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प्रयागराज: जलस्तर नीचे गया तो गांव के लोगों ने खोदे तालाब, 'जलदूत' से मिली प्रेरणा और साथ

प्रयागराज के नैनी कस्बे के रहने वाले तकरीबन पचास साल के गजेंद्र प्रताप सिंह इन दिनों जिले के यमुनापार इलाके के लोगों के बीच जल मसीहा बनकर काम कर रहे हैं.

प्रयागराज: संगम का शहर प्रयागराज कई तरफ से नदियों से घिरा है. गंगा, यमुना, टोंस और तमसा जैसी कई नदियों की मौजूदगी के बावजूद यहां का जलस्तर लगातार तेजी से नीचे जा रहा है. ग्रामीण इलाकों में बढ़ता जलसंकट यहां के लोगों को भविष्य के बड़े खतरे की तरफ आगाह कर रहा है. सरकारों और एनजीओ की बेरुखी के बीच यहां कई ऐसे जलदूत काम कर रहे हैं, जो लोगों को बूंद -बूंद पानी की अहमियत समझाकर उन्हें जागरूक करते हुए पानी की बचत के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इन्ही में एक हैं सामाजिक कार्यकर्ता गजेंद्र प्रताप सिंह. गजेंद्र और उनकी टीम उन स्थानीय लोगों से श्रमदान कराकर उन पुराने तालाबों को फिर से कायम कराने का अभियान चला रही है, जो मिट्टी व मलबे से पटकर अपनी पहचान खो चुके हैं.

प्रयागराज के नैनी कस्बे के रहने वाले तकरीबन पचास साल के गजेंद्र प्रताप सिंह इन दिनों जिले के यमुनापार इलाके के लोगों के बीच जल मसीहा बनकर काम कर रहे हैं. पेशे से पत्रकार और लेखक रहे गजेंद्र प्रताप सिंह जब इस इलाके में रिपोर्टिंग के लिए जाते थे तो उन्हें हर जगह पानी के संकट की शिकायत मिलती थी. सरकार और एनजीओ या तो कान में तेल डाले बैठे रहते थे या फिर उनके काम सिर्फ कागजों पर ही होते थे.

ऐसे में गजेंद्र ने खुद भगीरथ बनने की ठानी और नौकरी छोड़कर लोगों को जागरूक करने के अभियान में जुट गए. उन्होंने पाया कि प्रयागराज के यमुनापार इलाके में पुराने वक्त के ज़्यादातर तालाब या तो मिट्टी से पट कर अपना अस्तित्व खो चुके हैं या फिर उन पर अतिक्रमण कर लिया गया है. इस वजह से इन तालाबों में बारिश का पानी इकठ्ठा नहीं हो पाता. गजेंद्र ने इन तालाबों की नये सिरे से खुदाई कराकर इन्हे फिर से बहाल करने का बीड़ा उठाया.

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यह काम इतना आसान नहीं था. लाखों रूपये खर्च होने थे. तमाम संसाधनों के साथ ही दर्जनों लोगों के श्रमदान यानी मजदूरी की ज़रुरत थी, लिहाजा गजेंद्र सिंह ने इसका अनूठा रास्ता निकाला. वह गांवों और कस्बों में गए. वहां के लोगों को जलसंकट के भविष्य के बड़े खतरे के बारे में बताया और उन्हें खुद ही श्रमदान करने और बाकी खर्च के लिए चंदा कर रकम जुटाने के लिए तैयार किया. कुछ जगह मायूसी हाथ लगी तो कुछ जगहों के लोगों को उनकी बात और संदेश दोनों समझ में आ गया.

गजेंद्र सिंह और उनकी टीम की कोशिशों से पिछले नौ सालों में बत्तीस के करीब बड़े तालाब जनसहभागिता की वजह से फिर से बहाल हो गए हैं. उनमे पानी भर गया है. ये पानी इलाके के लोगों के काम तो आता ही है. इसके साथ ही जलस्तर को भी नीचे जाने से बचाने में मददगार साबित हो रहा है.

