इलाहाबाद: इस्लामी प्रचारक डा. जाकिर नाईक के खिलाफ झांसी की अदालत से जारी गैर जमानती वारंट की वैधता पर सुनवाई पूरी होने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. हाईकोर्ट ने इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान गैर जमानती वारंट पर लगी रोक हटा दी थी. 2008 के एक मामले में जाकिर नाईक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से गैर जमानती वारंट पर रोक लगाने की मांग की थी.


हालांकि अदालत ने अभी यह तय नहीं किया है कि वह अपना फैसला कब सुनाएगी. अगर अदालत से जाकिर नाईक की अर्जी खारिज हो जाती है तो भारत आने जाकिर नाईक की गिरफ्तारी हो सकती है. मामले की सुनवाई जस्टिस अमर सिंह चौहान की बेंच में हो रही थी.


बता दें कि यूपी के झांसी जिले के मुदस्सर उल्ला खान ने साल 2008 में झांसी की जिला अदालत में शिकायत दायर कर ज़ाकिर नाईक के खिलाफ आईपीसी की धारा 109, 115, 116, 121, 298, 502 और 511 के तहत केस चलाए जाने की अपील की थी. मुदस्सर की अर्जी में पीस टीवी पर दिखाए जाने वाले डा. जाकिर नाईक के भाषणों के आधार पर उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए थे. कहा गया था कि वह अपने भाषणों के ज़रिये इस्लाम धर्म के नौजवानों को आतंकवादी बनने के लिए उकसाते हैं और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने जैसे काम करते हैं. अर्जी में देशद्रोह की धारा 121 के तहत कार्रवाई की मांग की गई थी.


झांसी की अदालत ने इस अर्जी को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए डा. जाकिर नाईक के खिलाफ कई समन जारी किए थे. समन जारी होने के बाद भी जाकिर नाईक झांसी की अदालत में पेश नहीं हुए तो अदालत ने साल 2011 में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट यानी एनबीडब्लू जारी कर दिया. गिरफ्तारी की तलवार लटकने पर जाकिर नाईक ने साल 2011 के मई महीने में गैर जमानती वारंट की वैधता को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की.


हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता मुदस्सर उल्ला खान से तीन हफ्ते में कुछ और सबूत पेश करने को कहा और तब तक के लिए गैर जमानती वारंट पर रोक लगा दी थी. आरोप है कि इस बीच जाकिर नाईक के समर्थकों ने शिकायतकर्ता मुदस्सर उल्ला खान को केस वापस लेने की धमकियां दीं और उनके घर पर आग लगा दी. मुदस्सर इससे डर गए और उन्होंने केस की पैरवी करनी बंद कर दी. इस बीच वे जाकिरनाईक के खिलाफ लगातार सबूत इकट्ठे करते रहे. केस में पैरवी नहीं होने से जाकिर नाईक को हाईकोर्ट से मिली राहत लगातार बरकरार रही.


शिकायतकर्ता मुदस्सर ने अपनी अर्जी में यह आशंका जताई थी कि जाकिर एक दिन विदेश भाग जाएगा और फिर लौटकर नहीं आएगा. हाईकोर्ट में अपने मामले की पैरवी के लिए जाकिर नाईक ने वकीलों की फ़ौज खड़ी कर दी थी. उनके वकीलों में पूर्व की अखिलेश सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल इमरान उल्ला खान भी शामिल हैं. साल 2011 में हाईकोर्ट से राहत पाने के लिए जाकिर नाइक ने खुद को अमन पसंद बताते हुए अपनी तुलना अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर से की थी.


तकरीबन डेढ़ साल पहले बांग्लादेश में हुए आतंकी हमले के बाद जाकिर नाईक के खिलाफ हर तरफ से आवाज़ उठनी शुरू हुई तो शिकायतकर्ता मुदस्सर उल्ला खान ने फिर से कोर्ट में अर्जी दाखिल की. अर्जी के साथ नाइक के विवादित भाषणों की सीडी और तमाम मीडिया रिपोर्ट्स के साथ हलफनामा दाखिल कर झांसी मामले में जारी गैर जमानती वारंट पर हाईकोर्ट से लगी रोक को रद्द कर मुक़दमे की कार्रवाई फिर से शुरू करने की मांग की. मुदस्सर उल्ला खान की इसी अर्जी पर हाईकोर्ट ने 22 मार्च को गैर जमानती वारंट पर लगी रोक हटा ली थी. अदालत से आने वाले फैसले से तय होगा कि जाकिर नाईकको हाईकोर्ट से राहत मिलेगी या फिर भारत आने पर उन्हें गिरफ्तार किया जाएगा.