मेरठ शहर से हर रोज निकलने वाले एक हजार मीट्रिक टन कचरे के निस्तारण के बजाय नगर निगम इसे दिल्ली रोड पर मंगतपुरम् इलाके में करीब 12 सालों से खुले में इकठ्ठा कर रहा है. यह जमीन नगर निगम की है. मगर इस इलाके में कई दशकों से आबादी मौजूद है जिनमें कुष्ठ आश्रम, कई कालोनियां और स्कूल शामिल हैं.
कुष्ठ रोगियों को बार-बार होने वाले इन्फैक्शन की वजह से शहर के एक नामी ट्रस्ट ने दशकों पहले कुष्ठ रोगियों की बेबसी को देखते हुए ताजा आवोहवा वाले इस इलाके में आश्रम की शुरूआत की थी. मगर नगर निगम की तानाशाही यहां भी कुष्ठ रोगियों के लिए दंश बन गयी और निगम के अघोषित डलावघर की वजह से उनका जीना दूभर हो गया.
कुष्ठ रोगियों ने हाईकोर्ट में दाखिल की है याचिका
नगर निगम के अफसरों से गुहार करके थक चुके कुष्ठ रोगियों ने मार्च-2017 में हाईकोर्ट में एक याचिका के जरिये इस डलावघर से मुक्ति दिलाये जाने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए निगम को फटकार लगाई तो निगम के अफसरों ने 19 सितंबर 2017 को इस कचरे के पहाड़ को हटाने के लिए 90 दिन का वक्त मांगा था.
हाईकोर्ट ने नगर निगम से इस बारे में लिखित कमिटमेंट लिया था. मगर 10 महीनों बाद भी निगम ने कचरा नहीं हटाया. दो दिन पहले हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान नगर निगम के रवैये पर अदालत ने अवमानना नोटिस जारी करके नगर आयुक्त को तलब किया है.
क्यों नहीं हटाया नगर निगम ने कचरे का पहाड़
नगर निगम से मांगी गई एक आरटीआई के जबाब में कहा गया है कि मंगतपुरम् में इकठ्ठा कचरा 750 लाख मीट्रिक टन हो चुका है. इसे हटाने के लिए भारी-भरकम बजट की जरूरत होगी और यह बजट नगर निगम के दो साल के कुल बजट से भी ज्यादा है.
नगर निगम में आने वाले शहर के 90 वार्डो में करीब 19 लाख की आबादी का बसेरा है जहां से हर रोज एक हजार मीट्रिक टन कचरा निकलता है. शहर के आउटर इलाकों की खाली जमीन पर भी करीब 10 लाख मीट्रिक टन कचरा फैला हुआ है. सूत्रों की मानें तो इस कचरे के निस्तारण के नाम पर निगमकर्मी इसे आग के हवाले कर देते है जिससे वातावरण प्रदूषित हो रहा है.
कैंट बोर्ड का भी है योगदान
कैंटबोर्ड के 12 वार्डो की आबादी इस समय 10 लाख से ज्यादा की हो चुकी है. यहां से हर रोज 350 मीट्रिक टन कचरा निकलता है जो किला रोड पर गावड़ी गांव में कैंटबोर्ड की जमीन पर खुले में डाल दिया जाता है. इस कचरे से आसपास के ग्रामीणों को दुर्गन्ध के साथ-साथ प्रदूषित हवा से सामना करना पड़ रहा है.
मामला हाईकोर्ट में जाने के बाद नगर निगम ने मंगतपुरम् से रूख बदलकर गावड़ी गांव में काली नदी के किनारे कचरा फैंकना शुरू कर दिया है. आसपास स्कूल और सड़क होने की वजह से वहां भी दिक्कतें होने लगी है. ग्रामीण खुलकर कचरा डालने का विरोध कर रहे हैं.
इतने बड़े शहर में कचरा निस्तारण की योजना नहीं
प्रदेश में नई सरकार बनने के साथ नगर विकास मंत्री बने सुरेश खन्ना के शपथग्रहण के चार दिन बाद से उनके गृह जनपद शाहजहांपुर में सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट की शुरूआत हो गयी थी. आज यह प्लांट शहर से हर रोज निकलने वाले 340 मीट्रिक टन कचरे से निजात दिलाता है.
शाहजहाँपुर अब प्रदेश का 17 वां नगरनिगम भी बन चुका है. मेरठ के मुकाबले बेहद छोटे इस शहर ने कचरा निस्तारण का इंतजाम कर लिया लेकिन मेरठ शहर कचरे को ठिकाने लगाने के लिए कभी गावड़ी गांव तो कभी मलियाना की आबादी वाली जमीनों पर निर्भर है.
इसीलिए स्मार्टसिटी नहीं बन सका मेरठ
मेरठ शहर को देश के सौ स्मार्ट सिटी में शामिल होने के लिए 4 मौके मिले, मगर हर बार मेरठ पिछड़ गया. शहर में इतने बड़े पैमाने पर होने वाले कचरे के उत्सर्जन से निपटने के लिए मेरठ के पास कोई इंतजाम नहीं, उस पर इतनी बड़ी आबादी.
बीजेपी, सपा के कार्यकाल में अखिलेश यादव की सरकार को कोसती रही, तब नगर निगम के मेयर बीजेपी के हरिकांत अहलूवालिया थे और अब योगी सरकार के राज में शहर में बसपा से निर्वाचित मेयर सुनीता वर्मा को लेकर हो रही राजनीति के चलते मेरठ शहर नई योजनाओं के बजाय अफसरों की तानाशाही का शिकार होकर रह गया है.