इंदौरः मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल बड़वानी जिले में रहने वाले पारसिंह परिहार के लिये कक्षा नौ में दाखिला पाना आसान नहीं रहा. दोनों हाथों से लाचार होने के कारण पैर से लिखने की विलक्षण प्रतिभा विकसित करने वाले इस आदिवासी छात्र को कई विद्यालयों के चक्कर लगाने के बाद आखिरकार एक सरकारी स्कूल में दाखिला नसीब हो सका. पारसिंह का दाखिला तब हुआ जब दिव्यांग बालक ने जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाते हुए कहा कि वह आगे पढ़ना चाहता है. 14 साल के दिव्यांग को स्कूल में दाखिला दिलाने के बाद अब प्रशासन उन शैक्षणिक संस्थाओं के खिलाफ जांच कर रहा है जिन्होंने जनजातीय समुदाय से आने वाले इस छात्र को प्रवेश देने से मना किया था.
जिलाधिकारी अमित तोमर ने बताया, "हमने पारसिंह का दाखिला बड़वानी के एक सरकारी स्कूल में करा दिया है. इसके साथ ही, शिक्षा विभाग के डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर को आदेश दिया गया है कि वह जांच कर पता लगायें कि संबंधित स्कूलों ने उसे दाखिला देने से किस आधार पर इंकार किया था." उन्होंने कहा कि मामले की जांच रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी.
अम्बापानी गांव के निवासी पारसिंह को शारीरिक विकलांगता के कारण स्पष्ट बोलने में भी तकलीफ होती है. अपने गांव के शासकीय मिडिल स्कूल से आठवीं पास करने के बाद वह तमाम प्रयासों के बावजूद किसी भी विद्यालय में नौवीं में दाखिला पाने में नाकाम रहा था. थक-हारकर उसने सात अगस्त को जन सुनवाई में गुहार लगायी और दिव्यांगता के कारण हुए कथित भेदभाव की आपबीती सुनायी.
आदिवासी छात्र ने अपने आवेदन में कहा, "मैं गरीब परिवार से ताल्लुक रखता हूं और आठवीं पास होने के बाद आगे पढ़ना चाहता हूं. लेकिन मुझे किसी भी स्कूल में दाखिला नहीं दिया जा रहा है. मुझे न तो सरकारी, न ही निजी स्कूल में प्रवेश दिया जा रहा है. अध्यापकों का कहना है कि मैं पैर से लिखता हूं, इसलिये मुझे प्रवेश नहीं दिया जायेगा." बहरहाल, इस अर्जी पर सरकारी तंत्र में हुई हलचल के बाद पारसिंह को बड़वानी के शासकीय बालक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में कक्षा-नौ में प्रवेश मिल गया है.
स्कूल के प्रिंसिपल इकबाल आदिल ने बताया, "हमारे स्कूल में दाखिला पाकर पारसिंह बेहद खुश है. वह सामान्य बच्चों के साथ ही पढ़ाई कर रहा है." उन्होंने कहा, "पारसिंह की लिखावट देखकर कोई भी नहीं कह सकता कि वह पैर से लिखता है. हम स्कूल में उस पर विशेष ध्यान दे रहे हैं."