नोएडा: ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में कल देर रात बड़ा हादसा हो गया. दो बिल्डिंग गिर गईं. इन इमारतों में उस वक्त करीब 30-35 लोग थे. एनडीआरएफ की टीमें मौके पर हैं और बचाव अभियान चलाया जा रहा है. हालांकि अब लोगों के बचे होने की उम्मीद काफी कम है. चलिए आपको इसी शाहबेरी गांव के बारे में बताते हैं.


एनएच-24 पर दिल्ली से मेरठ जाते वक्त लालकुआं के पास है शाहबेरी गांव. इस इलाके की लोकेशन काफी अच्छी है. दिल्ली से 20 मिनट की दूरी है. पास ही में क्रॉसिंग रिपब्लिक है जहां ऊंची-ऊंची इमारतें हैं. बड़े बिल्डरों ने इन इमारतों को बनाया है और महंगे दामों पर बेचा है.


इसके पास ही है शाहबेरी गांव जहां छोटे बिल्डरों ने जाल फैला रखा है. शाहबेरी गांव एक वक्त में खेती के लिए जाना जाता था. लेकिन अब यहां खेती नहीं होती बल्कि रेत उड़ती रहती है. हर वक्त कंस्ट्रक्शन का काम चलता रहता है.


छोटी और संकरी गलियां, बिल्डिंगों की परछाई एक-दूसरे पर पड़ती है. अंदर जो लोग रहते हैं उन्हें ना हवा मिलती है और ना ही धूप. लेकिन फिर भी लोग यहां घर खरीदना चाहते हैं. कारण है पैसे, दरअसल बड़े बिल्डर के फ्लैट में जितना स्पेस 50 लाख का है उतना ही स्पेस यहां 20 से 25 लाख का है.



नौकरीपेशा लोग, मध्यम आय वर्ग के लोग यहां रहते हैं. पार्किंग की भी बहुत परेशानी है. बिल्डिंग्स के नीचे जो पार्किंग स्पेस दिया गया है वह कम है और गाड़ियां ज्यादा. लिहाजा लोग अक्सर पार्किंग को लेकर झगड़ा करते नजर आते हैं.


जैसे है आप इस गांव में घुसेंगे बहुत से टीनेजर आपको घेर लेंगे. सभी आपको अपनी कंस्ट्रक्शन साइट दिखाना चाहेंगे. आपको घर का सपना बेचना चाहेंगे. आप जब इनमें से किसी के साथ उसके ऑफिस पहुंचेंगे तो वहां एसी में बैठा कर आपको कॉफी-चाय पिलाई जाएगी और साथ ही नक्शा, तस्वीरें दिखाई जाएंगी.


आप साइट देखना चाहेंगे तो आपको वहां भी ले जाया जाएगा. बताया जाएगा कि काम खत्म होने पर तस्वीर जैसा ही दिखाई देगा. बिल्डर आपको ये भी बताएगा कि वो 90 प्रतिशत तक बैंक लोन भी करा देगा. कागजी काम भी सारा करा देगा. कहा जाएगा कि आपको वही सुविधाएं मिलेंगी जो बड़े बिल्डर के पास मिलती हैं.



कुछ लोग तो 25 लाख में फ्लैट में एसी और फर्नीचर तक देने की बातें करते हैं. और बस यहीं मध्यमवर्गीय लोग अपनी जमापूंजी इनके हाथों में सौंप देते हैं. अंधेरे और सीलन को नजरअंदाज कर देते हैं. छोटी और संकरी गलियों को भूल जाते हैं, सड़क और सीवर पर ध्यान नहीं देते, पार्किंग की समस्या पर गौर नहीं करते.


साल 2011 में यहां करीब 1200 लोगों की आबादी थी. कोर्ट ने यहां अधिग्रहण पर रोक लगा दी थी जिसके बाद बड़े बिल्डर यहां जमीन नहीं ले पाए. कई किसान मुआवजे का पैसा ले चुके थे जिन्होंने पैसा वापस नहीं किया.


यहां छोटे बिल्डरों ने और अमीर किसानों ने (जो अब बिल्डर बन गए हैं) कई-कई मंजिल की बिल्डिंग बना कर बेचना शुरू कर दिया. छोटे किसानों की जमीनें खरीद ली गईं और जिन जमीनों पर अनाज उगाया जाना था वहां बन गए फ्लैट.