Kumbh Mela 2019: जानिए क्या होता है कुंभ, क्यों है इसमें होने वाले स्नानों का इतना महत्व
ज्योतिष के मुताबिक, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. कुंभ का अर्थ है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न है. कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है.
प्रयागराज: कुंभ में आज पौष पूर्णिमा का पवित्र स्नान है. इसमें हिस्सा लेने के लिए देश के कोने-कोने से लोग संगम तट पर पहुंचे हैं. पर क्या आप जानते हैं कि कुंभ में होने वाले स्नानों का आखिर क्यों इतना महत्व है और इसके पीछे क्या मान्यताएं हैं? कुंभ मेला दुनिया भर में होने वाले धार्मिक आयोजनों में श्रद्धालुओं की संख्या के लिहाज से सबसे बड़ा होता है. कुंभ का पर्व हर 12 साल के अंतराल पर किसी एक पवित्र नदी के तट पर मनाया जाता है. हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी गंगा, यमुना और सरस्वती संगम पर कुंभ मनाया जाता है.
कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता
ज्योतिष के मुताबिक, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. कुंभ का अर्थ है- कलश, ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न है. कुंभ मेले की पौराणिक मान्यता अमृत मंथन से जुड़ी हुई है.
माना जाता है कि देवताओं और राक्षसों ने समुद्र के मंथन से प्रकट होने वाले सभी रत्नों को आपस में बांटने का निर्णय किया. समुद्र के मंथन द्वारा सबसे मूल्यवान रत्न अमृत निकला था जिसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष हुआ.
इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें छलक कर इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिरीं, तब से प्रत्येक 12 सालों के अंतराल पर इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है. 12 साल के मतलब का देवताओं का बारह दिन होता है.
3200 हेक्टेअर से अधिक भूमि पर आयोजित हो रहा है मेला
कुंभ 3200 हेक्टेअर से अधिक भूमि पर आयोजित हो रहा है और इसमें अगले 50 दिनों में 12 करोड़ से अधिक लोगों के शामिल होने की उम्मीद है. पूरे क्षेत्र को नौ जोन और 20 सेक्टरों में बांटा गया है. यहां बीस हजार से अधिक पुलिसकर्मी, छह हजार होमगार्ड, 40 थाने, 58 चौकियां, 40 दमकल स्टेशन, केन्द्रीय बलों की 80 कंपनियां और पीएसी की 20 कंपनियां तैनात की गयी हैं.शाही स्नान- 15 जनवरी, 4 फरवरी और 10 फरवरी
1- मकर संक्राति स्नान- 14 और 15 जनवरी 2-पौष पूर्णिमा स्नान-21 जनवरी 3-पट्लिका एकादशी स्नान-31 जनवरी 4-मौनी अमावस्या-4 फरवरी (दूसरा शाही स्नान) 5-बसंत पंचमी-10 फरवरी 6-माघी पूर्णिमा-19 फरवरी 7-जया एकादशी- 16 फरवरी 8-4 मार्च (तीसरा शाही स्नान)
15 जनवरी मकर संक्रांति: इसे कुंभ की शुरूआत माना जाता है. मकर संक्रांति माघ मास का पहला दिन होता है जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. इस दिन स्नान का अपना ही एक महत्व है. मकर संक्रांति वैसे तो पूरे देश में मनाई जाती है लेकिन संगम नगरी इलाहाबाद में इसका ख़ास महत्व है. कहा जाता है की मकर संक्रांति पर ख़ुद तैंतीस करोड़ देवी-देवता भी गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी में आकर स्नान व पूजा अर्चना करते हैं. देवों की मौजूदगी में संगम स्नान का पुण्य पाने के लिए ही इस बार भी श्रद्धालुओं की भीड़ आस्था की डुबकी लगाएगी.
21 जनवरी पौष पूर्णिमा: भारतीय पंचांग के पौष मास के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को पौष पूर्णिमा कहते हैं. पूर्णिमा को ही पूर्ण चन्द्र निकलता है. कुंभ मेला की अनौपचारिक शुरूआत इसी दिवस से चिन्हित की जाती है. इसी दिवस से कल्पवास की शरुआत भी होती है.
4 फरवरी मौनी अमावस्या: मौनी अमावस्या पर संगम में स्नान व दान पुण्य का खास महत्व है. स्नान के बाद तर्पण से पूवजरें को शांति मिलती है. यह व्यापक मान्यता है कि इस दिन ग्रहों की स्थिति पवित्र नदी में स्नान के लिए सर्वाधिक अनुकूल होती है. इसी दिन प्रथम तीर्थांकर ऋषभ देव ने अपनी लंबी तपस्या का मौन व्रत तोड़ा था और यहीं संगम के पवित्र जल में स्नान किया था. इस दिन मेला क्षेत्र में श्रद्धालुओं की सबसे अधिक भीड़ होती है.
10 फरवरी बसंत पंचमी: हिन्दू मान्यता के अनुसार विद्या की देवी सरस्वती के अवतरण इसी दिन हुआ था. बसंत पंचमी का दिन ऋतु परिवर्तन का संकेत भी है. कल्पवासी बसंत पंचमी के महत्व को चिन्हित करने के लिए पीले वस्त्र धारण करते हैं.
19 फरवरी माघी पूर्णिमा: कहा जाता है कि यह दिन देवताओं के गुरू बृहस्पति की पूजा से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि इसी दिन हिन्दू देवता गंधर्व स्वर्ग से पधारे थे. इस दिन पवित्र घाटों पर तीर्थयात्रियों की बाढ़ इस विश्वास के साथ आ जाती है कि वे सशरीर स्वर्ग की यात्रा कर सकेगें.
4 मार्च महाशिवरात्रि: महाशिवरात्रि के दिन पवित्र संगम का आखिरी स्नान होता है. यह दिवस कल्पवासियों का अन्तिम स्नान पर्व है और सीधे भगवान शंकर और माता पार्वती से जुड़ा है. इस दिन स्नान का भी बहुत महत्व है. भगवान शंकर और माता पार्वती से सीधे जुड़ाव के नाते कोई भी श्रद्धालु शिवरात्रि के व्रत ओर संगम स्नान से वंचित नहीं होना चाहता. कहते हैं कि देवलोक भी इस दिन का इंतजार करता है.
नोट: शाही स्नानों से जुड़ी सारी जानकारी www.kumbh.gov.in से ली गई है. ये कुंभ मेला 2019 की आधिकारिक वेबसाइट है. ज्यादा जानकारी के लिए आप इस पर जा सकते हैं.