मुजफ्फरपुर/पटना: बिहार में एक बार फिर से चमकी बुखार कहर बनकर टूटा है. आधिकारिक तौर पर इस बीमारी से अब तक 28 बच्चों की मौत हो चुकी है. जबकि गैर सरकारी आंकड़ों की माने तो ये संख्या 50 के करीब है. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से चमकी बुखार से अब तक 103 बच्चे प्रभावित हुए हैं. चमकी बुखार को एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) और जापानी इंसेफलाइटिस (जेई) से भी जाना जाता है.


आज प्राप्त आंकड़ो के अनुसार, एसकेएमसीएच और केजरीवाल मेटरनिटी अस्पतालों में इलाजरत कुल 9 बच्चों की मौत हुई. इस जानलेवा चमकी बुखार का सबसे अधिक प्रभाव उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर, मोतिहारी, शिवहर, सीतामढ़ी जिलों में है.


बच्चों की मौत की दर को बढ़ते देख कर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी चिंता जता चुके हैं और सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर नगर विकास और आवास मंत्री सुरेश शर्मा को एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में भर्ती बच्चों का हाल समाचार जानने के लिए भेजा है.


भारी गर्मी में और बरसात से पहले ये बीमारी हर साल बिहार में कहर बरपाती है. मुख्यमंत्री ने कहा कि इसकी जांच की जा रही है. उन्होंने कहा, "लोगों को इस बीमारी को लेकर जागरूक कराना होगा. हर साल बच्चे काल की गाल में समा जा रहे हैं. ये चिंता का विषय है."


बंगाल में हिंसा बेलगाम: उत्तर 24 परगना के भाटपाड़ा में TMC के 2 और हावड़ा में BJP कार्यकर्ता की हत्या


एसकेएमसीएच अधीक्षक डॉ सुनील शाही ने बताया कि अधिकांश बच्चों में हाइपोग्लाइसीमिया यानी अचानक शुगर की कमी और कुछ बच्चों के शरीर में सोडियम (नमक) की मात्रा भी कम पाई जा रही है. उन्होंने कहा कि एईएस के संदिग्ध मरीजों का इलाज शुरू करने से पहले चिकित्सक उसकी जांच कराते हैं. ब्लड शुगर, सोडियम, पोटाशियम की जांच के बाद ही उसका इलाज शुरू किया जाता है.


2010 से अब तक इस बीमारी से मरे बच्चों की संख्या-


साल 2010 में 59 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 24 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2011 में 121 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 45 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2012 में 336 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 120 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2013 में 124 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 39 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2014 में 342 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 86 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2015 में 75 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 11 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2016 में 42 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 21 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2017 में 42 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 19 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2018 में 45 बच्चे पीड़ित हुए, जिनमें 10 बच्चों की मौत हो गई.


साल 2019 में 10 जून तक 103 बच्चे भर्ती हुए है जबकि 28 बच्चों की मौत हो चुकी है.