पटना: बाड़मेर से गिरफ़्तार किए गए पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित के मामले में बिहार के डीजीपी ने जांच के आदेश दे दिए हैं. इसी रविवार को राजस्थान के बाड़मेर से निजी चैनल के स्थानीय पत्रकार दुर्ग सिंह को एससी/एसटी अधिनियम के तहत गिरफ़्तारी हुई थी. इसके बाद उन्हें पटना के स्पेशल एससी/एसटी कोर्ट में पेश किया गया और फिर 1 सितम्बर तक न्यायिक हिरासत में पटना के बेऊर जेल भेज दिया गया.


दरअसल पटना के स्पेशल एससी/एसटी कोर्ट में बीते 31 मई को नालंदा जिले के टेटुआ के रहने वाले राकेश पासवान नाम के शख़्स ने आवेदन दिया था कि उसके साथ बाड़मेर के रहने वाले दुर्ग सिंह ने मारपीट और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए गाली-गलौज की है. आवेदन में कहा गया है कि दुर्ग सिंह का बाड़मेर में गिट्टी का व्यवसाय है जहां काम करने के लिए वो पटना से मज़दूरों को ले जाते थे.


राकेश पासवान ने आवेदन में दावा किया है कि दुर्ग सिंह उसे भी छह महीने पहले बाड़मेर ले गए थे जहां वो पत्थर तोड़ने का काम करता था. आवेदन में कहा गया है कि दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने उसकी मज़दूरी का 72 हज़ार रुपए हड़प लिया और उसे मज़दूरी का एक रुपया भी नहीं दिया. जब राकेश अपने पिता की तबियत ख़राब होने पर पटना वापस आया तो 15 अप्रैल को दुर्ग सिंह भी पटना आया और राकेश पासवान को वापस बाड़मेर चलने को कहा. राकेश के मना करने पर दुर्ग सिंह ने उसे धमकाया. आवेदनकर्ता का ये भी दावा है कि उसकी वजह से दुर्ग सिंह के बहुत से मज़दूर काम छोड़कर बिहार वापस आ गए थे जिसको लेकर दुर्ग सिंह काफ़ी नाराज़ था.


राकेश पासवान ने अपने आवेदन में दावा किया है कि 7 मई को दुर्ग सिंह राजपुरोहित चार अन्य लोगों के साथ पटना के दीघा आए और राकेश पासवान को बीच सड़क पर जूते से मारा-पीटा और जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए गाली-गलौज की. इतना ही नहीं आवेदन में राकेश पासवान की तरफ़ से ये भी दावा किया गया है कि उसे गाड़ी में बैठाकर ज़बरदस्ती ले जाने की भी कोशिश की गई लेकिन स्थानीय लोगों के बीच-बचाव की वजह से उसकी जान बच पाई. राकेश पासवान के इस आवेदन में सुरेश प्रसाद और संजय सिंह नाम के दो गवाहों का भी ज़िक्र किया गया है जो घटना के वक़्त वहां मौजूद थे.


इसी आवेदन के आधार पर पटना के स्पेशल एससी/एसटी कोर्ट ने दुर्ग सिंह की गिरफ़्तारी का आदेश जारी कर दिया और अब दुर्ग सिंह पटना के बेऊर जेल में बंद हैं. लेकिन दुर्ग सिंह की गिरफ़्तारी के बाद से ही एससी/एसटी क़ानून के दुरुपयोग का दावा किया जा रहा है. ख़ुद दुर्ग सिंह राजपुरोहित और उनके पिता का दावा है कि उन्हें फंसाया गया है क्योंकि दुर्ग सिंह इससे पहले कभी पटना आया ही नहीं. दुर्ग सिंह और उनके पिता का ये भी दावा है कि वो पिछले 18 साल से पत्रकारिता कर रहा है और इसके अलावा उसका दूसरा कोई भी व्यवसाय नहीं है. दावा तो ये भी किया जा रहा है कि दुर्ग सिंह राजपुरोहित को उसकी निष्पक्ष पत्रकारिता की सज़ा मिल रही है.


दावे अपनी जगह है लेकिन आख़िर इस पूरे मामले की सच्चाई क्या है ये जानने की कोशिश एबीपी न्यूज़ ने की. सबसे पहले दुर्ग सिंह राजपुरोहित की फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल खंगाली, दुर्ग सिंह अपने फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर काफ़ी एक्टिव रहे हैं. अमूमन एक दिन में दुर्ग सिंह 5-10 पोस्ट जरूर करते रहे हैं. फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल का मुआयना करने पर पता चला कि दुर्ग सिंह एक निजी चैनल में रिपोर्टिंग करने के साथ ही ख़ुद की भी न्यूज़ वेबसाइट चलाते हैं.


अब बात 7 मई की जिस दिन राकेश पासवान के दावों के मुताबिक़ दुर्ग सिंह अपने चार साथियों के साथ पटना आकर राकेश के साथ मारपीट और जान लेने की कोशिश की. दुर्ग सिंह की फेसबुक पटाइमलाइन तलाशने के दौरान 7 मई की कई पोस्ट नजर आई. दरअसल 7 मई को ही बाड़मेर में कथित लव जिहाद के मामले को लेकर हिंदू संगठनों की तरफ़ से बड़ा विरोध प्रदर्शन किया गया था और ख़ुद दुर्ग सिंह राजपुरोहित ने उसे कवर भी किया था.


उस विरोध प्रदर्शन की स्टोरी दुर्ग सिंह ने न सिर्फ़ अपने फ़ेसबुक पर शेयर की थी बल्कि वो ख़ुद वहां मौजूद भी थे. इसकी पुष्टि उस दिन के वीडीयो में दुर्ग सिंह की मौजूदगी से होती है, ये हिंदू आक्रोश रैली दिन में तक़रीबन 11 बजे हुई थी. इतना ही नहीं उसी शाम दुर्ग सिंह ने बाड़मेर में ही एक ‘open mike event’ में भी हिस्सा लिया था और उसे ख़ुद अपने फेसबुक से लाइव भी किया था. सिर्फ़ 7 मई ही नहीं बल्कि आवेदन में 28 अप्रैल का भी ज़िक्र किया गया है जबकि उस दिन भी दुर्ग सिंह ने बाड़मेर एसपी ऑफिस की छत गिरने की स्टोरी कवर की है. अब इसके आधार पर ये सवाल उठाया जा रहा है कि एक शख्स दो जगहों पर एक समय में कैसे हो सकता है?


वहीं एबीपी न्यूज़ ने आवेदन देने वाले राकेश पासवान से भी बात करने की कोशिश की हालांकि वो नहीं मिले. लेकिन सूत्र राकेश पासवान के राजस्थान जाने पर ही सवाल उठा रहे हैं. हालांकि सूत्रों का दावा है कि कुछ महीने पहले तक राकेश पासवान इस मामले के गवाह संजय सिंह के यहां काम करते थे. घटनाक्रम को देखते हुए इसपर कई सवाल उठाए जा रहे थे, ऐसे में बिहार डीजीपी ने इस पूरी जांच के आदेश दिए, ताकि मामले की सच्चाई सामने आ सके.