लखनऊ: कर्नाटक के बाद अब सबकी नज़रें कैराना के लोकसभा उप चुनाव पर हैं जहां बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता की अग्नि परीक्षा होगी. यूपी की इस लोकसभा सीट पर बीजेपी की मृगांका सिंह और राष्ट्रीय लोक दल की तबस्सुम हसन में कांटे की टक्कर है.


बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद यहां चुनाव हो रहा है. 28 मई को वोटिंग होगी और 31 तारीख को नतीजे आएंगे. गोरखपुर और फूलपुर चुनाव हारने के बाद बीजेपी के लिए करो या मरो जैसे हालात हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ 22 और 24 मई को यहां चुनावी रैलियां करेंगे.


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समाजवादी पार्टी की नेता तबस्सुम हसन आरएलडी की टिकट पर कैराना से चुनाव लड़ रही हैं. जाट और मुस्लिम वोटरों को एकजुट करने के लिए ऐसा किया गया है. मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद से ही दोनों बिरादरी में छत्तीस का रिश्ता रहा है.


कांग्रेस ने भी शुरुआती आनाकानी के बाद आरएलडी उम्मीदवार का समर्थन कर दिया है. बीएसपी ने उप चुनाव लड़ने से हाथ खड़े कर दिए हैं. ऐसे हालात में तबस्सुम हसन अब विपक्ष की साझा उम्मीदवार बन गयी हैं. उनके पीछे आरएलडी, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस की ताकत है.


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लेकिन ग्राउंड पर विपक्ष की एकता नहीं दिख रही है. आरएलडी के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है. पिता-पुत्र गांव-गांव घूम रहे हैं. चौधरी की इज्जत दांव पर है.


पिछले लोक सभा चुनाव में आरएलडी अपना खाता तक नहीं खोल पायी थी. विधानसभा चुनाव में एक ही सीट पर जीत मिली और वो विधायक भी बीजेपी में चले गए. पार्टी के प्रवक्ता और राष्ट्रीय सचिव साहेब सिंह भी तीन दिन पहले बीजेपी कैंप में चले गए.


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समाजवादी पार्टी के कई नेताओं ने कैराना में डेरा डाल दिया है लेकिन पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के वहां चुनाव प्रचार करने का अभी कोई कार्यक्रम नहीं बना है. जिस तरह से मायावती ने बीएसपी नेताओं की ड्यूटी फूलपुर और गोरखपुर में लगाई थी, अब तक ऐसा कुछ कैराना में नहीं दिख रहा है.


बीएसपी के समर्थन से समाजवादी पार्टी दोनों उप चुनाव जीत पायी थी. कांग्रेस ने भी आधे अधूरे मन से आरएलडी को समर्थन दिया है. इलाके में पार्टी के सबसे ताकतवर नेता इमरान मसूद और हसन परिवार में पुरानी दुश्मनी रही है. सबसे बड़ी बात ये है कि ना तो मायावती और ना ही अखिलेश यादव , चौधरी अजीत सिंह को भरोसे का साथी मानते हैं.