गोरखपुर दंगे में बढ़ सकती हैं सीएम योगी की मुश्किलें, केस की मंजूरी के लिए चीफ सेक्रेट्री हाईकोर्ट में तलब
इलाहाबाद: गोरखपुर में साल 2007 में हुए साम्प्रदायिक दंगे के मामले में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. इस केस में योगी समेत बाकी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की यूपी सरकार की मंजूरी के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सूबे के चीफ सेक्रेट्री को ग्यारह मई को तलब कर लिया है. चीफ सेक्रेट्री को ग्यारह मई को केस से जुड़े सभी रिकॉर्ड के साथ व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में पेश होना होगा.
सीबीआई या किसी दूसरी स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने की मांग
कोर्ट ने चीफ सेक्रेट्री से यह बताने को कहा है कि जब आरोपी खुद सूबे के सीएम और गृह मंत्री हैं तो यूपी सरकार कितनी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ इस केस में मुकदमा चलाने की मंजूरी देगी. दंगे की जांच सीबीसीआईडी के बजाय सीबीआई या किसी दूसरी स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने की मांग को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में इन दिनों सुनवाई चल रही है. सीएम योगी आदित्यनाथ भी इस केस में आरोपी है और उनके खिलाफ कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज है. कोर्ट में अब इस बात पर बहस चल रही है कि जब आरोपी खुद सूबे के मुखिया हैं तो ऐसे में इस केस में मुकदमा चलाने की मंजूरी कैसे मिल पाएगी.
गौरतलब है कि साल 2007 की 27 जनवरी को गोरखपुर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ था. आरोप है कि दंगे में अल्पसंख्यक समुदाय के दो लोगों की मौत हुई थी, जबकि कई लोग घायल हुए थे. आरोप है कि दंगा तत्कालीन बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ, विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और उस वक्त की मेयर अंजू चौधरी द्वारा रेलवे स्टेशन के पास भड़काऊ भाषण देने के बाद भड़का था. विवाद मुहर्रम पर ताजिये के जुलूस के रास्तों को लेकर था.
सीजेएम कोर्ट के आदेश पर दर्ज हुई थी एफआईआर
इस मामले में योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के कई नेताओं के खिलाफ सीजेएम कोर्ट के आदेश पर एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर में कई दूसरी गंभीर धाराओं के साथ ही साम्प्रदायिक आधार पर समाज को बांटने की आईपीसी की धारा 153 A भी शामिल थी. क़ानून के मुताबिक़ 153 A के तहत दर्ज केस में केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति के बाद ही कोर्ट में मुक़दमे की सुनवाई शुरू होती है.
योगी आदित्यनाथ समेत दूसरे बीजेपी नेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज किये जाने का आदेश दिए जाने का केस गोरखपुर के पत्रकार परवेज परवाज और सामाजिक कार्यकर्ता असद हयात ने दाखिल किया था. केस दर्ज होने के बाद मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी गई थी. हालांकि एफआईआर दर्ज होने के आदेश और जांच पर आरोपी मेयर अंजू चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट से काफी दिनों तक स्टे ले रखा था. 13 दिसंबर साल 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने स्टे वापस ले लिया था.
सूबे के सीएम बन गए केस के आरोपी योगी आदित्यनाथ
परवेज परवाज और असद हयात ने बाद में इस मामले की जांच सीबीसीआईडी के बजाय सीबीआई या दूसरी स्वतंत्र एजेंसी से कराए जाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की थी. अखिलेश सरकार ने मामले को लटकाते हुए योगी इस केस में योगी समेत बाकी आरोपियों के खिलाफ केस चलाए जाने की मंजूरी नहीं दी थी. इस बीच यूपी में सत्ता परिवर्तन हो गया और आरोपी योगी आदित्यनाथ सूबे के सीएम बन गए. गृह मंत्रालय भी उन्ही के पास है.
इस पर याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि आरोपी जब खुद ही सूबे के मुखिया है तो ऐसे में राज्य सरकार मुकदमा चलाने की मंजूरी कैसे देगी. जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस यूसी श्रीवास्तव की डिवीजन बेंच ने इस पर यूपी के चीफ सेक्रेट्री को व्यक्तिगत तौर पर ग्यारह मई को कोर्ट में तलब कर लिया है. अगर इस मामले में सीबीआई जांच के आदेश होते हैं तो मामला सियासी गलियारों में तूल पकड़ सकता है और सीएम योगी आदित्यनाथ मुश्किल में घिर सकते हैं.