गोरखपुर के भाजपाइयों का सुषमा स्वराज से रहा है गहरा नाता, इस शख्स को 'अन्नदाता' कहकर बुलाती थीं पूर्व विदेश मंत्री
बीजेपी के कार्यकर्ता और उत्तर प्रदेश व्यापार कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष पुष्पदंत जैन ने कहा कि सुषमा जी का अन्नदाता कहकर बुलाना वे आजीवन भूल नहीं सकते हैं.
गोरखपुरः अपने विनम्र व्यवहार और वाक्-पटुता से लोगों का दिल जीतने वालीं पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से जो भी मिला, उनका मुरीद हो गया. हर दिल अजीज सुषमा स्वराज से गोरखपुर के भाजपाइयों से गहरा नाता रहा है. वे जब भी गोरखपुर आईं, उनके विनम्र व्यवहार के भाजपाई कायल हो गए. यही वजह है कि कल जब उनके निधन की खबर गोरखपुर पहुंची, तो बीजेपी कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई. इस बीच बीजेपी के कार्यकर्ता और उत्तर प्रदेश व्यापार कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष पुष्पदंत जैन ने कहा कि सुषमा जी का अन्नदाता कहकर बुलाना वे आजीवन भूल नहीं सकते हैं.
पुष्पदंत जैन बताते हैं कि साल 2002 में सुषमा स्वराज पूर्व केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ल के समर्थन में साहबगंज में सभा को संबोधित करने के लिए आईं थीं. दूसरे दिन उन्हें रास्ते में सभाएं करते हुए वाराणसी तक जाना था. वाराणसी तक उन्हें ले जाने की जिम्मेदारी पुष्पदंत जैन को दी गई. वे बताते हैं कि विधानसभा चुनाव के पहले उनकी गोरखपुर से वाराणसी के बीच 14 सभाएं लगी हुई थी. गोरखपुर में शाम की सभा करने के बाद उन्हें दूसरे दिन वाराणसी के लिए निकलना था. सुषमा जी को वाराणसी तक पहुंचाने की जिम्मेदारी पार्टी की ओर से उन्हें सौंपी गई.
उनकी फिएट कार से सुषमा स्वराज, शैल श्रीवास्तव और खुद पुष्पदंत जैन वाराणसी के लिए निकले. रास्ते में करीब 14 जगहों पर उनकी सभाएं हुईं. उन्होंने बताया कि डायबिटीज से पीडि़त होने के कारण भाषण समाप्त होने के बाद उन्हें खाने के लिए कुछ चाहिए होता था. उनके अनुरोध पर पुष्पदंज जैन ही उन्हें मखाना और मेवा खाने को देते थे. सुषमा स्वराज दो-चार टुकड़े उठाने के बाद उनका आभार व्यक्त करतीं और कार आगे बढ़ जाती. आगे की सभा के दौरान मिलने वाले लोगों से वे उनका परिचय भी 'अन्नदाता' कहकर देती थीं.
वे बताते हैं कि उनके भीतर गजब की विनम्रता और क्षमता रही हैं. लगातार 14 सभाएं करने के बाद भी उनके चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं दिखाई दिया. उन्होंने वाराणसी के मंडुआडीह में आखिरी सभा बीजेपी प्रत्याशी हरीश श्रीवास्तव के पक्ष में की. रात अशोक धवन के घर आराम करने के बाद दूसरे दिन वे दिल्ली रवाना हो गईं. उसके बाद वे जब भी गोरखपुर आईं पुष्पदंत जैन को अन्नदाता कहकर ही संबोधित किया. साल 2012 में वे सिद्धार्थनगर जाते समय थोड़ी देर के लिए गोरखपुर रुकी थीं.
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