प्रयागराज: प्रयागराज में अगले साल होने वाले कुंभ मेले को लेकर तैयारियां जोरों पर हैं. इस बार पवित्र संगम में करोड़ों तीर्थयात्रियों के आने की संभावना है. प्रयागराज कुंभ में अनेक कर्मकाण्ड हैं पर उनमें स्नान कर्म कुंभ के कर्मकाण्डों में से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है. ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में डुबकी से सारे पाप कट जाते हैं. यहां स्नान करने वाला मनुष्य अपने साथ-साथ अपने पूर्वजों को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर देता है और मोक्ष को प्राप्त हो जाता है. ऐसे में ये जान लेना भी जरूरी है कि कुंभ में पवित्र और शाही स्नान कौन-कौन से हैं और उनका क्या महत्व है.


राज्य सरकार के मुताबिक, 15 जनवरी (मकर संक्रांति) को 1.2 करोड़, 21 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को 55 लाख, 4 फरवरी (मौनी अमावस्या) को 3 करोड़, 10 फरवरी (बसंत पंचमी) को 2 करोड़, 19 फरवरी (माघी पूर्णिमा) को 1.6 करोड़ और 4 मार्च (महाशिवरात्रि) को 60 लाख श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है.

15 जनवरी मकर संक्रांति: इसे कुंभ की शुरूआत माना जाता है. मकर संक्रांति माघ मास का पहला दिन होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. इस दिन स्नान का अपना ही एक महत्व है. मकर संक्रांति वैसे तो पूरे देश में मनाई जाती है लेकिन संगम नगरी इलाहाबाद में इसका ख़ास महत्व है. कहा जाता है की मकर संक्रांति पर ख़ुद तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी में आकर स्नान व पूजा अर्चना करते हैं. देवों की मौजूदगी में संगम स्नान का पुण्य पाने के लिए ही इस बार भी श्रद्धालुओं की भीड़ आस्था की डुबकी लगाएगी.

21 जनवरी पौष पूर्णिमा: भारतीय पंचांग के पौष मास के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को पौष पूर्णिमा कहते हैं. पूर्णिमा को ही पूर्ण चन्द्र निकलता है. कुंभ मेला की अनौपचारिक शुरूआत इसी दिवस से चिन्हित की जाती है. इसी दिवस से कल्पवास की शरुआत भी होती है.

4 फरवरी मौनी अमावस्या: मौनी अमावस्या पर संगम में स्नान व दान पुण्य का खास महत्व है. स्नान के बाद तर्पण से पूवजरें को शांति मिलती है. यह व्यापक मान्यता है कि इस दिन ग्रहों की स्थिति पवित्र नदी में स्नान के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है. इसी दिन प्रथम तीर्थांकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और यहीं संगम के पवित्र जल में स्नान किया था. इस दिन मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ होती है.

10 फरवरी बसंत पंचमी: हिन्दू मान्यता के अनुसार विद्या की देवी सरस्वती के अवतरण इसी दिन हुआ था. बसंत पंचमी का दिन ऋतु परिवर्तन का संकेत भी है. कल्पवासी बसंत पंचमी के महत्व को चिन्हित करने के लिए पीले वस्त्र धारण करते हैं.

19 फरवरी माघी पूर्णिमा: कहा जाता है कि यह दिन देवताओं के गुरू बृहस्पति की पूजा से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन हिन्दू देवता गंधर्व स्वर्ग से पधारे थे. इस दिन पवित्र घाटों पर तीर्थयात्रियों की बाढ़ इस विश्वास के साथ आ जाती है कि वे सशरीर स्वर्ग की यात्रा कर सकेगें.

4 मार्च महाशिवरात्रि: महाशिवरात्रि के दिन पवित्र संगम का आखिरी स्नान होता है. यह दिवस कल्पवासियों का अन्तिम स्नान पर्व है और सीधे भगवान शंकर और माता पार्वती से जुड़ा है. इस दिन स्नान का भी बहुत महत्व है. भगवान शंकर और माता पार्वती से सीधे जुड़ाव के नाते कोई भी श्रद्धालु शिवरात्रि के व्रत ओर संगम स्नान से वंचित नहीं होना चाहता. कहते हैं कि देवलोक भी इस दिन का इंतजार करता है.

नोट: ये सारी जानकारी www.kumbh.gov.in से ली गई है. ये कुंभ मेला 2019 की आधिकारिक वेबसाइट है. ज्यादा जानकारी के लिए आप इस पर जा सकते हैं.