वाराणसी: वाराणसी में हुए दर्दनाक हादसे के मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है. यूपी पुलिस का कहना है कि उसने करीब 5 चिट्ठियां यूपी राज्य सेतु निगम को लिखी थीं लेकिन फिर भी निर्माण कार्य के दौरान नियमों का पालन नहीं किया गया.


अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर के मुताबिक आईजी दीपक रतन ने कहा,"हमने नवंबर तक सेतु निगम को 5 बार चिट्ठी लिखी थी. इन चिट्ठियों में कहा गया था कि निर्माण के वक्त ट्रैफिक का ध्यान रखा जाए. जब वे लोग निर्माण कार्य कर रहे हों तो अपने लोगों को वहां तैनात करें ताकि ट्रैफिक नियमों का पालन हो सके. ये लोग पुलिस की भी सहायता ले रकते हैं. हमने बार-बार कहा लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया."


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एबीपी न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में पाया कि 19 फरवरी को सिगरा पुलिस थाने में वाराणसी के एसपी ट्रैफिक सुरेश चंद रावत ने उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक और सहायक अभियंता के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था.


दरअसल कभी सड़क पर सरिया और मिट्टी का ढेर होता तो कभी तारों का जाल. इसके कारण सड़क पर जाम लगा रहता था. बिना यातायात रोके ही काम किए जाते थे. सेतु निगम की इन हरकतों पर एसपी ट्रैफिक की नजर लगातार बनी हुई थी.


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उन्होंने कई बार जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान से भी इस बात को कहा था. पुलिस ने सेतु निगम को चिट्ठियां भी लिखी थीं लेकिन सेतु निगम को जैसे किसी का कोई डर ही नहीं था.


- इस फ्लाईओवर का प्रोजेक्ट 2 मार्च 2015 को स्वीकृत हुआ था
- 25 अक्तूबर को निर्माण कार्य शुरु कर दिया गया था
- 2017 में बीजेपी सरकार सत्ता में आई तो काम तेज करने के निर्देश दिए गए.
- प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए मार्च 2018 की डेडलाइन दी गई
- मार्च तक 25 प्रतिशत की काम हो पाया तो डेडलाइन को बढ़ाया गया
- दिसंबर 2018 इस प्रोजेक्ट की वर्तमान डेडलाइन है


एसपी ट्रैफिक ने सेतु निगम के परियोजना प्रबंधक और सहायक अभियंता के खिलाफ धारा 268, 283, 290 और 341 के तहत मामला दर्ज कराया. फिर भी सेतु निगम नहीं जागा. अगर वक्त रहते निगम सही कदम उठाता तो शायद इस हादसे से बचा जा सकता था.


एसपी ट्रैफिक सुरेश चंद रावत ने बताया कि अगर सेतु निगम से बता देता कि वह कोई बड़ा काम कर रहा है तो हम वहां से डाइवर्जन खोल देते. बनारस में सात सड़कों को ब्लॉक किया गया है विकास कार्यों के लिए, अगर निगम बता देता तो यहां भी ब्लॉक कर दिया जाता.


उन्होंने कहा कि डीएम और कमिश्नर की किसी बैठक में आना भी निगम के अधिकारियों ने मुनासिब नहीं समझा. ना ही चिट्ठियों का जवाब दिया गया.