वाराणसी: काशी की धरती पर जन्में विभूतियों में संत कबीर दास की पानी एक अलग पहचान है. कबीर यहीं लहरतारा में जन्मे और यहीं उन्होंने अपने साहित्य की रचना भी की. यहां मौजूद कबीर चौरा मठ एक सिद्धपीठ माना जाता है. इसी परिसर में संत कबीर ने अपने कालजयी ग्रंथ 'बीजक' की रचना की थी. 'बीजक' को कबीर पंथ के संत और अनुयायी अपना धर्मग्रंथ मानते हैं. कबीर चौरा मठ के प्रांगण में संत कबीर के जीवन से जुड़ी कई रोचक घटनाओं का जिक्र करते हुए बोर्ड भी लगे हैं. इन्हीं में से एक में उनके जीवन की एक बेहद हैरान कर देने वाली घटना का जिक्र है. इसमें बताया गया है कि कैसे संत कबीर ने काशी में बैठे-बैठे लगभग हजार किलोमीटर दूर पुरी में लगी आग को बुझाया था. इस बार संत कबीर का प्राकट्य दिवस 28 जून को मनाया जा रहा है. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी निर्वाण स्थली मगहर जाने वाले हैं. वहीं उनके जन्मस्थान लहरतारा में भी कबीरपंथियों के एक बड़े समागम और भंडारे का आयोजन होना है.


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रोचक है संत कबीर के जीवन से जुड़ी ये घटना


कबीरचौरा मूलगादी के महंत विवेकदास संत कबीर के जीवन से जुड़ी इस रोचक घटना के बारे में बताते हैं. उनके मुताबिक बात उस समय की है जब काशी के नरेश वीरदेव सिंह हुआ करते थे. अंध-विश्वास और कुर्तितियों का विरोध करने के चलते काशी एक कई पुरोहित और पंडे संत कबीर से दुश्मनी रखते थे. इन लोगों ने संत कबीर को परेशान करने की नीयत से जाशी नरेश वीरदेव सिंह के कान भर दिए. नरेश ने कबीर को अपने दरबार में हाजिर होने का हुक्म जारी कर दिया. फक्कड़ स्वभाव के संत कबीर काशी नरेश के दरबार में जाना नहीं चाहते थे. फिर भी वे हाथ में एक पात्र लेकर काशी नरेश के दरबार में चले गए.



काशी नरेश ने जब उनसे हाथ में मौजूद पात्र के बारे में पूछा तो संत कबीर ने पात्र के जल को वहां बिछी कालीन पर उड़ेल दिया. कबीर की इस हरकत से दरबार में सन्नाटा छा गया. लोगों को लगा कि संत कबीर ने काशी नरेश की शान में गुस्ताखी कर दी है. पहले तो लगा कि पात्र का जल खत्म हो जाएगा. लेकिन पात्र से जल निकलता ही गया. दरबार में लगातार पानी बहता रहा और वहां चारो तरफ पानी ही पानी भर गया. काशी नरेश ने कबीर की इस हरकत के बारे में पूछा तो संत कबीर दास ने जवाब दिया कि पुरी में पुरी में रामहर्ष पंडा के घर आग लगी है, उसे बुझाना जरूरी है, उसे ही बुझा रहा हूं. संत कबीर ने कहा कि आग का प्रकोप भीषण था, इसलिए पात्र से अधिक जल निकालना पड़ा. काशी नरेश सहित दरबार में बैठे सभी लोग संत कबीर के इस जवाब से सन्न रह गए. उनसे बैर-भाव रखने वाले पुरोहितों और पंडों ने संत कबीर का मजाक उड़ाया. उन्हें लगा कि आज तो कबीर की पोल खुली. काशी नरेश ने भी इस घटना की पुष्टि के लिए एक दूत रामहर्ष पंडा के पते पर पूरी भेज दिया.


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बैठे-बैठे बुझा दी थी हजारों किलोमीटर दूर लगी आग
नरेश के दूत ने लौटकर घटना की पुष्टि कर दी. उसने बताया कि जिस दिन कबीर ने दरबार में पात्र से जल उड़ेला था उस दिन वहां भीषण अग्निकांड हुआ था और अचानक आए जल प्रवाह से आग बुझ भी गई थी. दूत से पुष्टि होने के बाद पंडो और पुरोहितों के पास तो कोई जवाब नहीं बचा था लेकिन काशी नरेश को इस बात से बहुत ग्लानि हुई. महंत विवेक दास बताते हैं कि इसके बाद काशी नरेश वीरदेव सिंह अपनी रानी के साथ बिना राजसी ठाठ-बाट के तपती दुपहरिया में नंगे पांव कबीर चौरा मठ पहुंचे. उनके हाथों में कुल्हाड़ी और सरपत का ढेर था. उन्होंने संत कबीर को देखते ही उनसे क्षमा-याचना की. काशी नरेश ने उसी समय घोषणा कर दी कि अगर संत कबीर ने उन्हें माफ़ न किया तो कुल्हाड़ी से वे अपने अंग-भंग कर लेंगे और सरपत ले ढेर में आग लगाकर अपना जीवन समाप्त कर लेंगे. संत कबीर ने राजा-रानी को माफ़ कर दिया और कहा जाता है कि उस दिन के बाद से पूरा राजपरिवार संत कबीर का अनुयायी हो गया.