विशेष राज्य का दर्जा: कांग्रेस ने किया समर्थन तो जेडीयू ने पूछा- सत्ता में रहने पर क्यों नहीं उठाया कदम?
जेडीयू के प्रवक्ता अजय आलोक ने गोहिल के बयान पर कहा कि कांग्रेस 2004 से 2014 तक सत्ता में रही. उसने तब बिहार को विशेष दर्जा प्रदान करने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया ?
पटना: कांग्रेस ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की नीतीश कुमार की मांग का समर्थन किया है. इस जेडीयू ने आज सवाल किया कि जब कांग्रेस जरूरी कदम उठाने में असफल क्यों रही जब वह एक दशक तक केंद्र की सत्ता में थी. बिहार के लिए कांग्रेस के प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल ने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इसको लेकर आलोचना की थी.
गोहिल ने कहा था कि वह निजी तौर पर बिहार के लिए विशेष दर्जा और विशेष पैकेज के पक्ष में हैं और यदि कांग्रेस सत्ता में आयी तो गरीब और सघन जनसंख्या वाले इस राज्य को सभी संभव मदद प्रदान करेगी जो हर साल सूखे और बाढ़ का सामना करता है. बीते साल महागठबंधन टूटने के बाद जेडीयू ने जहां गठबंधन सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ हाथ मिला लिया. वहीं दो पार्टियां आरजेडी और कांग्रेस एकसाथ विपक्ष में हैं.
जेडीयू के प्रवक्ता अजय आलोक ने गोहिल के बयान पर कहा कि कांग्रेस 2004 से 2014 तक सत्ता में रही. उसने तब बिहार को विशेष दर्जा प्रदान करने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया ? नीतीश कुमार यह मांग 2005 में मुख्यमंत्री बनने से पहले से उठा रहे हैं. राज्य में सत्ता में आने के बाद से वह इस मांग को और जोरदार तरीके से उठा रहे हैं.
आलोक एक दूसरी टिप्पणी में परोक्ष रूप से कांग्रेस और बीजेपी पर निशाना साधते दिखे. उन्होंने कहा कि बड़ी पार्टियों के साथ यह बड़ी अजीब बात है. वे सत्ता से बाहर होने पर विशेष दर्जे का वादा करती हैं लेकिन सत्ता में आने के बाद वे अपना वादा भूल जाती हैं.
इस बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बिहार से काटकर झारखंड बनने के बाद बिहार को विशेष दर्जा नहीं मिलने के लिए नीतीश कुमार को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने दावा किया कि बिहार की तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बिहार के लिए विशेष दर्जे की मांग करते हुए एक अनुरोध भेजा था. तब वाजपेयी ने मुद्दे पर गौर करने के लिए नीतीश कुमार के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था.
उस समय की राबड़ी देवी सरकार में मंत्री रहे मांझी ने आरोप लगाया कि समिति की एक भी बैठक नहीं हुई. नीतीश कुमार चूंकि उस समय राज्य में सत्ता में नहीं थे, उन्हें यह विचार राजनीतिक रूप से लाभकारी नहीं लगा और उन्होंने वाजपेयी सरकार के सत्ता से हटने तक पैर खींचने का फैसला किया.