गोरखपुरः मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय के चौथे दीक्षांत समारोह में 21 मेधावियों को 34 गोल्‍ड मेडल और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया. इस अवसर पर इंफोसिस के संस्‍थापक इं. एनआर नारायण मूर्ति को डीएससी की मानद उपाधि प्रदान की गई. समारोह के मुख्‍य अतिथि के रूप में उपस्थित मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ ने प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण कर रहे और उपाधि प्राप्‍त करने वाले भावी इंजीनियर्स से आह्वान करते हुए कहा कि वे सरकार की ओर से गरीबों के लिए उपलब्‍ध होने वाली योजनाओं को कम लागत तक उन तक पहुंचाने की तकनीक विकसित करें. जिससे वे सरकार की भी मदद कर सकें.


योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि उपाधि धारण करने और नौकरी पाने के बाद वे यहीं तक सीमित न रहें कि देश और समाज कि लिए उनकी जिम्‍मेदारियां खत्‍म हो गई हैं. वे समाज को दिशा देने के साथ जिस तकनीकी शिक्षा को वे ग्रहण कर रहे हैं उसका देश और समाज के लिए समर्पित करें. छात्र-छात्राओं के साथ इस प्रौद्योगिकी विश्‍वविद्यालय का भी ये प्रयास होना चाहिए कि वे गरीबों के लिए सरकार की ओर से मिलने वाली योजनाओं को कम लागत में आसानी से उन तक पहुंचाने के लिए अपने तकनीकी ज्ञान का प्रयोग करें. उन्‍होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा है कि सरकारी नौकरियां सबको दे पाना संभव नहीं है. ऐसे में युवाओं को नौकरी करने वाला नहीं, बल्कि नौकरी देने वाला बनना होगा. तभी देश और समाज का विकास होगा.


उन्‍होंने उपाधि प्राप्त करने के लिए इंफोसिस के संस्थापक को बधाई देते हुए कहा कि दीक्षांत के पहले कार्यक्रम के लिए गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के चतुर्थ दीक्षांत समारोह में उपस्थित प्रदेश की राज्यपाल और विश्वविद्यालय की कुलाधिपति श्रीमती आनंदीबेन पटेल का स्‍वागत करता हूं. उन्‍होंने समारोह के विशिष्ट अतिथि इंफोसिस के संस्थापक इंजीनियर एनआर नारायण मूर्ति, प्रदेश की प्रमुख सचिव प्राविधिक शिक्षा श्रीमती राधा चौहान, विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर श्रीनिवास सिंह और कार्य परिषद के सदस्य के साथ विद्यार्थीजनों को बधाई दी.


सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने कहा कि जिन लोगों ने उपाधि प्राप्त कर प्रतिज्ञा ली है, वे देश के अंदर आमजन के जीवन स्तर को उठाने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उन भावनाओं समझें. उन्‍होंने कहा कि देश 2022 में जब अपनी आजादी के 150 वर्ष पूरे कर रहा होगा, इस अवसर पर हम कैसा भारत चाहते हैं, ये सोचना होगा. उनके संकल्पों के साथ जोड़कर एक नए भारत का एक श्रेष्ठ भारत का दुनिया की महाशक्ति के रूप में उभरते हुए भारत के सपने को साकार कर सकेंगे.


योगी ने कहा कि दीक्षांत समारोह का हमारा कार्यक्रम गुरुकुल की परंपराओं को भी आगे बढ़ाता है. जैसे गुरुकुल में हम उपनिषदों की भावनाओं को हमने मंत्र के रूप में इस दीक्षांत समारोह में साकार किया है. ये जीवन का वो मंत्र है जो हमें सदैव जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है. हमें उन मार्गों का अनुसरण करने की प्रेरणा देता जो हमें चुनौती के साथ सत्य का मार्ग का अनुसरण करने और विपरीत परिस्थितियों में विधायक होने की प्रेरणा प्रदान करते हैं. भारत की परंपरा में वास्तव में जब हम धर्म की बात करते हैं, तो धर्म हमारे यहां केवल उपासना विधि नहीं है, इसे हमने एक जीवन पद्धति माना है. जो हमें नैतिक मूल्यों, सदाचार, और कर्तव्य के मार्ग का अनुसरण करने की प्रेरणा प्रदान करता है.


