नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में हाशिए पर पहुंची कांग्रेस ने अपना सबसे बड़ा दांव खेल दिया है. ये दांव है ‘प्लान P’ यानी प्रियंका गांधी वाड्रा. प्रियंका के सहारे कांग्रेस उत्तर प्रदेश में एक तीर से कई निशाना साधने की कोशिश में हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या प्रियंका उत्तर प्रदेश में डूबती कांग्रेस को सहारा दे पाएंगी. सवाल ये भी क्या कांग्रेस का प्लान पी उत्तर प्रदेश में कमाल दिखा पाएगा.


गांधी परिवार की वारिस प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपने बड़े भाई राहुल गांधी से करीब 15 साल बाद सक्रिय राजनीति में 47 साल की उम्र में कदम रखा है. प्रियंका का राजनीति में आना राहुल गांधी का ‘प्लान P’ है. जिसके तहत प्रियंका को मोदी-शाह की जोड़ी के साथ-साथ माया-अखिलेश की जोड़ी का सामना करना है.


यूपी में पिछले 30 साल से सत्ता के आसपास भी नहीं फटकी है कांग्रेस


उत्तर प्रदेश वही राज्य है जिसमें आजादी के बाद से 1989 तक कुछ एक मौकों को छोड़ कर कांग्रेस ने एकछत्र राज किया है. अब हाल ये है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पिछले 30 साल से सत्ता के आसपास भी नहीं फटकी है. यही हाल लोकसभा का है. पिछले तीस साल में 2009 को छोड़कर उत्तर प्रदेश ने कांग्रेस को निराश ही किया है. 2009 में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में पूरा जोर लगाया था तो उसे 21 सीटें मिली थीं और तब केंद्र में कांग्रेस पूर्ण बहुमत के साथ आई थी.


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लेकिन इस बार कांग्रेस को प्रियंका की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी ने कांग्रेस को किनारे कर आपस में गठबंधन कर लिया. दोनों ने मिलकर कांग्रेस के लिए सिर्फ रायबरेली और अमेठी सीट छोड़ी है. कांग्रेस पस्त थी लेकिन हार मानने की बजाए कांग्रेस ने अपना तुरुप का पत्ता खेल दिया है.


लोकसभा चुनाव से 74 दिन पहले कांग्रेस ने प्रियंका गांधी वाड्रा को महासचिव बनाया और पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी. जिस पूर्वांचल की जिम्मेदारी प्रियंका को मिली है वहां 30 सीट हैं. साथ में अवध की 12 सीट की जिम्मदारी भी है. यानी कुल 42 सीट. साल 2014 में इन 42 में से कांग्रेस ने दो सीटें ही जीती थीं.


कांग्रेस प्रियंका से किस जादू की उम्मीद कर रही है?


प्रियंका के पास यूपी में 80 में से 43 सीटों की जिम्मेदारी है. इन 43 में से 2014 में सिर्फ 2 सीट कांग्रेस ने जीती थी. पूर्वांचल की 30 सीटों पर कांग्रेस को 6 फीसदी वोट मिले थे. अवध की 13 सीटों पर 18 फीसदी वोट मिले थे, जबकि राज्यभर में कांग्रेस को 8.4 फीसदी वोट मिले थे


अब प्रियंका की चुनौती है कि इस इस वोट प्रतिशत में कुछ इजाफा करे. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं प्रियंका गांधी के आने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ेगा और साथ ही वोट प्रतिशत बढ़ाने में मदद मिलेगी.


किसके वोट काटेंगी प्रियंका?


साल 2014 में कांग्रेस को 11 फीसदी ब्राह्मण, 16 फीसदी कुर्मी-कोइरी, 13-13 फीसदी जाट-वैश्य और 11 फीसदी मुस्लिम वोट मिले थे. मतलब जो 8.4 फीसदी वोट मिले उसमें हर तबके के लोग थे. ऐसे में क्या प्रियंका को मैदान में उतार कर राहुल गांधी एसपी-बीएसपी को सजा दी है, क्योंकि माना जा रहा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा के आने से बीजेपी विरोधी वोट कटेंगे.


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प्रियंका के आने से बीजेपी को फायदा होगा या नुकसान?


उत्तर प्रदेश का सियासी समीकरण कहता है कि जब-जब कांग्रेस मजबूत हुई है तो सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को हुआ है. जैसे साल 2009 जब कांग्रेस ने 80 में से 21 सीट जीती थीं तब बीजेपी सिर्फ 10 सीट पर सिमट गई थीं. साल 1999 में कांग्रेस को करीब 14 फीसदी वोट हासिल किए थे तो बीजेपी को 27 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन 2009 में कांग्रेस को 18 फीसदी वोट मिले तो बीजेपी का वोट शेयर 17 फीसदी रह गया. जब 2014 में कांग्रेस को करीब 8 फीसदी वोट मिले तो बीजेपी को करीब 42 फीसदी वोट मिले.


प्रियंका के सहारे कांग्रेस युवा वोटरों के साथ सवर्ण और शहरी वोट हासिल करने की कोशिश करेगी. ये वही वर्ग है जिस पर बीजेपी भी दांव खेल रही है. कांग्रेस के महागठबंधन में शामिल होने का बहुत बड़ा असर नहीं पड़ता. बल्कि अब संभावना है कि कांग्रेस बीजेपी के वोट बैंक पर निशाना लगा पाए. वैसे भी पिछले कुछ समय में कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेल रही हैं. ऐसे में अगर वो सवर्ण वोटरों पर दांव खेलेगी तो महागठबंधन से ज्यादा बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी.


कांग्रेस के मास्टर कार्ड ने विरोधी खेमे में खलबली


प्रियंका का जादू किस जाति पर चलेगा अभी कह पाना मुश्किल है. लेकिन इतना तो है कि कांग्रेस के इस मास्टर कार्ड ने विरोधी खेमे में खलबली मचा दी है. कांग्रेस फ्रंट फुट पर खेल रही है वाराणसी में तो प्रियंका को पीएम मोदी के सामने उतारने के पोस्टर लग रहे हैं. ये संसदीय क्षेत्र भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में आता है.


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कांग्रेस प्रियंका के चेहरे के सहारे माहौल खड़ा करने की कोशिश में है. जिससे मोदी लहर का सामना किया जा सके. वहीं उत्तर प्रदेश में एसपी-बीएसपी को टक्कर देने के लिए भी एक मजबूत चेहरे की तलाश प्रियंका पर खत्म हुई.  लेकिन यहां से बड़ा सवाल खड़ा होता है क्या प्रियंका को सही समय पर उतारा गया. अब चुनाव में करीब-करीब ढाई महीने बचे हैं. ऐसे में प्रियंका गांधी वाड्रा को संगठन मजूबत करने का कम वक्त बचा है.


2019 की लड़ाई में कम वक्त बचा है. राहुल गांधी ने फ्रंट फुट पर आकर खेलने की रणनीति अपनाई है. यही वजह है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को इस वक्त पर उतारने का खतरा राहुल गांधी ने मोल लिया है.


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