गोरखपुर: बच्‍चे हर माता-पिता की आंखों के तारे होते हैं. दीपक, खुशी, सूरज और मुस्‍कान सरीखे ऐसे ही प्‍यारे और नन्‍हें-मुन्‍ने बच्‍चों की लाश उठाए बोझिल पिता का कंधा कितना भारी हो जाता होगा, इसका अंदाज लगाना भी मुश्किल है. ऐसा लगता है जैसे माताओं का करुण क्रंदन दिल को चीर देगा. बीआरडी मेडिकल कालेज में ऑक्‍सीजन कांड की आज पहली बरसी है. जहां आक्‍सीजन बाधित होने से पिछले साल 10-11 अगस्‍त की रात 36 बच्‍चों की मौत हो गई थी. इस कांड में किसी घर का दीपक हमेशा के लिए बुझ गया, तो किसी घर की खुशियां हमेशा के लिए रूठ गईं.

बीआरडी मेडिकल कालेज में पिछले साल 10-11 अगस्‍त की रात ऑक्‍सीजन बाधित होने से 36 बच्‍चों की मौत ने पूरे देश को हिला दिया था. मरने वालों में नवजात भी थे और इंसेफेलाइटिस पीडि़त भी. भले ही ये घटना राष्‍ट्रीय सुर्खियां बनीं. लेकिन, उन माता-पिता के लिए ये ऐसा दर्द देने वाली घटना थी, जिसे वो जीवनभर की टीस लेकर जी रहे हैं. ये कांड भले ही बीआरडी में हो रही बच्‍चों की मौत को सुर्खियों में ले आया हो. लेकिन, इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारी से हर रोज दम तोड़ रहे बच्‍चों के परिजनों की सुधि न तो कभी सरकारों ने ली और न ही राजनीतिक पाटियों ने. हर साल यहां चुनाव आने पर बड़े-बड़े वादे तो किए गए, लेकिन बच्‍चों की मौत का सिलसिला नहीं रुका.

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8 से 10 की संख्‍या में हर रोज दम तोड़ रहे बच्‍चों की मौत न तो कभी राष्‍ट्रीय सुर्खियां बनी और न ही किसी ने उन माताओं का करुण क्रंदन ही सुना. चार दशक से पूर्वांचल में अपना पांव पसारी इस बीमारी ने हजारों मासूमों को असमय ही काल के गाल में समा लिया. लेकिन, नेता और सरकारें आती रहीं और राजनीति की रोटियां सेकनें के बाद अपने वादों को भूलती रहीं.



इस कांड में गोरखपुर के बेलीपार के बाघागाड़ा के रहने वाले ब्रह्मदेव यादव ने अपने दो जुड़वां नवजात बच्‍चों को खो दिया. वहीं बिछिया के रहने वाले जाहिद ने बेटी खुशी को खो दिया. गोरखपुर के झंगहा के प्रीति-विजय, गुलरिहा के हाफिजनगर के सुभाष, नौसड़ के दामोदर, जंगल एकला के बहादुर ने बेटे दीपक को खो दिया. ऐसे ही अनेक माता-पिता ने अपने नवजात और इंसे‍फेलाटिस पीडि़त बच्‍चों को इस त्रासदी में दम तोड़ते देखा है. ये असहाय 10-11 अगस्‍त की स्‍याह रात अपने मासूमों की जिंदगी बचाने के लिए एम्‍बू बैग से ऑक्‍सीजन को बच्‍चों के फेफड़े तक पहुंचाते रहे लेकिन, आखिरकार उन्‍होंने दम तोड़ दिया.

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साल 2017 में ऑक्‍सीजन बाधित होने की घटना ने इंसेफेलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारी से हो रही बच्‍चों की मौत को भी राष्‍ट्रीय सुर्खियों में ला दिया. इनमें एक से दो दिन के नवजात भी थे, जिन्‍होंने अभी अपनी आंखें भी नहीं खोली थीं. ये ऐसी घटना थी, जिसने बीआरडी ही नहीं पूरे देश में हड़कंप मचा कर रख दिया.

23 अगस्‍त 2017 को के. के. गुप्‍ता महानिदेशक चिकित्‍सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण उत्‍तर प्रदेश लखनऊ की ओर से हजरतगंज थाने में सभी 9 आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 408, 308, 120 बी, 420, भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनिकम की धारा 8, इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्‍ट 1956 की धारा 15 और सूचना और तकनीकी अधिनियम 2000 की धारा 66 के तहत अभियोग पंजीकृत किया गया था. 24 अगस्‍त को इसे गोरखपुर के कैण्‍ट थाने में ट्रांसफर कर दिया गया था.

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इस मामले में 9 आरोपियों निलंबित प्राचार्य डा. राजीव मिश्र, गोरखपुर के गोला में तैनात उनकी पत्‍नी होमियोपैथिक चिकित्‍साधिकारी डा. पूर्णिमा शुक्‍ला, एईएस वार्ड के 100 बेड के नोडल प्रभारी डा. कफील खान, पुष्‍पा सेल्‍स का मालिक मनीष भंडारी, एनेस्‍थीसिया विभाग के एचओडी डा. सतीश, उदय प्रताप शर्मा, सहायक लिपिक लेखा संजय कुमार त्रिपाठी, कनिष्‍ठ सहायक लेखानुभाग सुधीर कुमार पाण्‍डेय, चीफ फार्मासिस्‍ट गजानन्‍द जायसवाल को जेल जाना पड़ा था.



इसमें पिछले माह 31 जुलाई को 11 माह बाद डा. पूर्णिमा शुक्‍ला की सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद रिहाई हुई. इसके पहले 12 अप्रैल को पुष्‍पा सेल्‍स के मालिक मनीष भंडारी को जमानत मिली. उसे सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद गोरखपुर जेल से रिहा किया गया था.

उसके बाद हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद डा. कफील खान को 28 अप्रैल को जेल से रिहा किया गया था. 18 मई को डा. सतीश हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद जेल से बाहर आए. 3 जुलाई को डा. राजीव मिश्रा को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद 9 जुलाई को रिहा किया गया. अभी ऑक्‍सीजन कांड के आरोपी उदय प्रताप शर्मा, संजय कुमार त्रिपाठी, सुधीर कुमार पाण्‍डेय, गजानन्‍द जायसवाल गोरखपुर मं‍डलीय कारागार में बंद हैं.