कानपुर: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दिल्ली के एम्स में भर्ती हैं. यूरीन ट्यूब में इनफेक्शन की वजह से उन्हें भर्ती कराया गया था. डॉक्टरों के मुताबिक उनकी हालत नाजुक बनी हुई है. करीब 10.30 बजे उनका मेडिकल बुलेटिन फिर जारी किया जा सकता है. बात करें उनके बीते समय कि तो बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री ने कानपुर को अपना सबसे कीमती वक्त दिया है उन्होंने डीएवी कॉलेज से बीए और स्नातक और राजनीती शास्त्र से एमए पास कर के कानपुर से राजनीती के गुण सीखे.


कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ गंगा किनारे हसी ठिठोली और व्यायाम कर गंगा का स्नान करते थे. छात्र जीवन से उन्हें कविता लिखने का शौक था अपनी लिखी कविताएं दोस्तों और टीचरों को सुनाते थे. जितनी ही उनकी कविताओं में गहराई थी उनका व्यक्तित्व भी उतना ही गहरा था.


अचानक खबर आई की पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अचानक तबियत बिगड़ गई तो उनकी सलामती के लिए चारो तरफ दुआएं मांगी जा रही हैं


93 साल के हो गए हैं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी


पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अब 93 साल के हो गए हैं. राजनीती से सन्यास लेने के बाद उनका स्वस्थ्य ख़राब होता चला गया, अब तो वह किसी को पहचानते भी नहीं हैं. छात्र जीवन में उनके साथी उन्हें अटल कह कर पुकारते थे. जैसा नाम वैसे ही उनके काम भी थे, अटल एक मजबूत और दृढ़ निश्चय वाले इंसान हैं. शांत और सौम्य स्वभाव के कारण उनके साथी और विरोधी दोनों उनके फैन थे.


अटल जब बोलते थे तो विपक्ष भी सुनता था
शाम के वक्त दोस्तों के साथ उनकी गंगा किनारे महफ़िल लगती लगती थी. जिसमें आजादी से जुड़े टापिक, कविताएं और गाने गाते थे, इसकी बाद गंगा के तट पर ही व्यायाम करते थे. गंगा स्नान के बाद सभी दोस्त अपने-अपने घर लौट आते थे. वह दिए की रौशनी में पढ़ाई करते थे इसके बाद गहरी सोच में डूबकर अपनी कविताओं को संजोते थे. विरोधियों को भी अपना कायल बनाने की कला पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपाई में थी. वह अपने वक्तव्य में खो जाते थे जब वह भरे मंच से बोलते थे तो विपक्षी भी चोरी चुपके उनके भाषण को सुनने आते थे. नेता विपक्ष के रूप में जब वह लोक सभा में अपनी बात रखते तो सत्ता पक्ष भी उनको सुनता था.


हमेशा अपनी असफलता से ली सीख
ऐसा नहीं है कि राजनीति में हमेशा उन्हें सफलता मिली हो, जब पहली बार लोक सभा का चुनाव लड़े तो हार गए. इस हार से वह आहत नहीं हुए बल्कि हार से बहुत सीखने का मौका मिला. सन 1957 में जन संघ ने अटल बिहारी वाजपेयी को दोबारा लोक सभा के चुनाव में तीन लोक सभा सीटों से चुनाव लड़ाया. जिसमें भी उन्हें दो स्थानों पर हार का सामना करना करना पड़ा और लखनऊ से अपनी सीट बचा पाने में कामयाब हुए. उन्होंने कभी भी अपनी असफलता की अवहेलना नहीं की बल्कि उससे सीखने का प्रयास किया.


कानपुर के डीवीवी कॉलेज के उनके साथी इस दुनिया में नहीं हैं. आज भी उनकी यादों को कानपुर वासियों ने दिल छुपा कर रखा है. यही वजह है कि उन्होंने विरोधियों के दिल में भी जगह बनाई है. कानपुर का एक-एक शख्स उनके लिए दुआ कर रहा है कि वह जल्द ही स्वस्थ्य होकर लौटें.