कानपुर: एक पिता ने बेटी को घुट-घुट कर जीते हुए देखा था, पांच साल तक पीजीआई में इलाज कराने के बाद बेटी ने भी कैंसर से जंग जीत ली. लेकिन इस दौरान इस पिता ने पीजीआई में रहकर लोगों को दम तोड़ते हुए देखा. मृतक के परिजनों की संवेदनाए देखी और दहाड़े मार-मार कर रोते हुए देखा. जब बेटी पूरी तरह से स्वस्थ्य हो गई तो इस पिता ने जरूरत मंदों को ब्लड मुहैया कराने का फैसला लिया. अब तक हजारों जरूरत मंदों की ब्लड दिलाकर उनकी जान बचाने का काम कर रहा है. इस दम्पति की आंखों में आज भी आंसू भर आते हैं, जब यह बेटी इलाज के दिनों के बारे में सोचते हैं. अब यह पूरा परिवार दूसरों की मदद करने में लगा रहता है.
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मासूम बच्ची का दर्द जिसने भी देखा उसने मदद के लिए कदम बढ़ा दिए
बर्रा थाना क्षेत्र स्थित बर्रा छह में रहने वाले संतोष सिंह चौहान पत्नी शैलजा बेटे प्रबल (16) बेटी मुस्कान (15) के साथ रहते हैं. सन 2011 में जब मुस्कान जब 7 साल की थी तब उसे ब्लड कैंसर हुआ था. मासूम बच्ची का दर्द जिसने भी देखा उसने मदद के लिए कदम बढ़ा दिए. इस बच्ची के इलाज के प्रधानमंत्री राहत कोष से 5 लाख रुपए और मुख्यमंत्री राहत कोष से 01 लाख रुपए की मदद की गयी थी. गांव की जमीन बेचकर और रिश्तेदारों से उधार रुपए लेकर बेटी का इलाज कराया. तीन साल तक मुस्कान पीजीआई में भर्ती रही ,बच्ची के पैरेंट्स लखनऊ में रहकर बच्ची का इलाज कराते रहे.
डॉक्टरों ने खड़े कर दिए थे हाथ
संतोष सिंह ने बताया कि जब मुस्कान 7 साल की थी तब उसे फीवर आया था. जब बेटी को फीवर आया तो डॉक्टर को दिखाकर दवा दे दी गई और उसका फीवर ठीक हो गया. इसके बाद तीन दिन बाद फिर से फीवर आने लगा, लेकिन इसके बाद उसका फीवर ठीक नहीं हुआ. कानपुर के जितने भी चाइल्ड स्पेस्लिस्ट थे सभी को दिखाया लेकिन उसका फीवर नहीं उतरा.
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डॉ ओपी पाठक ने दी पीजीआई जाने की सलाह
इसके बाद जब हमने डॉ ओपी पाठक को दिखाया तो उन्होंने बच्ची की पूरी रिपोर्ट्स देखी. इसके बाद बोन मैरो टेस्ट कराया यह टेस्ट लखनऊ में हुआ था ,कानपुर में सन 2011 में नहीं होता था. इस टेस्ट में बेटी की रीढ़ की हड्डी में ड्रिल मशीन से होल किया गया था, उससे पानी निकाल कर टेस्ट के लिए भेजा गया था. जब बोन मैरो टेस्ट की रिपोर्ट आई तो उसमे ब्लड कैंसर निकला. यह सुनकर पूरे परिवार में मायूसी छा गयी.
बदल गया था घर का माहौल
बच्ची की मां ने तीन दिन दिनों तक खाना नहीं खाया था वो बेटी को देखती और रोती रहती थी. मेरी भी आंखों में आंसू आ जाते थे ,लेकिन मैं बच्चों और परिवार के सामने खुद को मजबूत साबित करने की कोशिश करता था. डॉ ओपी पाठक ने सलाह दी की मुस्कान को लेकर पीजीआई जाओ वहीं पर उसका इलाज होगा. पीजीआई में डॉ सोनिया नित्यानंद की देख-रेख में बेटी का इलाज शुरू हुआ.
तीन साल तक पीजीआई में रह कर हमने बेटी का इलाज कराया लोगों से आर्थिक मदद की गुहार लगाई. बेटी की किस्मत अच्छी थी जहां भी मैंने इलाज के पैसो की मांग की उसे मिलता चला गया. प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय से भी इलाज के लिए रुपए मिल गए. मुझे भी इस बात की जिद थी कि मैं अपनी बेटी को बचा कर रहूंगा, इसके लिए मुझे जो करना पड़े वो काम करूंगा.
बेटी का दर्द देख कर ला थी दूसरों की मदद करने की शपथ
उन्होंने बताया कि मैंने बेटी के इलाज के दौरान लोगों को घुट-घुट कर मरते हुए देखा है. परिजनों की भावनात्मक संवेदनाओं को देखा, उनके दुःख को समझा है. लोगों को खून के लिए इधर उधर भटकते हुए देखा है. मैंने इस बात की शपथ ली थी कि बेटी ठीक हो जाएगी तो जरूरत मंदों को ब्लड मुहैया कराएंगे. अपना पूरा जीवन दुसरों की मदद के लिए लगा देंगे.
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ब्लड कैंप, लंच पैकेट से करते हैं लोगों की मदद
बेटी जब पूरी तरह से स्वस्थ्य हो गई तो इसके बाद ब्लड कैम्प लगवाने शुरू कर दिए. बीते साल से ब्लड कैंप लगवाकर हजारों जरूरतमंदों को ब्लड पहुंचा चुके हैं. खुद भी लगभग 20 बार ब्लड डोनेट कर चुके हैं. हमारे ब्लड कैम्प में बड़ी संख्या में लोग आते हैं और यह मेडिकल टीम की निगरानी में ब्लड डोनेट का काम किया जाता है. इसके साथ ही 7 मई 2015 को नेपाल में आए भूकंप पीड़ितों के लिए मैंने चंदा इकठ्ठा किया जिसमें 53 हजार रुपए एडीएम सिटी के माध्यम से मिला था. इसके साथ ही हर रविवार को गरीबों को लंच पैकेट बनवाए जाते हैं. यह लंच पैकेट गरीबों तक पहुंचाए जाते हैं.