प्रयागराज: जलस्तर नीचे गया तो गांव के लोगों ने खोदे तालाब, 'जलदूत' से मिली प्रेरणा और साथ

जल संचय को लेकर गजेंद्र सिंह का काम करने का अंदाज़ बेहद अलग है. गजेंद्र और उनकी टीम पूरे वैज्ञानिक तरीके से काम करती है. वह पहले उन इलाकों का पता लगाते हैं, जहां तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं या फिर उनमे जल संचय नहीं हो रहा है. यह इलाके के लोगों के बीच पंचायत लगाकर उन्हें आगाह करते हैं और बूंद - बूंद पानी की अहमियत समझाते हैं. इसके बाद उन्हें खुद से श्रमदान करने व खर्च के लिए आपस में चंदा करने के लिए भी तैयार करते हैं. कोई तालाब पांच महीने से फिर से अस्तित्व में आ जाता है तो कोई साल -सवा साल में.

ज़्यादातर जगहों पर गजेंद्र व उनकी टीम के लोग खुद भी कैम्प करते हैं और लोगों के साथ श्रमदान भी करते हैं. लोग इसे सामाजिक काम मानकर अपनी दिलचस्पी कम न कर लें, इसके लिए अभियान से जुड़े लोगों को रोज़ाना शपथ भी दिलाई जाती है. जिन जगहों के तालाब बहाल हो चुके हैं, उसे नये लोगों को दिखाकर उन्हें प्रेरित किया जाता है. रोज़ाना चौपाल लगाकर लोगों की हौसला अफजाई भी कराई जाती है.

प्रयागराज: जलस्तर नीचे गया तो गांव के लोगों ने खोदे तालाब, 'जलदूत' से मिली प्रेरणा और साथ

लोगों को यह बताया जाता है कि वह जो कुछ कर रहे हैं, वह किसी दूसरे के लिए नहीं, बल्कि खुद अपने भविष्य व अपनी आने वाली पीढ़ी की खातिर कर रहे हैं. गजेंद्र सिंह और उनकी टीम इन दिनों चिल्ला गौहानी समेत चार इलाकों में चल रहा है. चिल्ला गांव में जब एबीपी न्यूज़ की टीम गजेंद्र सिंह और उनकी टीम का काम देखने पहुंची, तो वहां के लोगों की जनसहभागिता देखकर हैरत में पड़ गई.

गजेंद्र सिंह ने बूंद बूंद पानी की अहमियत समझाकर लोगों को इसे बचाने के अभियान में दिन रात लगे रहते हैं. उनका मानना है कि सरकारें और एनजीओ ठीक से काम नहीं करतीं. इसके साथ ही पानी खुद सबकी ज़रुरत है, इसलिए इसे बचाने की ज़िम्मेदारी भी खुद सभी की होनी चाहिए. उनके अभियान और नीयत पर कोई उंगली न उठाए, इसके लिए उन्होंने कोई संस्था भी नहीं बनाई है और यह एलान किया है कि क्षेत्र में लोकप्रिय होने और तमाम सम्मान मिलने के बावजूद वह कभी न तो कोई चुनाव लड़ेंगे और न ही किसी सियासी पार्टी का मंच साझा करेंगे.

गजेंद्र सिंह का मानना है कि लोग जब खुद जागरूक होकर पानी बचाने की मुहिम में जुटेंगे तभी उसके बेहतर नतीजे सामने आ सकते हैं. प्रयागराज के लोग उन्हें जलदूत के नाम से पुकारते हैं. वह लोगों के बीच घुल मिलकर और उनके साथ काम कर उन्हें इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार करते हैं. पानी बचाने की अपनी अनूठी मुहिम को ही उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है. जिन लोगों को उन्होंने जागरूक किया है और जो लोग उनके अभियान के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं, वह गजेंद्र सिंह को किसी मसीहा से कम नहीं समझते.

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