लखनऊ: रहस्यमयी 'गुमनामी बाबा' नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे. यह खुलासा एक रिपोर्ट में किया गया है. गुमनामी बाबा के अनुयायी उन्हें 'नेताजी' मानते थे. मामले की जांच करने वाले न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश पर 2016 में समाजवादी पार्टी सरकार द्वारा न्यायाधीश विष्णु सहाय को रिपोर्ट बनाने के लिए नियुक्त किया गया था. अदालत के इस आदेश के पीछे की वजह एक जनहित याचिका थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे.
लोगों ने दशकों तक यह दावा किया कि 'गुमनामी बाबा वास्तव में अपनी पहचान छिपाकर रह रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस हैं.'
गुमनामी बाबा नेताजी के अनुयायी थे और उनकी आवाज नेताजी की तरह थी
पिछले सप्ताह विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में आयोग ने लिखा कि गुमनामी बाबा नेताजी के अनुयायी थे और उनकी आवाज नेताजी की तरह थी.गुमनामी बाबा का निधन 16 सितंबर 1985 हो गया था और उनका अंतिम संस्कार 18 सितंबर 1985 को अयोध्या स्थित गुप्तार घाट पर किया गया.
रिपोर्ट में कहा गया, "फैजाबाद (अयोध्या) स्थित राम भवन से चार चीजें बरामद हुईं, जहां गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी अंतिम समय तक निवास करते रहे, जिनसे यह पता नहीं लगाया जा सकता कि गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे."
कुल 130 पेज की रिपोर्ट में 11 बिंदु बताए गए हैं, जिनमें गुमनामी बाबा के नेताजी का अनुयायी होने के संकेत मिलते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया, "वे (गुमनामी बाबा) नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अनुयायी थे. लेकिन जब लोग उन्हें नेताजी सुभाष चंद्र बोस बुलाने लगे तो उन्होंने अपना आवास बदल दिया."
संगीत, सिगार और खाने के शौकीन थे गुमनामी बाबा
आयोग ने कहा कि वे संगीत, सिगार और खाने के शौकीन थे और उनकी आवाज नेताजी की आवाज जैसी थी जो 'कमांड' का एहसास कराती थी.
आयोग ने कहा कि वे बंगाली थे और वे बंगाली, अंग्रेजी और हिंदी अच्छे से बोलते थे और उन्हें युद्ध और समकालीन राजनीति की अच्छी जानकारी थी लेकिन उन्हें भारत में शासन की स्थिति में रुचि नहीं थी.
एक लेटर से सामने आई सच्चाई
आयोग की रिपोर्ट में न्यायमूर्ति सहाय ने कहा कि 22 जून 2017 को फैजाबाद जिला अधिकारी के कार्यालय स्थित जिला ट्रीजरी में मौजूद दस्तावेजों का निरीक्षण करने पर उन्हें ऐसे सबूत मिले, जिनसे गुमनामी बाबा को नेताजी बताने वाले दावे पूरी तरह नष्ट हो गए.
सहाय ने कहा कि उसमें किसी बुलबुल द्वारा कोलकाता से 16 अक्टूबर 1980 को लिखा गया एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था, "आप मेरे यहां कब आएंगे? हम बहुत खुश होंगे अगर आप नेताजी की जयंती पर यहां आएं."
उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि गुमनामी बाबा नेताजी नहीं थे.
गुमनामी बाबा से बात करने वाले लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे
आयोग ने कई अन्य महत्चपूर्ण खोज भी कीं. रिपोर्ट के अनुसार, मजबूत इच्छाशक्ति और अनुशासन के कारण गुमनामी बाबा को छिपकर रहने की शक्ति मिली.आयोग ने कहा कि उन्होंने पूजा और योग के लिए पर्याप्त समय दे रखा था और पर्दे के पार से उनसे बात करने वाले लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे.
आयोग ने कहा कि वे प्रतिभावान व्यक्ति थे और एक व्यक्ति के तौर पर उनमें एक खासियत थी कि वे अपनी गोपनीयता भंग होने से बेहतर मरना पसंद करते. रिपोर्ट के अनुसार, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के प्रावधान के अंतर्गत, उनके पास अपना जीवन अपनी इच्छा से जीने की पसंद और अधिकार था. इस अधिकार में ही उनके गोपनीयता का अधिकार प्रतिष्ठापित था."
आयोग ने अपनी बात सिद्ध करने के लिए यह तर्क भी दिए कि गुमनामी बाबा नेताजी हो सकते थे, लेकिन यह कहने के लिए वे नहीं हैं. आयोग ने कहा, "यह शर्मनाक है कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे हुआ कि उसमें सिर्फ 13 लोग शामिल हो सके. उन्हें इससे बेहतर बिदाई दी जानी चाहिए थी."
न्यायमूर्ति सहाय जांच आयोग को जांच आयोग कानून 1952 के अंतर्गत 28 जून 2016 को गठित किया गया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट 19 सितंबर 2017 को सौंपी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए 31 जनवरी 2013 को आयोग गठित करने का आदेश दिया था.
CAA Protest: यूपी में हुई हिंसा पर बोले अखिलेश- सीएम योगी के भाषा की वजह से 15 लोगों की मौत हुई
यूपी सरकार ने शुरू की उपद्रवियों की संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया, पैनल का हुआ गठन