भारत के उपनिषदों का भाव दीक्षांत समारोह का यह मंत्र धर्म की इसी व्याख्या को आप सबके सामने प्रस्तुत करता है. स्वाभाविक रूप से आप सब ने आज यहां पर कुलाधिपति के समक्ष जो प्रतिज्ञा ली है कि हम अपने कर्तव्यों का ईमानदारी पूर्वक यानी धर्म के पथ का अनुसरण करेंगे. सदाचार और नैतिक मूल्यों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़े यही इसका भाव है. जीवन पर्यन्‍त हम किसी व्यक्ति, समाज और उसके अंदर गठित होने वाली घटना से सीखते हैं. जीवन क्योंकि सीखने का ही नाम है. कोई व्यक्ति ये नहीं कह सकता है कि वह जीवन में परफेक्ट है. उन सामाजिक मूल्यों से कुछ हम प्राप्‍त करके जब हम आगे बढ़ते हैं, तो जीवन के पथ पर हमें सीखने का अवसर प्राप्त होता है.


जो व्यक्ति यह सोच लेता है कि प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद हमारा कार्य पूरा हो गया है, तो ऐसे भीड़ तंत्र का हिस्सा बनकर भीड़ का हिस्सा न बनें. कोई भी उपाधि प्राप्त करने के बाद यह न सोचे कि आप जीवन में परफेक्ट हो गए हैं. उपाधि आपके जीवन में आगे बढ़ने के पद पर सहायक हो सकती है. इसके उदाहरण इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायणमूर्ति आपके सामने हैं. हमारा देश 1947 में बना है. ये हजारों वर्षों की यात्रा है. बहुत से अच्छे और बुरे पड़ाव से गुजरा है. हमें ये संकल्प 1947 में भी ले सकते थे कि हमें गरीबी, भूखमरी को हटाना है. संपूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य के साथ अन्य सुविधाएं सभी गरीब के पास हो, उनके पास शौचालय और सिर ढकने के लिए साथ हो. हर नागरिक के पास अपनी योग्यता और क्षमता के अनुरूप रोजगार और नौकरी की गारंटी हो. देश के अंदर रूढ़ियों और कुरीतियों का परिमार्जन हो. एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को साकार कर सकें. यह संकल्प 1947 में भी लिया जा सकता था. लेकिन 2014 में भाजपा की सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस सपने को साकार किया है. गरीबों को विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलना इसे दर्शाता है.


जो संकल्प मात्र 5 वर्ष पहले लिया गया उसे पूरा किया गया. इस संकल्प को प्राप्त करने में हमें सफलता इसलिए मिली क्योंकि हमने तकनीक का इस्तेमाल किया. हमने किसानों के कर्ज माफी का वायदा किया था. कर्ज माफ करने के लिए हम लोगों ने घोषणापत्र जारी किया था. उस समय मंच पर मैं भी था. चुनाव का परिणाम आने के बाद मुझे ही मुख्यमंत्री बना दिया गया. हमारे सामने चैलेंज था. उस समय प्रदेश की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. उस समय सातवां वेतन लागू करना था. वेतन देने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे. एक लाख रुपए तक के लघु और सीमांत किसान का कर्ज माफ करने के लिए 72,000 करोड़ रुपए की जरूरत रही है.


एक बार कि मुझे भी लगा को यह संभव नहीं हो पाएगा. रिजर्व बैंक ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कर्ज माफी का निर्णय खतरनाक है. कोई भी बैंक सामने नहीं आए. फिर हमने तकनीक का इस्तेमाल किया और आधार को बैंक खाते से जोड़कर यह संख्या 36000 करोड़ पहुंच गई. उसमें भी 24,000 करोड रुपए के कर्ज माफ होने थे. हमने 1 वर्ष के अंदर कर्ज माफी की कार्रवाई को बिना हो-हल्ला के प्रदेश में संपूर्ण किया. हमने तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया, होता तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जो हुआ है, ऐसा ही यहां भी हो रहा होता.


