नई दिल्ली: कोरोना संक्रमण और संकट के इस दौर में जहां कुछ लोग बेवजह बाहर निकल कर लोगों की जान खतरे में डाल रहे हैं. वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इंसानियत की मिसाल कायम कर रहे हैं. गौरतलब है कि कोरोना संकट की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ी है. इन लोगों की मदद को दिल्ली का एक परिवार आगे आया है.
पलायन की विचलित करने वाली तस्वीरें देखने के बाद दिल्ली के संजय गर्ग का परिवार ने मज़दूरों और ग़रीबों की मदद करने का फ़ैसला किया. इस परिवार के लोग रोज़ खाना बना रहे हैं और ग़रीबों और ज़रूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं. पेशे से व्यापारी संजय गर्ग दिल्ली के रोहिणी इलाके में रहते हैं.
कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए संजय को बाहर के किसी व्यक्ति से खाना बनवाना ठीक नहीं लगा. इसलिए इस काम मे उनके परिवार ने उनका साथ दिया. गर्ग परिवार ने करीब 200 लोगों का खाना बनाने से शुरुआत की और 5 दिन में करीब 2 हज़ार लोगों का खाना आज उनका पूरा परिवार एक साथ मिलकर बनाता है. सुबह और शाम दोनों वक़्त परिवार के लोग गरीब और मज़दूरों के साथ ही ज़रूरतमंदों तक खाना लेकर पहुंचते हैं.
संजय गर्ग के साथ उनकी पत्नी संतोष गर्ग, बड़ा बेटा साहिल, बहू उजाला, छोटा बेटा जय और उनके घर मे उनके ही साथ रहने वाला केयर टेकर मनु खाना बनाने और बांटने में मदद करते हैं. इस दौरान पूरा परिवार साफ-सफाई का ख़ास ध्यान रखता है. मास्क लगाकर और ग्लव्स पहनकर ये लोग खाना बनाते हैं. खाना बाहर ले जाकर बांटने की ज़िम्मेदारी साहिल के दोस्त रोहित ने ले ली है. इसका कारण है कि खाना बनाने वाले लोग संक्रमण के खतरे में न रहें. सिर्फ यही नहीं जिस सोसाइटी में संजय रहते हैं वहां के लोगों ने सोसाइटी के पार्टी हॉल को परिवार को किचन की तरह इस्तेमाल करने को दे दिया है. आम दिनों में इस हॉल को बुक कराने के पैसे लगते हैं लेकिन इस परिवार के जज़्बे को देखते हुए सोसाइटी के लोगों ने बिना किसी किराये के हॉल इन लोगों को दे दिया है.
संजय गर्ग और उनकी पत्नी संतोष का कहना है कि लॉकडाउन के बाद कई लोगों को खाने पीने की दिक्कतों की खबरें सुनकर हमने ये शुरुआत की. 100-200 लोगों का खाना बनाने से शुरुआत की थी लेकिन जब लगा कि ज़्यादा ज़रूरतमंद लोग हैं तो अब करीब 2000 लोगों का खाना बनाते हैं. फिलहाल ये लोग राशन का इंतज़ाम खुद ही कर रहे हैं हालांकि अब कुछ और लोग भी मदद के लिए आगे आये हैं.
वहीं जय का कहना है कि इसी बहाने पूरा परिवार मिलकर एक साथ खाना बनाता है, बातें करता है ये भी अच्छा अनुभव है वरना यूं साथ मे कभी खाना बनाने का मौका नहीं मिला. बड़े बेटे साहिल ने बताया कि आज तक उन्होंने कभी खाना नहीं बनाया था लेकिन ये अवसर मिला है तो वो खाना बनाना भी सीख रहे हैं. साहिल की पत्नी उजाला का कहना है कि ये काम करके अलग ही संतुष्टि होती है, खाना तो हमेशा बनाते हैं लेकिन किसी उद्देश्य के लिए खाना बनाना वाकई अलग अनुभव है.
खाना बांटते वक्त भी सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ध्यान रखा जाता है. साहिल के दोस्त रोहित अपनी गाड़ी में इस खाने को बादली इलाके में रह रहे मजदूरों तक पहुंचाते हैं. मजदूर 3 मीटर की दूरी पर बने घेरे में खड़े होकर खाना लेने के लिए अपनी बारी के इंतज़ार करते हैं. संजय गर्ग के परिवार का यह कदम वाक़ई क़ाबिल-ए-तारीफ है.
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