नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में चुनाव का माहैल है. आधे से ज्यादा सीटों पर चुनाव हो भी चुके हैं. इस चुनाव छोटे से लेकर बड़े नेता सभी प्रचार में जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं. बीएसपी सुप्रीमो मायावती अब तक 37 रैलियां कर चुकी हैं, 16 रैलियां बाकी हैं. लेकिन मायावती के प्रचार का अंदाज बाकी नेताओं से अलग है.


मासावती के मंच से लेकर उनकी सुरक्षा व्यवस्था तक सभी का बेहद खास तरीके से प्रबंध किया जाता है. मायावती की रैलियों में बहुत सी ऐसी बातें होतीं हैं जो या तो उनके बेहद करीबी या फिर खुद मायावती जानती हैं. आज हम आपको मायावती की रैलियों से जुड़ी कुछ ऐसी ही जानकारियां देंगे.


माया के मंच का 'व्हाइट हाउस'!
मायावती की लगभग हर रैली में मंच के करीब एक छोटा सा व्हाइट हाउस बनाया जाता है. इसका निर्माण ब्लैक कैट कमांडों की मौजूदगी में होता है. ब्लैककैट कमांडो लगातार इसकी सुरक्षा में लगे रहते हैं. इस व्हाइट हाउस के दरवाजे सिर्फ मायावती के लिए खुलते हैं. इसका इस्तेमाल मायावती रैली में पहुंचने के बाद मंच पर जाने से पहले या उतरने के बाद कर सकती हैं. ये पूरी तरह वातानुकुलित होता है. इसमें चार से पांच लोगों के बैठने की व्यवस्था होती है.


व्हाइट हाउस पाउटर रूम की तरह का एक निर्माण है जिसमें फ्रेश होने और मामूली आराम करने की व्यवस्था की जाती है. जरूरत पड़ने पर जलपान और भोजन के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाए इसका ख्याल रखा जाता है.


मायावती के मंच में दो माइक की मिस्ट्री!
मायावती के आने से पहले ही हमारी टीम रैली में पहुंच गयी थी क्योंकि मायावती के आने के बाद मंच के आस पास कोई फटक भी नहीं सकता है. मायावती के मंच पर हमेशा बोलने के लिए दो माइक की व्यवस्था होती है.


एक माइक पूरी तरह से मायावती के लिए आरक्षित रहता है जबकि दूसरे माइक से रैली का संचालन होता है. एक बात और कि जब मायावती आ जाती हैं तो मंच से और किसी का भाषण नहीं होता तब अपने आरक्षित माइक से सिर्फ और सिर्फ मायावती बोलती हैं. दूसरे लोग बस नारे लगवाने का काम करते हैं.


एक और खासियत: सोफा,टेबल और सफेदी का राज़!
मायावती के मंच में भीड़ बेहद कम रहती है. दूसरे नेताओं जैसी हालत नहीं होती. केवल प्रत्याशी वो भी पीछे कुर्सियों में बैठे हुए तमीज से जूते उतार कर मोजा पहन कर बैठते हैं. इनसे कुछ आगे मायावती जी का बड़ा सोफा कखा होता है. इस सोफे को अनिवार्य रूप से सफेद रंग के कपड़े से ढका जाता है. सामने एक टेबल लगायी जाती है जिस पर बेदाग सफेद मेज का कवर डाला जाता है. कवर के ऊपर एक सफेद नया तौलिया, पसीना या हाथ पोंछने के लिए रखा जाता है.


मेज के बीचो बीच एक पैड होता है जिसमें खासतौर से सफेद कागज पर ही स्थानीय प्रत्याशियों के नाम लिखे होते हैं. ऊपर सफेद रंग का एक पेन रखा रहता है. पन्ना पलटने के लिए पानी की जरूरत होती है तो एक वाटरपैड भी रखा जाता है. इसके बाद मंच में एसी लगाना जरूरी है मायावती के भाषण देने वाली जगह से कुछ दूरी पर दो एसी ऊपर नीचे लगे होते हैं.खुले मंच की वजह से इनकी हवा मायावती को ही कूल रखने लायक होती है.


हर चीज़ में होता है कड़ा अनुशासन
इसके बाद मंच पर स्वागत वगैरा की औपचारिकता होती है. नारे लगवाए जाते हैं पर हर चीज में कड़ा अनुशासन होता है. जिसकी जहां जगह तय है वो उससे एक कदम आगे पीछे नहीं हो सकता है. मायावती से दो हाथ के फासले पर ही सारी सक्रियता होती है. उम्मीदवारों का परिचय भी लाइन लगा कर और मायावती का आशीर्वाद भी लाइन लगा कर एक तय दूरी से मिलता है.



मायावती के मंच के आगे खाली जगह क्यों?
मायावती के मंच के आगे एक बड़ा डी आकार का खाली हिस्सा रहता है. इसके चारो ओर जाली से नाकेबंदी की जाती है. इस खाली जगह के बाद ही किसी के बैठने उठने की इजाजत होती है. यहां तक कि मीडिया के कैमरे भी इस डी से पीछे होते हैं. ये सुरक्षा का घेरा होता है.


मायावती की रैली में सबसे आगे महिलाएं क्यों?
मायावती की रैलियों में इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि सबसे आगे बैठने वालों में महिलाएं ही हों. इसका सुरक्षा और वोटबैंक के लिहाज से खास मतलब है. महिलाएं मायावती की कट्टर समर्थक मानी जाती हैं. इसलिए मायावती उन्हें पूरा सम्मान देती हैं और भाषण सुन कर उसे दूर दूर तक फैलाने की क्षमता को भी चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसके बाद युवा और फिर अन्य लोगों के बैठने की व्यवस्था की जाती है.


मायावती की रैली में खास तरह की दुकान क्यों?
मायावती की रैली मे ये खासतरह की दुकाने जरूर लगती हैं.इन दुकानो में दलित साहित्य,कांशीराम, भीमराव आंबेडकर की फोटो मिलती हैं,साथ ही बीएसपी के प्रचार प्रतीक भी.मायावती के परंपरागत वोटर को आर्थिक रूप से कमजोर माना जाता है पर वो इन दुकानो में आकर कुछ न कुछ जरूर खरीदता है.