प्रयागराज: पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ ही संगम की रेती पर एक महीने का कल्पवास भी शुरू हो गया. बता दें कि तकरीबन दस से बारह लाख श्रद्धालु कुंभ में लगातार एक महीने तक रूककर नियम व परम्पराओं के मुताबिक़ संगम स्नान करेंगे. कल्पवास का कुंभ में बड़ा महत्व होता है. कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर ध्यान करना. माना जाता है कि कल्पवास का समय पौष मास के शुक्लपक्ष से माघ मास के एकादसी तक होता है.
21 नियमों का पालन करना जरूरी
पुराणों की माने तो कल्पवास करने वालों को 21 नियमों का पालन करना जरूरी होता है. इस 21 नियमों में सत्यवचन, अहिंसा, इन्द्रियों का शमन, सभी प्राणियों पर दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग, सूर्योदय से पूर्व शैय्या-त्याग, नित्य तीन बार सुरसरि-स्न्नान, त्रिकालसंध्या, पितरों का पिण्डदान, यथा-शक्ति दान, अन्तर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिन्दा त्याग, साधु सन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न कराना शामिल है.
कब से शुरू हुआ कल्पवास
कल्पवास की शुरुआत की बात करें तो यह वेदकालीन अरण्य संस्कृति की देन है. यानी यह हजारों साल से चला आ रहा है. ऐसी मान्यता है कि जब तीर्थ प्रयाग में कोई शहर नहीं था तब यह भूमि ऋषियों की तपोस्थली थी. प्रयाग में गंगा-जमुना के आसपास घना जंगल था. इस जंगल में ऋषि-मुनि ध्यान और तप करते थे. ऋषियों ने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा.
क्या है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास करता है उसका अगला जन्म राजा के रूप में होता है. साथ ही कहा जाता है कि मोक्ष भी उसे ही मिलती है जो कल्पवास करता है.