई जिक्र तक नहीं है. कहा जा सकता है कि अकबर तीर्थस्थल प्रयाग आया था, लेकिन उसने तीर्थराज की पहचान को ख़त्म कर नहीं, बल्कि एक अलग जगह पर नया शहर बसाया था.


धर्म के जानकार आचार्य राम नरेश त्रिपाठी कहते हैं


धर्म के जानकार आचार्य राम नरेश त्रिपाठी के मुताबिक़ प्रयाग का वर्णन तो स्कंदपुराण, मत्स्यपुराण, पदमपुराण, ब्रह्मपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण समेत दूसरे पुराणों में भी है. पदमपुराण में तो गंगा-यमुना के बीच की खाली जगह को कटि प्रदेश बताते हुए इसे सबसे उपजाऊ व बेशकीमती जगह बताया गया है. पुराणों के बाद रामायण और महाभारत में भी अकबर द्वारा बसाई गई जगह पर कोई नगर या सभ्यता होने का कोई जिक्र नहीं है. इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी के मध्यकालीन इतिहास विभाग के प्रमुख प्रोफ़ेसर योगेश्वर तिवारी के मुताबिक़ धर्मग्रंथों में प्रयाग का जो वर्णन है, वह भी गंगा नदी के दूसरी तरफ उस जगह का है, जहां झूंसी क़स्बा स्थित है. उनके मुताबिक़ झूंसी को पहले प्रतिष्ठानपुरी के नाम से जाना जाता था. झूंसी इलाके में नगरीय सभ्यता बेहद प्राचीन है. प्रतिष्ठानपुरी चंद्रवंशी राजा पुरु की राजधानी भी रही है.


गंगा के बाईं तरफ अगर प्रतिष्ठानपुरी या झूंसी नाम से शहर बसने के प्रमाण हैं तो दाहिनी तरफ मुनि भारद्वाज का आश्रम, अक्षयवट, वेणी माधव मंदिर और नागवासुकि मंदिर का जिक्र है. गंगा के दाहिनी तरफ का क्षेत्र जंगल था, जहां ऋषि-मुनि तपस्या करते थे. इसी तरह शहर से करीब चालीस किलोमीटर दूर श्रृंगवेरपुर में भी शहर बसने के प्रमाण हैं. रामायण काल में तो केवट ने श्रृंगवेरपुर में ही भगवान राम के साथ लक्ष्मण और सीता को नाव से गंगा नदी पार कराई थी. इतिहासकार सैयद अज़ादार हुसैन के मुताबिक़ मौजूदा कौशाम्बी जिले में नगर बसने का वर्णन तो बौद्धकाल से ही मिलने लगता है. खिलजी वंश में तो जलालुदीन खिलजी के वक्त से ही कौशाम्बी के कड़ा इलाके का जिक्र है.


अल्लहाबास को अकबर के वक्त में ही बदलकर अल्लाहाबाद नाम कर दिया गया था


सैयद अज़ादार हुसैन के मुताबिक़ अपने राज्य का विस्तार करते हुए अकबर जब 1574 के पास तीर्थराज प्रयाग आया तो उसने गंगा-यमुना के बीच की खाली जगह की उपयोगिता को समझा और यहां एक नया शहर बसाने का फैसला किया. यमुना नदी के किनारे उसने अपना किला बनवाया जो तकरीबन बाइस साल में बनकर तैयार हुआ. इस दौरान अकबर कई बार इस जगह आया और 1574 में अपनी बसाई हुई जगह को अल्लाहाबास नाम दिया. अल्लाहाबास का मतलब वह जगह जो अल्लाह द्वारा बसाई गई हो. अल्लहाबास को अकबर के वक्त में ही बदलकर अल्लाहाबाद नाम कर दिया गया था, जो अब बिगड़ते हुए इलाहाबाद बोला जाने लगा है. किले के नजदीक ही दारागंज, कीडगंज और दरियाबाद जैसे मोहल्ले बसाए गए थे.


