नई दिल्ली: बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट के इस आदेश के बाद अब बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में बीजेपी और वीएचपी के बड़े नेताओं पर आपराधिक साज़िश का मुकदमा चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने तकनीकी आधार पर राहत पाने वाले इन नेताओं पर मुकदमा चलाने में आ रही अड़चन आज दूर कर दी. कोर्ट ने लखनऊ और रायबरेली में चल रहे अलग-अलग मुकदमों को एक साथ लखनऊ में चलाने का हुक्म दिया. कोर्ट ने ये भी कहा कि मुकदमे का निपटारा 2 साल में कर दिया जाए.



'अब इस दुनिया में नहीं हैं इनमें से 5 नेता'


इस फैसले का सीधा असर लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 14 नेताओं पर पड़ेगा. सीबीआई ने कुल 21 नेताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. इनमें से 5 नेता अब इस दुनिया में नहीं हैं. जबकि कल्याण सिंह को फ़िलहाल राजस्थान का राज्यपाल होने के चलते मुक़दमे से छूट हासिल है.


सीबीआई ने 2012 में सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर जिन 21 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने की इजाज़त मांगी थी, वो हैं- लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, बाल ठाकरे, उमा भारती, अशोक सिंहल, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, विष्णु हरि डालमिया, गिरिराज किशोर, साध्वी ऋतंभरा, महंत अवैद्यनाथ, रामविलास वेदांती, महंत नृत्य गोपाल दास, परमहंस रामचंद्र दास, बी एल शर्मा 'प्रेम', सतीश प्रधान, सी आर बंसल, सतीश नागर, मोरेश्वर सावे,जगदीश मुनि महाराज, धरम दास.


इनमें से अशोक सिंहल, गिरिराज किशोर, बाल ठाकरे समेत 5 लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं.


सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंचा मामला :-


ये मामला तकनीकी कारणों से बड़े नेताओं से साज़िश की धारा हट जाने का है. कई नेता तो मुकदमे से पूरी तरह ही बच गए. मामले में इलाहबाद हाई कोर्ट से अपने खिलाफ फैसला आने के बाद सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी.


किस वजह से बच गए थे नेता :-


1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद 2 एफआईआर दर्ज हुई थी. एफआईआर संख्या 197 लखनऊ में दर्ज हुई. ये मामला ढांचा गिराने के लिए अनाम कारसेवकों के खिलाफ था.


दूसरी एफआईआर यानी एफआईआर नंबर 198 को फैज़ाबाद में दर्ज किया गया. बाद में इसे रायबरेली ट्रांसफर किया गया. इस एफआईआर में 8 बड़े नेताओं के ऊपर मंच से हिंसा भड़काने का आरोप था. ये बड़े नेता थे- लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा, गिरिराज किशोर, अशोक सिंहल, विष्णु हरि डालमिया, उमा भारती और विनय कटियार.


बाद में इन दोनों मामलों को लखनऊ की कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया. सीबीआई ने जांच के दौरान साज़िश के सबूत पाए. उसने दोनों एफआईआर के लिए साझा चार्जशीट दाखिल की. इसमें बाल ठाकरे समेत 13 और नेताओं के नाम जोड़े गए. कुल 21 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश की धारा 120b के आरोप लगाए गए.



प्रतीकात्मक तस्वीर

लखनऊ की कोर्ट को नहीं था FIR 198 पर सुनवाई का अधिकार


2001 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाया कि एफआईआर 198 को लखनऊ की स्पेशल कोर्ट में ट्रांसफर करने से पहले चीफ जस्टिस से इसकी इजाज़त नहीं ली गयी थी. ऐसा करना कानूनन ज़रूरी था. इस वजह से लखनऊ की कोर्ट को एफआईआर 198 पर सुनवाई का अधिकार नहीं था.


हाई कोर्ट ने इस निष्कर्ष के आधार पर दोनों मामलों को अलग चलाने का आदेश दिया. इस फैसले को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया. दोनों मामले अलग होने के चलते सीबीआई की साझा चार्जशीट बेमानी हो गयी. 8 नेताओं का मुकदमा रायबरेली वापस पहुंच गया. बाद में इसी को आधार बनाकर वो 13 नेता भी मुकदमे से बच गए जिनका नाम साझा चार्जशीट में शामिल था. इसका सबसे बड़ा असर ये हुआ कि किसी भी नेता के ऊपर आपराधिक साजिश की धारा बची ही नहीं.


13 नेताओं को मुकदमे से अलग करने का हाई कोर्ट का फैसला 2011 में आया. सीबीआई ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.


सुप्रीम कोर्ट का फैसला :-


सुनवाई के दौरान जस्टिस पी सी घोष और रोहिंटन नरीमन की बेंच ने पूरे मसले पर दोबारा गौर किया. फैसले में जजों ने माना है कि महज़ तकनीकी वजहों से किसी आरोपी का बचना गलत है.


बेंच ने आज लखनऊ और रायबरेली के मुकदमों को एक साथ चलाने का आदेश दिया. दोनों मुकदमे लखनऊ की सेशन्स कोर्ट में चलेंगे. सीबीआई 4 हफ्ते में साज़िश के आरोप के तहत नयी चार्जशीट दाखिल करेगी.


सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मामले के 25 साल तक खिंचने पर सवाल उठाए थे. आज कोर्ट ने 2 साल के भीतर मुकदमा निपटाने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा कि मामले में रोज़ाना सुनवाई हो. किसी भी पक्ष की मांग पर बेवजह तारीख को टाला न जाए. सुनवाई करने वाले जज का इस दौरान ट्रांसफर नहीं होगा.


नेताओं पर कौन सी धाराएं लगी हैं :-


रायबरेली में जिन 8 बड़े नेताओं पर मुकदमा चल रहा था उन पर आईपीसी की धारा- 153A (समाज में वैमनस्य फैलाना), 153B (राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डालना) और 505 (अशांति और उपद्रव फ़ैलाने की नीयत से झूठी अफवाहें फैलाना) के आरोप हैं.


अब इसमें धारा 120B (आपराधिक साज़िश) भी जोड़ दी जाएगी. अगर नेताओं पर पहले से चल रही धाराओं में दोष साबित होता है तो 120बी की मौजूदगी के चलते उन्हें अधिकतम सज़ा मिल सकती है. पहले से चल रही धाराओं में अधिकतम सज़ा 5 साल है.