गोरखपुर: देश में हिन्‍दू-मुस्लिम को लेकर तमाम राजनीति और मनमुटाव होना आम बात है. लेकिन, इनकी दोस्‍ती जहां भाईचारगी का संदेश देती है, तो वहीं साम्‍प्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी पेश करती है. ये ऐसे दोस्‍त हैं जिनके जानने वाले इनकी दोस्‍ती की कसमें खाते हैं. इसकी वजह भी आम नहीं है. क्‍योंकि एक-दूसरे पर जान छिड़कने वाले ये दोस्‍त अपने धर्म के प्रति जितने कट्टर हैं. उतना ही दूसरे के धर्म का सम्‍मान भी करते हैं. इनकी दोस्‍ती भी ऐसी है कि एक-दूसरे से प्रभावित होकर भजन गायक रोजा, तो उनके मुस्लिम दोस्‍त चैत्र और शारदीय नवरात्रि का व्रत रखते हैं.


हिन्‍दू-मुस्लिम एकता की मिसाल हैं लालबाबू, 49 सालों से रख रहे हैं रोजे


गोरखपुर के दीवान बाजार के रहने वाले 53 वर्षीय प्रख्‍यात भजन गायक नंदू मिश्रा और इमामबाड़ा इस्‍टेट में रहने वाले 51 वर्षीय सैयद शाहाब अहमद की दोस्‍ती किसी से छुपी नहीं है. उनकी दोस्‍ती कितनी गहरी है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है प्रख्‍यात भजन और जगराता गायक शिव भक्‍त होने के बाद भी रमजान के पाक माह में 5 दिन रोजा रखते हैं. वहीं उनके दोस्‍त सैयद शाहाब अहमद चैत्र और शारदीय नवरात्रि के पहले और अंतिम दिन व्रत रखते हैं. नंदू मिश्रा भजन गायिकी का बड़ा नाम है. उन्‍होंने देश और विदेश में भी कई शो किए हैं. उन्‍हें वर्ष 2012 में सिंगापुर में ‘भक्‍त शिरोमणि’ और 2008 में बैंकॉक में हिन्‍दू धर्म सभा की ओर से ‘भजन सम्राट’ की उपाधि से सम्‍मानित किया जा चुका है. वहीं विंध्‍याचल में उन्‍हें वर्ष 2006 में ‘जगराता सम्राट’ की उपाधि से सम्‍मानित किया जा चुका है.



शिवभक्‍त नंदू मिश्रा पूर्वोत्‍त्‍र रेलवे में चीफ टीटीईआई के पद पर कार्यरत हैं. उनके पिता पं. रामजी मिश्र भजन गायक और लेखक रहे हैं. वे अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के तैराक भी रहे हैं. यही वजह है कि तैराकी भी नंदू और उनके बेटे अंजनी को विरासत में मिली है. दोनों अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर के तैराक हैं. उनका पूरा परिवार भी तैराकी का शौक रखता है. नंदू मिश्रा और सैयद शाहाब अहमद की दोस्‍ती 35 साल पुरानी है.


शाहाब जुबिली चौराहा पर इस्‍लामियां इंटर कालेज में पढ़ते रहे हैं. वहीं पर नंदू मिश्रा का घर रहा है. वहीं से इनकी दोस्‍ती की शुरुआत हुई. नंदू मिश्रा पिछले 40 सालों से भजन और जगराता गाते आ रहे हैं. जब दोनों की दोस्‍ती परवान चढ़ी, तो नंदू मिश्रा ने रमजान के बारे में शाहाब से पूछा और प्रभावित होकर वे रमजान के माह में हर साल 5 रोजा रखने लगे. वहीं शाहाब भी नंदू मिश्रा के साथ समारोह और मां के जगराते में जाते रहे हैं. नंदू मिश्रा से प्रभावित होकर वे भी चैत्र और शारदीय नवरात्रि का पहले और अंतिम दिन व्रत करने लगे. दोनों 25 सालों से लगातार ऐसा कर रहे हैं.


