23 साल बाद कन्नौज में खिला कमल, बीजेपी ने सपा के गढ़ को भेदकर लहराया भगवा
2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी अपना गढ़ भी नहीं बचा पाई. मोदी लहर की सुनामी में समाजवादी पार्टी का किला ढह गया. बीजेपी करीब 23 सालों बाद कन्नौज में कमल खिलाने में कामयाब हो गई.
कानपुर: 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी अपना गढ़ भी नहीं बचा पाई. मोदी लहर की सुनामी में समाजवादी पार्टी का किला ढह गया. बीजेपी करीब 23 सालों बाद कन्नौज में कमल खिलाने में कामयाब हो गई. 1996 में बीजेपी के चंद्रभूषण सिंह यहां से चुनाव जीते थे उसके बाद से पहली बार यहां कमल खिला है.
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और बीजेपी के सुब्रत पाठक के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली. डिंपल यादव बीजेपी के सुब्रत पाठक से 12,086 वोटों से हार गईं. इस हार के बाद समाजवादी पार्टी में मायूसी छाई है. बीजेपी ने कन्नौज लोकसभा सीट पर जीत दर्ज कर सपा को गहरा घाव दिया है.
सपा-बसपा गठबंधन मिलकर भी डिंपल की सीट नहीं बचा सका. समाजवादी पार्टी की कन्नौज लोकसभा सीट सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती थी. समाजवादी पार्टी जब अपने परिवार के किसी सदस्य को लाँच करती थी तो इसी सीट पर भरोसा जताया जाता था. कन्नौज लोकसभा सीट से सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव भी संसद पहुंचे थे. इसके बाद खुद अखिलेश यादव ने भी कन्नौज से जीत हासिल की थी. डिंपल यादव भी पहली बार कन्नौज से ही लोकसभा चुनाव जीती थीं. समाजवादी पार्टी का कन्नौज लोकसभा सीट पर पिछले लंबे वक्त से कब्ज़ा था.
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पहले कन्नौज लोकसभा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का एलान किया था लेकिन सपा-बसपा गठबंधन होने के बाद अखिलेश यादव ने डिंपल को कन्नौज से चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किय. सपा-बसपा गठबंधन होने के बाद समाजवादी पार्टी को पूरा भरोसा था कि डिंपल का जीतना तय है. लेकिन जातिगत आकड़ों और मोदी लहर में सपा का ये किला ढह गया.
2014 के लोकसभा चुनाव में भी डिंपल यादव की टक्कर बीजेपी के सुब्रत पाठक से हुई थी. डिंपल यादव ने 19,907 वोटों से सुब्रत पाठक को हराया था. इस नजदीकी हार के बाद बीजेपी को भरोसा हो गया था कि कन्नौज की सीट जीती जा सकती है. हार के बाद डिंपल ने ट्विटर पर लिखा- 'मैं विनम्रता के साथ जनादेश को स्वीकार करती हूं और अपनी सेवा का अवसर देने के लिए कन्नौज को धन्यवाद देती हूं.'