हालांकि अकबर द्वारा शहर बसाने के उद्देश्य को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है. प्रोफ़ेसर योगेश्वर तिवारी के मुताबिक़ कुंभ और माघ मेले में देश भर से आने वाले श्रद्धालुओं के जरिए अपने शासन का संदेश देने के लिए ही अकबर ने प्रयाग तीर्थ स्थल के बगल किला बनवाने और इलाहाबाद का नाम देने का फैसला किया था, जबकि सैयद अज़ादार हुसैन का दावा है कि अकबर ने गंगा-यमुना नदियों के बीच होने की वजह से बेहद उपजाऊपन पानी की भरपूर उपलब्धता की वजह से नदी के दूसरी तरफ अलग जगह पर इलाहाबाद शहर को बसाने की कोशिश की थी. उनके मुताबिक़ अकबर ने गंगा-यमुना के बीच में रहने को आर्थिक तौर पर तो बेहतर माना ही था, साथ ही यह जगह सुरक्षा के लिहाज से भी ज़्यादा बेहतर थी.


मुगलकाल में ही इलाहाबाद के मौजूदा शहर का विकास हुआ और खुसरोबाग समेत कई ऐतिहासिक इमारतें बनाई गईं. अंग्रेजों के समय इस शहर का विस्तार और सौंदर्यीकरण हुआ और कई नये मोहल्ले बसाए गए. मुगलों और अंग्रेजों के वक्त खेती व बागवानी के लिए बेहद अहम होने की वजह से ही इलाहाबाद शहर के कई मोहल्लों के नाम में आज भी बाग़ जुड़ा हुआ है. अंग्रेजों के समय इलाहाबाद को जिले की सीमा में बांधकर प्रयागराज तीर्थस्थल को भी इसमें समाहित कर दिया गया. प्रयाग का क्षेत्र ग्रामीण परिवेश का होने और इलाहाबाद का इलाका नगरीय होने की वजह से ही अंग्रेजों ने इलाहाबाद नाम दिया. हालांकि संगम के नजदीक के दो रेलवे स्टेशन आज भी प्रयाग और प्रयागघाट के नाम से चल रहे हैं, जबकि जंक्शन को इलाहाबाद नाम दिया गया.


प्रयागराज एक तीर्थस्थल है, जबकि इलाहाबाद इस तीर्थस्थल से सटा हुआ एक शहर


प्रयागराज एक तीर्थस्थल है, जबकि इलाहाबाद इस तीर्थस्थल से सटा हुआ एक शहर. सरकारी दस्तावेजों में इलाहाबाद राजस्व जिला बन गया था और प्रयाग तीर्थस्थल इसकी सीमा में आ गया था, लेकिन धार्मिक आयोजनों में इलाहाबाद के बजाय प्रयाग नाम का ही इस्तेमाल किया जाता है, जबकि धार्मिक दायरे के बाहर साहित्य-राजनीति, शिक्षा व इतिहास के क्षेत्र में इलाहाबाद ने मील का पत्थर छुआ है.


नामचीन साहित्यकार यश मालवीय भी यही मानते हैं. उनका कहना है कि प्रयागराज और इलाहाबाद ने एक- दूसरे की पहचान को बढ़ाया है. दोनों एक - दूसरे में रचे- बसे हैं, इसलिए दोनों में से किसी एक के वजूद को ख़त्म करना दूसरे के महत्व और उसकी पहचान को कम करना है. बेहतर होता कि सरकारी रिकार्ड में नाम इलाहाबाद ही रहने दिया जाता और संगम के आस - पास के इलाके को प्रयागराज के नाम से विकसित कर वहां धार्मिक - आध्यात्मिक आयोजन किये जाते.


धर्म और आध्यात्म के अलावा भी इस शहर की अपनी अलग पहचान है, जो उसे समूची दुनिया में मशहूर करती है. प्रयागराज बेहद पुराना नाम है और इलाहाबाद नाम अकबर का दिया हुआ, लेकिन अकबर ने प्रयाग की पहचान को मिटाकर अपना दिया नाम नहीं थोपा था, बल्कि तीर्थस्थल प्रयाग के नजदीक अल्लाहाबास नाम से नया शहर बसाया था. सियासत से जुड़े लोगों को छोड़ दिया जाए तो इलाहाबाद को जीने वाले आज भी दोनों में से किसी एक पहचान को ख़त्म करने के कतई हक में नहीं हैं.