प्रयागराज: प्रयागराज के कुंभ मेले में सुर्ख़ियों में रहने वाले किन्नर अखाड़े के संत लोगों के बीच सिर्फ आकर्षण का केंद्र ही नहीं होते, बल्कि यह नागा सन्यासियों की तरह देर रात तक कठिन साधना भी करते हैं. किन्नर अखाड़े के शिविर में अक्सर ही रात को ऐसी अघोर साधना की जाती है, जो न सिर्फ बेहद कठिन होती है, बल्कि काफी घातक भी मानी जाती है.


आग की लपटों में धधकते हवन कुंड के सामने किन्नर अखाड़े के संत जब गले में नरमुंडों की माला पहनकर नगाड़ों के बीच शमशान काली की पूजा कर अघोर साधना करते हैं, तो देखने वालों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं. ख़ास यह है कि किन्नर संतों की यह अघोर साधना खुद अपने लिए नहीं बल्कि देश व समाज के कल्याण व उसकी तरक्की के लिए होती है.


तंत्र साधना में इस तरह की पूजा को गुप्त तरीके से लोगों की भीड़ से अलग सुनसान जगहों पर किये जाने की परम्परा है, लेकिन किन्नर अखाड़े में आधी रात को होने वाली इस पूजा में श्रद्धालुओं को इसे देखने व इसमें शामिल होने की छूट रहती है.


आधी रात को महामंडलेश्वर भवानी मां सोलह श्रृंगार के बाद जब गले में नरमुंडों की माला पहनकर आग की लपटों के सामने काली पूजा करते हुए अपनी साधना शुरू करती हैं तो कड़कड़ाती ठंड में भी वहां का माहौल गर्म हो जाता है. शरीर पर भभूत लपेटे बटुक इस दौरान ढोल व नगाड़े पीटकर साधना को पूरा कराते हैं.


यह अघोर पूजा आधी रात के बाद शुरू होकर तकरीबन दो घंटे तक चलती है. साधना ख़त्म होने पर दुनिया में सुख - शांति व समृद्धि की कामना की जाती है.


तंत्र विद्या में यह बेहद कठिन साधना मानी जाती है, जो नियमों व परम्पराओं का पूरी तरह पालन नहीं होने पर कई बार घातक भी साबित होती है, लेकिन किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर भवानी मां का कहना है कि वह लोग निजी तौर पर कुछ सिद्धियां पाने के बजाय सर्वमंगल की कामना के लिए अघोर पूजा करती हैं, इसलिए आम लोगों को भी इसमें शामिल होने व इसे देखने की छूट रहती है.


किन्नर अखाड़े में होने वाली पूजा में जानवरों के बजाय कद्दू व अन्न की बलि देकर परम्पराओं का पालन किया जाता है. वैसे तो किन्नर अखाड़े के आराध्य महादेव यानी भगवान शिव हैं, लेकिन कुंभ में इसके संत काली पूजा व अघोर साधना कर देश व समाज की खुशहाली की कामना करते हैं.