गोरखपुर: योगी आदित्यनाथ के संगठन हिंदू युवा वाहिनी में भी बदलाव का दौर है. संगठन में बागियों की वापसी हो रही है. वहीं सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या आदित्यनाथ अब भी हिंदू युवा वाहिनी से जुड़े रहेंगे. और क्या आदित्यनाथ को इसकी जरूरत अब भी है.


हिंदू युवा वाहिनी के पोस्टर में बागियों की वापसी

गोरखपुर के गलियारों में लगे हिंदू युवा वाहिनी के पोस्टर में बागियों की वापसी हो चुकी है. यूपी चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ बगावत करने वाले हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह की तस्वीर इस बात का ऐलान कर रही है.


यूपी चुनाव के दौरान टिकट बंटवारे से नाराज सुनील सिंह और प्रदेश महामंत्री रामलक्ष्मंण ने नाराजगी जाहिर की थी. बहरहाल इनकी वापसी से ये सवाल उठने लाजमी है कि क्या दोनों को पद से हटाना सिर्फ चुनावी दांव भर था. ये वो संगठन है जिसने योगी आदित्यनाथ का पूर्वांचल इलाके में वर्चस्व बढ़ाया.


लगातार विवादों में भी रही है हिंदू युवा वाहिनी

साल 2002 में योगी ने हिंदू युवा वाहिनी का गठन किया था. इसे एक सांस्कृतिक संगठन बताया गया था. लेकिन इस संगठन का योगी को राजनैतिक फायदा भी मिला. योगी आदित्यनाथ को चुनावों में भारी मतों से जीत मिलने लगी. और संगठन की वजह से योगी अपनी अलग पैठ बनाने में कामयाब रहे. हालांकि हिंदू युवा वाहिनी लगातार विवादों में भी रही है. इस संगठन से जुड़े लोगों के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हुए.

हिंदू युवा वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह पर 70 मुकदमे दर्ज हैं. पंचरूखिया कांड, मोहन मुंडेरा कांड, मऊ दंगा से इस संगठन का नाम जुड़ा. खुद योगी आदित्यनाथ पर भी तीन केस दर्ज हुए. 2007 में आदित्यनाथ को 11 दिनों तक जेल में भी रहना पड़ा. उनके समर्थक अब गोरखपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे पूर्वांचल में फैल चुके हैं. इसके राजनीतिक प्रभाव का फायदा आदित्यनाथ को बीजेपी पर दबाव बनाने और अपनी अहमियत साबित करने में भी मिला. ऐसे में आदित्यनाथ के लिए इस संगठन का मोह त्यागना आसान नहीं है.