पटना: प्रशांत किशोर (पीके) ने पटना विश्वविद्यालय (पीयू) में जेडीयू को एतिहासिक जीत दिलाकर ये साबित कर दिया है कि नीतीश कुमार ने उन्हें पार्टी की बड़ी जिम्मेदारी सौंपकर कोई गलती नहीं की है. इस साल के अक्टूबर से प्रशांत युवाओं को अपने साथ जोड़ने की मुहिम चला रहे हैं. ऐसे में उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पीयू में हो रहे चुनाव में जेडीयू की पहचान बनाने की थी. पीयू में कुल बीस हज़ार मतदाताओं में सिर्फ 127 छात्र ऐसे थे जो एक्टिव मेम्बर थे जबकि एबीवीपी के सत्रह सौ एक्टिव मेम्बर थे. इसके बावजूद जेडीयू के उम्मीदवार की रिकार्ड मार्ज़िन से हुई जीत का श्रेय प्रशान्त किशोर को ही जाता है.


प्रशान्त किशोर ने आखिर ये जीत कैसे दिलाई. क्या रही उनकी रणनीति? दरअसल प्रशांत जानते थे कि जिस सत्ताधारी दल के नेता नीतीश कुमार हैं उनका छात्र विंग सिर्फ औपचारिक रूप से ही चुनाव लड़ता है. पटना विश्वविद्यालय में कभी चुनाव को किसी नेता ने गंभीरता से नहीं लिया. ऐसे में पार्टी के विश्विद्यालय से जुड़े नेताओं की बैठक बुलाई गई और आकलन किया गया. सभवनाएं तलाशी गई, तो पता चला कि एबीवीपी , एनसयूआई, एसएफआई और आरजेडी का छात्रों पर काफी प्रभाव है. हालांकि, बाद में पप्पू यादव का भी दबदबा बढ़ा. ऐसे में उन छात्र नेताओं की तलाश की जो एबीवीपी से नाराज़ है और छवि अच्छी है.


इसी के तहत पीके ने पीयू के पूर्व छात्र अध्यक्ष दिव्यांशु भारद्वाज को पार्टी में मिला लिया. उन्हें पार्टी ने विधान सभा चुनाव में टिकट देने का भरोसा भी दिलाया. इससे एबीवीपी में दरार होना तय हो गया है. फिर योग्य उम्मीदवार की खोज हुई. एबीवीपी ने अगड़ी जाति को उम्मीदवार बनाया तो प्रशांत किशोर ने भी भूमिहार को ही उम्मीदवार बनाया. अब मुकाबला बराबर का हो गया. इसी बीच एबीवीपी के सदस्यों ने दिव्यांशु की पिटाई कर दी. छात्र संघ चुनाव के मुद्दे ने तूल पकड़ लिया. एबीवीपी और जेडीयू की इस लड़ाई में बाकी छात्र संगठन किनारे हो गए. मुकाबला सीधा हो गया. हालांकि, एबीवीपी ने पीके पर इस चुनाव में धांधली करने का आरोप लगाया औऱ गाड़ी पर पथराव भी किया, लेकिन एबीवीपी के आक्रामक व्यवहार का फायदा पीके को ही मिला और जेडीयू के उम्मीदवार की जीत हुई.


इस जीत की बड़ी बातें-


नीतीश कुमार ने जब बिहार में 2005 में सत्ता संभाली थी तब जिन लोगों की उम्र 10-12 साल की थी आज वो 22 - 25 साल के हो गए हैं. उन्हें लालू राज के बारे में कोई जानकारी नही थीं. ऐसे में युवाओं को अपनी ओर लाने का यही मौका था. जिसमें पहली सीढ़ी पीयू का चुनाव रहा. अब बिहार में सिर्फ बीजेपी नहीं बल्कि जेडीयू का भी प्रभाव बढ़ेगा. इस पैनल में जो उम्मीदवार जीते वो अगड़ी जाति के हैं. ऐसा माना जाता रहा है कि बीजेपी का अगड़ी जाति पर प्रभाव रहा है. इस चुनाव में मिली जीत के ज़रिए वोटरों में सेंधमारी हुई है.


प्रशांत किशोर कैंप के सूत्र बताते हैं कि जीत के बाद मुस्लिम संगठनों की तरफ से कई बधाई के फोन आए. जानकारों का मानना है कि एबीवीपी को हराने से उत्साहित जेडीयू को आगे उनका झुकाव बढ़ सकता है. जेडीयू में सिर्फ एक ही नेता है नीतीश कुमार लेकिन बीजेपी में इसके उलट कई नेता हैं और संगठन मज़बूत है. इस जीत के बाद संगठन को मजबूत करने की कोशिश को नया मुकाम मिलेगा. वहीं, प्रशांत किशोर के पार्टी में आने से परेशान लोगों के लिए यह जीत एक धक्का है. ऐसे लोग जो पीके को बुलबुला मान रहे थे उनकी बोलती अब बंद हो गई है. अब पीके की रणनीति से जीत ने संदेश दे दिया है कि वो एक नेता के तौर पर उभर रहे हैं.


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