इलाहाबाद: यूपी की योगी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह के शहर प्रयागराज के एक सरकारी अस्पताल में महिला मरीज से पैरों की पायल गिरवी रखकर मेडिकल स्टोर से दवा मंगाए जाने का चौंकाने वाला मामला सामने आया है. आरोप है कि सरकारी अस्पताल के डॉक्टरों ने हॉस्पिटल से दवा देने के बजाय मरीज पर बाहर के मेडिकल स्टोर से दवा खरीदने का दबाव बनाया. पैसे खत्म हो जाने से मजबूर महिला मरीज ने अपनी रिश्तेदार की पायल गिरवी रखकर दवा खरीदी.


मेडिकल स्टोर द्वारा पायल गिरवी रखे जाने की रसीद सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद सरकारी महकमे में हड़कंप मच गया है. मेडिकल स्टोर संचालक के खिलाफ जहां एफआईआर दर्ज कराकर उसका लाइसेंस रद्द कराने की कवायद की जा रही है, वहीं अस्पताल के सीएमएस की अगुवाई में तीन सीनियर डॉक्टर्स की कमेटी को इस मामले की जांच सौंपकर उनसे पांच दिनों में रिपोर्ट देने को कहा गया है.


 इस घटना में सबसे तकलीफदायक बात यह है कि जिस महिला को इलाज के लिए पायल तक गिरवी रखनी पड़ी, उसकी नवजात बेटी को बचाया नहीं जा सका और कुछ घंटों बाद दूसरे अस्पताल में उसकी मौत हो गयी. पीड़ित महिला को दो दिन बीतने के बाद भी अभी तक बेटी की मौत की खबर नहीं दी गई है. ऐसा इसलिए ताकि सदमा पहुंचने पर उसकी हालत न बिगड़ जाए.


प्रयागराज शहर से करीब पैंतीस किलोमीटर दूर सैदाबाद इलाके के गरीब किसान राजकुमार यादव की पत्नी रिंकी को इसी हफ्ते डिलेवरी होनी थी. रिंकी ने चार साल पहले भी आपरेशन से एक बच्ची को जन्म दिया था. तीस अक्टूबर को दोपहर में रिंकी को लेबर पेन शुरू हुआ तो राजकुमार उसे लेकर मेडिकल कॉलेज द्वारा संचालित स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल ले आया. मेडिकल कॉलेज द्वारा संचालित इस हॉस्पिटल में आस-पास के तमाम जिलों से मरीज इलाज के लिए आते हैं. रिंकी को अस्पताल में दिखाया गया तो डॉक्टर्स ने उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की धड़कन कम होने की बात कहकर फ़ौरन ऑपरेशन किये जाने को कहा. ऑपरेशन के लिए राजकुमार को सामानों की लम्बी चौड़ी लिस्ट सौंप दी गई और बताया गया कि अस्पताल में कोई सामान न होने की वजह से सभी कुछ बाहर से खरीदकर ही लाना होगा.


ऑपरेशन से पैदा हुई रिंकी की बेटी को फ़ौरन चिल्ड्रन हॉस्पटिल ले जाने को कहा गया. पति राजकुमार फ़ौरन बेटी को लेकर चिल्ड्रेन हॉस्पिटल चला गया. इस दौरान एसआरएन हॉस्पिटल के मैटरनिटी वार्ड में मौजूद डॉक्टर्स ने कई राउंड में बाहर के एक ख़ास मेडिकल स्टोर से दवाएं लाने को कहा. दो बार दवा लाने के बाद परिवार वालों के पैसे ख़त्म हो गए तो डॉक्टर्स ने फिर से कुछ और दवाएं लाने को कहा. राजकुमार बेटी को लेकर चिल्ड्रन अस्पताल गया था, लिहाजा उसकी छोटी बहन डॉक्टरों के बताए हुए देव एंड संस नाम के मेडिकल स्टोर पर दवा लेने गई तो करीब साढ़े बारह सौ रूपये कम पड़ गए. उसने मेडिकल स्टोर संचालक से एक दिन की मोहलत पर उधार दवा देने को कहा, लेकिन मेडिकल स्टोर संचालक ने मना कर दिया. इस बीच डॉक्टर्स जल्द से जल्द दवा लाने का दबाव बनाते रहे.


राजकुमार की छोटी बहन जब काफी देर तक उधार दवा देने की गुहार लगाती रही तो अस्पताल गेट के ठीक सामने स्थित देव एंड संस के नाम से चलने वाले मेडिकल स्टोर संचालक ने उससे कोई सामान गिरवी रखने को कहा. इस पर उसकी बहन ने अपने पैरों की पायल उतार कर गिरवी रखने का ऑफर दिया. मेडिकल स्टोर संचालक ने बारह सौ चालीस रूपये की दवाओं के बदले पायल गिरवी रख ली और उसे एक रसीद दे दी. रसीद पर साफ तौर पर लिखा था कि 1240 रूपये लेकर पायल वापस करनी है. इस बीच कुछ घंटों बाद राजकुमार की नवजात बेटी ने चिल्ड्रन हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया. रिश्तेदार की पायल गिरवी रखकर दवा आने से रिंकी पहले ही बहुत दुखी थी और लगातार रो रही थी, इसलिए परिवार वालों ने उसे अभी तक बेटी की मौत की खबर नहीं दी है. आरोप यह भी है कि चिल्ड्रन हॉस्पिटल में वेंटिलेटर नहीं मिलने की वजह से इलाज के अभाव में बेटी की मौत हुई है.


राजकुमार बेहद गरीब परिवार से है और खेती कर किसी तरह अपने परिवार का पेट पालता है. इस बीच पायल गिरवी रखे जाने की रसीद किसी को हाथ लगी तो उसने इसकी तस्वीर खींचकर उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया. सोशल मीडिया पर गिरवी पायल की रसीद वायरल होने पर सरकारी अमले में हड़कंप मच गया. अपनी करतूत सामने आने से नाराज़ डॉक्टर्स ने रिंकी को फ़ौरन मैटरनिटी वार्ड से दूसरी बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की सदस्य और समाजसेविका निर्मला यादव को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने पीड़ित परिवार की आर्थिक मदद कर गिरवी रखी पायल को छुड़वा दिया. मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डा. एसपी सिंह ने इस मामले में एसआरएन हॉस्पिटल के सीएमएस डा. एके श्रीवास्तव की अगुवाई में तीन सीनियर डॉक्टर्स की एक कमेटी को जांच सौंप कर उनसे पांच दिन में रिपोर्ट देने को कहा है. उन्होंने पायल गिरवी रखकर दवा देने वाले मेडिकल स्टोर संचालक के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश किये जाने की बात भी कही है.


हालांकि मेडिकल कालेज स्वास्थ्य मंत्रालय के बजाय चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन के विभाग में आता है, लेकिन इसके बावजूद डिप्टी सीएम समेत तीन कैबिनेट मंत्रियों के शहर में इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में गहने गिरवी रखे जाने का मामला योगी राज में स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोलने वाला है. इस मामले में पहली नजर में मेडिकल स्टोर संचालक दोषी नजर आता है, लेकिन असल दोषी तो स्वरूपरानी नेहरू सरकारी अस्पताल के वह डॉक्टर हैं, जिन्होंने हॉस्पिटल से दवा देने के बजाय बाहर से दवा खरीदने का दबाव बनाया और एक ख़ास दुकान से ही दवा खरीदने की धमकी भी दी. इस बारे में मेडिकल स्टोर से जुड़े लोगों का कहना है कि वह दवा बेचने के लिए हैं, इसलिए किसी को उधार दवा नहीं दे सकते.