नंदू मिश्रा के 12 भजन के एलबम रिलीज हो चुके हैं. वहीं वे एक हिन्‍दी फिल्‍म मनवा के मीत में भी काम कर चुके हैं. इसके साथ ही ‘ढाई आखर प्रेम के’ नाटक में उन्‍होंने कबीर दास जी की मुख्‍य भूमिका निभाई है. उनकी फिल्‍म ‘मां की महिमा’ भी जल्‍द रिलीज होने वाली है. वे अभी तक 10,000 से अधिक भजन गा चुके हैं. वे हिन्‍दी, भोजपुरी, पंजाबी और मारवाड़ी भाषाओं में भी भजनें गाते हैं. उनकी मानें तो वे जागरण नहीं जन-जागरण करते हैं और सभी धर्मों को एक ही भाव से देखते हैं. यही वजह है कि उनके जगराते में धर्म की बंदिशें टूटती नजर आती हैं. शाहाब भी उनकी बात से इत्‍तेफाक रखते हैं. गायक गुरुदास मान, लखबीर सिंह लक्‍खा, अमिताभ बच्‍चन, शाहरुख खान, शान, दलेर मेहंदी, अनूप जलोटा आदि से उनके अच्‍छे संबंध हैं.



नंदू मिश्रा और सैयद शाहाब की दोस्‍ती ऐसी है कि दुर्गापूजा, होली-दिवाली, ईद-बकरीद सहित सभी त्‍योहार वे साथ मिलकर मनाते हैं. जहां शाहाब उनके साथ जगराता में भी सम्मिलित होते हैं. तो वहीं नंदू भजन के अलावा कव्‍वाली और शायरी के समारोह में भी साथ शामिल होते हैं. दोनों का पारिवारिक संबंध है. उनकी दोस्‍ती जग जाहिर है. शाहाब बताते हैं कि नंदू मिश्रा के परिवार में आज तक किसी ने चाय नहीं पी है. नंदू मिश्रा के परिवार में पत्‍नी शशि मिश्रा के अलावा दो बेटियां अपराजिता और अर्पणा हैं. अपराजिता दिल्‍ली में कंपनी सेक्रेटरी हैं. तो वहीं अपर्णा दिल्‍ली में ही लेक्‍चरर हैं. उनके पुत्र अंजनी पूर्वोत्‍तर रेलवे लखनऊ में टीटीई हैं.


सैयद शाहाब अहमद एक प्राइवेट कंपनी में 35 वर्षों से चीफ फील्‍ड मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. उनके परिवार में पत्‍नी शाहिना अहमद, दो बेटियां शिफा अहमद, हिबा अहमद और बेटा सैयद अर्सलान अहमद हैं. शिफा बीटेक कर रही हैं. हिबा 12वीं पास की हैं. तो वहीं बेटा अर्सलान 9वीं कक्षा का छात्र है. नंदू 3 भाई और एक बहन में दूसरे और शाहाब 6 बहन और 4 भाई में चौथे नंबर पर हैं. शाहाब बताते हैं कि बहुत से लोगों को सेहरी और इफ्तार की दुआ नहीं याद रहती है. लेकिन, उनके दोस्‍त नंदू को सेहरी और इफ्तार की दुआएं जुबान पर याद है. रोजे के दौरान वे इसका पालन भी करते हैं.


शाहाब 1992 के कर्फ्यू के दौरान का एक वाकया याद करते हुए बताते हैं कि उस समय इमामबाड़ा इस्‍टेट पर भी काफी फोर्स लगी हुई थी. नूंद धोती-कुर्ता और माथे पर लाल टीका लगाए इमामबाड़े के दरवाजे पर आकर जोर-जोर से दरवाजा खोलने के लिए आवाज देने लगे. उनकी आवाज सुनकर वहां तैनात सुरक्षाकर्मी घबरा गए. उनका लिबास देखकर उन्‍होंने नंदू से वापस जाने के लिए कहा. तभी शाहाब भी अंदर से आ गए और उन्‍होंने दरवाजा खोलने के लिए कहा. लेकिन, सुरक्षाकर्मी इसके लिए तैयार नहीं हुए. जब जबरन दरवाजा खुला तो दोनों ऐसे गले मिले, जैसे कई साल का कोई बिछड़ा मिल गया हो. इसके बाद सुरक्षा‍‍कर्मियों ने राहत की सांस ली. दरअसल नंदू शाहाब को पास और खाने-पीने की चीजें पहुंचाने के लिए आए थे.


नंदू और शाहाब की दोस्‍ती जहां गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश करती है. तो वहीं वे समाज को सर्वधर्म समभाव का संदेश भी देती है. हमारा देश अनेकता में एकता के इसी संदेश के लिए पूरे विश्‍व में जाना जाता है. जिसे नंदू और शाहाब साकार समाज के लिए मिसाल बने हुए हैं.