प्रयागराज: प्रयागराज में अगले साल होने वाले कुंभ की तैयारी जोर-शोर से हो रही है. राज्य सरकार के मुताबिक, 15 जनवरी (मकर संक्रांति) को 1.2 करोड़, 21 जनवरी (पौष पूर्णिमा) को 55 लाख, 4 फरवरी (मौनी अमावस्या) को 3 करोड़, 10 फरवरी (बसंत पंचमी) को 2 करोड़, 19 फरवरी (माघी पूर्णिमा) को 1.6 करोड़ और 4 मार्च (महाशिवरात्रि) को 60 लाख श्रद्धालुओं के आने का अनुमान है. जहां एक तरफ कुंभ की तैयारी जोरों पर हैं वहीं हम आपको बताने जा रहे हैं कि कुंभ में अखाड़ों का क्या महत्व होता है. लेकिन अखाड़ों के बारे में सुनते ही सवाल उठता है कि आखिर ये अखाड़े क्या होते हैं? इनका क्या महत्व है? आइए इस पर विस्तार से चर्चा करें.


अखाड़ा सामाजिक व्यवस्था, एकता और संस्कृति तथा नैतिकता का प्रतीक है. 'अखाड़ा' शब्द 'अखण्ड' शब्द का अपभ्रंश है जिसका अर्थ न विभाजित होने वाला है. इन अखाड़ा मठो की सबसे बड़ी जिम्मेदारी समाजिक मुल्यों को बनाए रखना होता है. ये अखाड़े कुंभ या अर्धकुंभ में साधु-संतों के अलग-अलग संगठन में विभाजित होते हुए भी एकता के प्रतीक होते हैं. इन अखाड़ों की प्राचीन काल से ही स्नान पर्व की परंपरा चली आ रही है. आइए अखाड़े कितने प्रकार के होते हैं इस पर चर्चा करते हैं.


कितने प्रकार के होते हैं अखाड़े


अखाड़ों को इष्ट देव के आधार पर विभाजित किया जाता है. फिलहाल इन्हें तीन अलग-अलग तरह में विभाजित किया जा सकता है. ये तीन अखाड़े हैं कि शैव अखाड़े, वैष्णव अखाड़े और उदासीन अखाड़ा. आइए जानते हैं तीनों में अंतर क्या है


1-शैव अखाड़े- इस अखाड़े के लोग भगवान शिव को मानने वाले होते हैं. वह शिव की पूजा विभिन्न तरीकों से करते हैं.
2-वैष्णव अखाड़े- इस अखाड़े के लोग जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है. विष्णू की साधना करते हैं
3-उदासीन अखाड़ा- यह अकाखाड़ा सिक्ख सम्प्रदाय के आदि गुरु श्री नानकदेव के पुत्र श्री चंद्रदेव जी को उदासीन मत का प्रवर्तक माना जाता है. इस संप्रदाय के अनुयाई ‘ॐ’ की उपासना करते हैं.


बता दें कि अखाड़ों में आपसी सामंजस्य बनाने और आंतरिक विवादों को सुलझाने के लिए अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् का गठन किया गया है.


क्या होता है दण्डी बाड़ा


जो सन्यासी हाथ में ब्रम्ह दण्ड धारण करें उन्हें दण्डी संन्यासी कहा जाता है. दण्डी संन्यासियों का संगठन दण्डी बाड़ा के नाम से जाना जाता है. “दण्ड संन्यास” सम्प्रदाय नहीं अपितु आश्रम परम्परा है. यह अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों को होता है.


क्या होता है आचार्य बाड़ा


आचार्य बाड़ा सम्प्रदाय को रामानुज सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है. इस सम्प्रदाय के पहले आचार्य शठकोप हुए जो सूप बेचा करते थे. उनके शिष्य मुनिवाहन हुए. तीसरे आचार्य यामनाचार्य हुए. चौथे आचार्य रामानुज हुए. उन्होंने कई ग्रन्थ बनाकर अपने सम्प्रदाय का प्रचार किया. तभी से इस सम्प्रदाय का नाम श्री रामानुज सम्प्रदाय हो गया. इस सम्प्रदाय के अनुयायी नारायण की आराधना करते है और लक्ष्मी को अपनी देवी मानते हैं.


प्रयागवालों


प्रयागराज के सबसे प्राचीन निवासी होने के कारण इनका नाम प्रयागवाल पड़ा. कुम्भ मेला और माघ मेला में आने वाले तीर्थयात्री प्रयागवाल द्वारा बसाये जाते रहे हैं और वे ही इनका धार्मिक कार्य करते हैं. तीर्थयात्री के धार्मिक गुरु रूप माने जाने वाले इन प्रयागवालों को ही त्रिवेणी क्षेत्र में दान लेने का एक मात्र अधिकार है.