हम जब प्रदेश में सत्ता में आने के पहले दिसंबर 2016 और जनवरी 2017 में जनपद कुशीनगर, सोनभद्र, चित्रकूट सहित कई जनपदों में भूख से मौत की शिकायतें आई. सांसद के रूप में मैंने उन जगहों का दौरा किया था. लेकिन, उसके बाद विधानसभा के चुनाव हुए और मैं मुख्यमंत्री बना. एक विभाग मैंने अपने पास रखा. मैंने प्रमुख सचिव को बुलाया और मैंने पूछा भूख से मौत कैसे हुई, तो उन्होंने कहा कि भूख से मौत नहीं हुई है. मैंने कहा कि मैं खुद देख कर आया हूं. तय हुआ कि जितने भी फेक राशन कार्ड है, उसकी जांच कराई और उसको समाप्त किया. जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं थे उनके राशन कार्ड बनाने की व्यवस्था की. स्मार्ट राशन कार्ड बनाने में 3,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता थी, जिसके लिए हम तैयार नहीं थे. हमने 40 रुपए प्रति स्‍मार्ट राशन कार्ड बनाने के बजाय सामान्य कार्ड बनाकर उसे आधार कार्ड से जोड़ दिया. हम आज 15 करोड़ लोगों को खाद्यान्न उपलब्ध करा रहे हैं. तकनीक ने इन चीजों को कितना आसान बनाया है. सब्सिडी में हमारा कितना पैसा खर्च होता था. 1000 करोड़ रूपया हमने तकनीक का इस्तेमाल कर बचत किया है. यही तो मैं आप सब से कहना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री जी ने एक बात कही है कि 2022 तक हर गरीब को सिर ढकने के लिए छत उपलब्ध कराएंगे. मैं आप सब से यही कहूंगा क्या हम आज ऐसी कोई तकनीक विकसित कर सकते हैं, जो सस्ता भी हो टिकाऊ भी हो और हर उस आपदा से निपटने के लिए सक्षम हो.


क्योंकि जो गरीब होता है, उसके साथ आपदाएं भी साथ चलती हैं. किसी गरीब बस्ती में आग लगती है, तो पूरी बस्ती उसके चपेट में आ जाती है. आपका एक आईडिया हमें ऐसी तकनीक विकसित करने के प्रति अग्रसर कर सकता है, जिससे हम नया सिस्टम तैयार कर सकते हैं. प्रधानमंत्री जी ने यह तय किया है कि 2024 तक हर घर नल उपलब्ध कराएंगे. इंसेफेलाइटिस से हर साल हजारों बच्चे दम तोड़ रहे थे. इसके लिए जागरूक होने की जरूरत है. हमने स्वास्थ्य विभाग, ग्रामीण विकास, पंचायत, नगर, विकास बेसिक शिक्षा और महिला बाल विकास में समन्वय स्थापित किया. स्वास्थ्य विभाग को नोडल विभाग बनाया और जो उसके बाद कार्यक्रम चला स्वच्छता और शुद्ध पेयजल की आपूर्ति का उसके परिणाम देखने को मिले.


जिस बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हजारों बच्चों की मौत होती थी. अगस्त महीने में 500 से 700 बच्चे भर्ती होते थे. डेढ़ सौ से 200 बच्चों की मौत होती थी. लेकिन 2017 में जब हम लोगों ने कार्यक्रम प्रारंभ किया. 2018 में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में केवल 86 मरीज भर्ती हुए थे. जहां डेढ़ सौ से 200 मौतें होती थी, वहां केवल छह मौतें अगस्त महीने में हुई. ऐसी कौन सी तकनीक हो सकती है जो आसानी से कम खर्चे में गांव तक शुद्ध पेयजल हम पहुंचा सकें. सारी नदियां अशुद्ध है. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की हर जगह समस्या है और उसकी तकनीक इतनी महंगी है कि कोई भी अर्बन बॉडी उसे लागू करने में प्रभावी नहीं हो पाई. इसके लिए मैं मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय को आह्वान करूंगा कि इस विश्वविद्यालय को इन चुनौतियों से जूझने के लिए तैयार करना चाहिए.


जीवन में उपाधि प्राप्त कर नौकरी पा जाना है जरूरी नहीं है. उसकी सार्थकता को प्रमाणित करने के लिए हमें ऐसे कार्य करने होंगे, जो क्षेत्र के लोगों के जीवन को किस तरह से हम बेहतर बना सकते हैं, इसके बारे में सोचना होगा.


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