मुंबई: मुंबई की गलियां इस बार जन्माष्टमी पर सूनी रहेंगीं. न ‘गोविंदा आला रे आला’ के नारे सुनाई देंगे और न इंसानी मीनारें दिखाई देंगी. कोरोना ने इस त्यौहार की चमक भी छीन ली है. मुंबई के गोविंदा मंडलों ने फैसला किया है कि इस बार वे मटकी फोड़ने नहीं निकलेंगे.


महाराष्ट्र में साल का सबसे पहला सार्वजनिक त्यौहार जो मनाया जाने वाला है वो है जन्माष्टमी. महाराष्ट्र में इस त्यौहार को साहस और संस्कृति का प्रतीक माना जाता है. दही और हल्दी वाले पानी से भरी ऊंचाई पर लटकी मटकियों को फोड़ने के लिये युवाओं की टोलियां सुबह से ही ट्रकों में भरकर शहर की गली, मोहल्लों में घूमती हैं. इंसानी मीनारें या मानव पिरामिड बनाकर मटकियों तक पहुंचा जाता है. मटकी फोड़ने वाले ग्रुप को नकद इनाम मिलता है.


जो तस्वीरें मुंबई का प्रतिनिधित्व करतीं हैं उनमें से एक तस्वीर है गोविंदा त्यौहार की भी है. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मुंबई में बड़े अनोखे अंदाज में मनाया जाता है. ग्वाले साथियों को एक के ऊपर एक खड़ा करके ऊंचाई पर लटके दही के घड़ों तक पहुंचने की कृष्ण की बाल लीलाएं मुंबई की सड़कों पर दिखाई देती हैं.


मुंबई गोकुल बन जाता है और युवक ग्वाले. ऊंचाई पर लटकी मटकियां इन युवाओं को रोमांचित करती हैं और उनके साहस को चुनौती देती हैं. ऐसे में टीम भावना, अनुशासन और आपसी तालमेल से उन्हें इस ऊंचे लक्ष्य तक पहुंचने की हिम्मत मिलती है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा क्योंकि दही हांडी मंडलों की समन्वय समिति ने फैसला किया है कि इस बार यह त्यौहार नहीं मनाया जायेगा.


इस बार 12 अगस्त को जन्माष्टमी है लेकिन ऐसे नजारे शहर में देखने नहीं मिलेंगे. कोरोना के मद्देनजर तमाम गोविंदा मंडलों की समन्वय समिति ने एक बैठक की. समिति के अध्यक्ष बाला पडेलकर ने बताया कि सर्वसम्मति से यह फैसला लिया गया है कि इस बार ये त्यौहार नहीं मनाया जाएगा.


मानव पिरामिड बनाये जाते वक्त सोशल डिस्टेंसिंग रख पाना मुमकिन नहीं है. ऊंचा पिरामिड बनाने के लिए लोगों को एक दूसरे के करीब खड़े होना पड़ता है. इसके अलावा इस खेल को देखने के लिए भीड़ भी काफी जुटती है.


गविंदा मंडलों ने फैसला किया है कि इस बार मटकी फोड़ने के लिए शहर की गली-गली घूमने के बजाय वे अपने कार्यालय मे ही भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करेंगे और प्रसाद बांटेंगे. गोविंदा के बाद आने वाला सबसे बड़ा त्यौहार गणेशोत्सव भी इस बार सादगी से मनाया जायेगा. मुंबई शहर अब भी देश का कोरोना कैपिटल बना हुआ है और ऐसे में उत्सव मंडल कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते.


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