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जानें-हिंदू धर्म में कैसे होता है तलाक? क्या तेज प्रताप इतनी जल्दी शादी के बंधन से मुक्त हो जाएंगे?

हिंदू धर्म में तलाक के लिए कोई धार्मिक विधि नहीं है. इसी कमी को पूरा करने के लिए 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम लाया गया था. इस अधिनियम के तहत 13(1) और 13(B) के तहत तलाक लिया जा सकता है.

Divorce Law In India: बीते रोज़ शुक्रवार को खबर आई कि लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने अपनी पत्नी ऐश्वर्या राय से तलाक के लिए कोर्ट में अर्जी दायर की है. तेज प्रताप ने पटना के एक फैमिली कोर्ट में पत्नी ऐश्वर्या से तलाक के लिए हिंदू मैरेज एक्ट 13 (1A) के तहत अर्जी दायर की. तेज प्रताप ने अपनी पत्नी पर 'क्रूर व्यवहार' का आरोप लगया है. इन दोनों की शादी को अभी सिर्फ 6 महीने ही हुए हैं.

अब सवाल उठता है कि क्या इतनी जल्दबाज़ी में दोनों के बीच तलाक मुमकिन है. खास बात ये है तलाक की ये अर्जी एकतरफा तेज प्रताप यादव की तरफ से दायर की गई है. ऐसी स्थिति में तलाक के क्या हैं नियम, आइए जानते हैं.

हिंदू धर्म में कैसे होता है तलाक?

हिंदू धर्म में तलाक के लिए कोई धार्मिक विधि नहीं है. हिंदू धर्म में शादी को एक ऐसा पवित्र बंधन माना गया है जिसमें पति-पत्नी सात जन्मों के बाद ही अलग होते हैं. तलाक की कोई धार्मिक रीति ना होने की वजह से 1955 में हिंदू विवाह अधिनियम लाया गया था. इस अधिनियम के तहत अगर दोनों पक्ष तलाक के लिए राजी हों तो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 (B) के आधार पर दोनों पक्ष सहमति से तलाक के लिए अर्जी दायर कर सकते हैं. लेकिन, पति-पत्नी में से कोई भी एक अगर आपसी सहमति से तलाक के लिए राजी नहीं हैं, तो इसी अधिनियम की धारा 13 (1) के तहत कोई एक भी कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर सकता है.

13 (B) के तहत तलाक लेने की प्रकिया पहला चरण: पति-पत्नी दोनों को कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी देनी होती है. दूसरा चरण: दूसरे चरण में कार्ट अपने समक्ष पति-पत्नी दोनों के बयान रिकॉर्ड करवाता है और दोनों पक्षों के पेपर पर दस्तखत लिए जाते हैं. तीसरा चरण: कोर्ट दोनों को आपसी सुलह करने के लिए 6 महीने का वक्त देता है. इस तरह के मामले में अदालत की कोशिश होती है कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से मामले को सुलझा लें. चौथा चरण: जैसे ही आपसी सुलह के लिए दी गई मियाद पूरी होती है, कोर्ट दोनों पक्षों को अंतिम सुनवाई के लिए बुलाता है. पांचवां चरण: केस की अंतिम सुनवाई में कोर्ट अपना फैसला सुनाता है. 13 (1) के तहत तलाक के लिए दाखिल अर्जी में व्यभिचार, क्रूरता, परित्याग, धर्मान्तरण, मानसिक विकार, कुष्ठ, यौन रोग, सात साल तक जिंदा ना मिलना, सहवास की बहाली के आधार पर तलाक के लिए अर्जी दाखिल की जा सकती है. ये पूरी प्रकिया कई चरणों में पूरी होती है. पहला चरण: इसमें सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होता है कि तलाक किस आधार पर लेना है. दूसरा चरण: इसके बाद जिस आधार पर तलाक लेने के लिए अर्जी दायर की जाती है, उसके लिए सबूत इकट्ठा करना होता है. तीसरा चरण: तीसरे चरण में सारे सबूत और दस्तावेज कोर्ट में जमा करने होते हैं. चौथा चरण (A): सारे कागज कोर्ट में जमा होने के बाद कोर्ट दूसरे पक्ष को न्यायालय में हाजिर होने का आदेश देता है. अगर दूसरा पक्ष कोर्ट में हाजिर नहीं होता है तब कोर्ट जमा किए गए कागजों के आधार पर कार्रवाई को आगे बढ़ाता है. चौथा चरण (B): अगर दूसरा पक्ष कोर्ट में हाजिर हो जाता है तब कोर्ट दोनों पक्षों की बात सुनकर मामले को आपसी सहमति से सुलझाने की कोशिश करता है. कोर्ट दोनों को कुछ वक्त ये तय करने के लिए देता है कि दोनों साथ रहना चाहते हैं या तलाक चाहते हैं. पांचवां चरण: तय वक्त में अगर दोनों पक्ष आपस में सुलह करने में नाकाम रहते हैं तब अर्ज़ी दायर करने वाला पक्ष दूसरे पक्ष के खिलाफ लिखित बयान के रूप में याचिका देता है. ये याचिका देने के लिए कोर्ट 30 से 90 दिनों का वक्त देता है. छठा चरण: लिखित बयान जमा करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद कोर्ट तय करता है कि आगे किस प्रकिया का पालन करना है. सातवां चरण: इसके बाद कोर्ट की सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होती है और दोनों पक्षों के द्वारा जमा किए गए सबूतों और कागजों को फिर से चेक किया जाता है. आठवां चरण: इस चरण में दोनों पक्षों को सुनने और सारे सबूतों को देखने के बाद अदालत अपना फैसला सुनाती है. यह प्रक्रिया काफी लंबी होती है, जिसमें कई बार सालों का वक्त लग जाता है.
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