हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल है गोरखपुर का इमामबाड़ा, यहां रखी है 300 साल पुरानी सोने-चांदी की ताजिया
सबसे ख़ास बात ये है कि यहां 300 साल से रखी सोने-चांदी की ताजिया मुस्लिम के साथ हिन्दू धर्म के लोगों के लिए भी खासा महत्व रखती है. ऐसी मान्यता है की यहां आने वाले लोगों की मुराद कभी अधूरी नहीं रहती है.
गोरखपुर: गोरखपुर का इमामबाड़ा सदियों से हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल बना हुआ है. यहां रखे हुए 300 साल पुराने सोने-चांदी के ताजिया का दीदार हर कोई करना चाहता है. मोहर्रम के मेले के दौरान दोनों ताजिया के अकीदतमंदों के दीदार के लिए पेश-ए-खिदमत कर दिया जाता है. यहां के मियांबाजार में इमामबाड़े में रखी सोने-चांदी की ताजिया के दीदार के लिए अकीदतमंदों की भारी भीड़ जुट रही है.
गोरखपुर का धार्मिक महत्त्व के मामले में अलग इतिहास रहा है. इसका जीता-जागता उदाहरण मियां साहेब के इमामबाड़े में देखने को मिल जाएगा. मोहर्रम के महीने में इस इमामबाड़े में बाबा रोशन अली शाह की मजार पर मुस्लिम धर्म के साथ हिन्दू धर्म के लोग भी बाबा के मजार पर सजदा करने आ रहे हैं. सबसे ख़ास बात ये है कि यहां 300 साल से रखी सोने-चांदी की ताजिया मुस्लिम के साथ हिन्दू धर्म के लोगों के लिए भी खासा महत्व रखती है. ऐसी मान्यता है की यहां आने वाले लोगों की मुराद कभी अधूरी नहीं रहती है.
यहां आने वाले हिन्दू धर्म के लोग हर साल यहां पर इबादत के लिए आते हैं. वे बाबा के मजार पर आकर दुआ मांगते हैं और दुआएं पूरी होने पर उनका विश्वास और बढ़ जाता है. कई ऐसे भी हिन्दू परिवार हैं जो बचपन से मोहर्रम के समय इमामबाड़ा में सोने-चांदी की ताजिया को देखने आते हैं. इसके साथ ही वे बाबा से दुआ भी मांगते हैं. यही नहीं यहां पर मुहर्रम के समय में दूर-दूर से लोग सोने और चांदी के ताजियों का दीदार करते हैं.
ये इकलौता ऐसा इमामबाड़ा है जहां सोने-चांदी की ताजिया रखी हुई है. हर साल मोहर्रम में केवल 10 दिनों के लिए इसे बाहर निकाला जाता है और इसीलिए इसका महत्त्व ज्यादा है. अदनान फर्रुख अली शाह उर्फ़ मियां साहेब बताते हैं कि बाबा रोशन अली शाह की करामात को सुनकर नबाब आसुफुदौला की बेगम ने बाबा को सोने-चांदी की ताजिया उपहार के रूप में दिया था. उनका कहना है की यहां जलने वाली धूनी का भी विशेष महत्व है.
इमामबाड़ा स्टेट मुग़ल काल के वास्तु कला का भी बेजोड़ नमूना है. इसके कुल चार बुलंद दरवाजे हैं. इसका पूरब का फाटक तो हमेशा खुला रहता है. लेकिन पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में बने फाटक को मुहर्रम के दौरान ही खोला जाता है. मुहर्रम में इस ताजिया को देखने के लिए आने वाले लोगों के लिए मुहर्रम का समय खास होता है. शहर से दूर रहने वाले भी मुहर्रम के दौरान यहां पर जरूर आते हैं.