प्रयागराज: अपने अंदर अकूत दिव्यता और भव्यता समेटे कुंभ मेले का आगाज हो चुका है. वैसे तो वहां देखने को बहुत कुछ है पर खुद की अलग संवाद शैली और अनूठे अभिनय के लिए जंगम जोगियों की टोली कुंभ नगरी में आकर्षण के केंद्र में है. यह टोली अखाड़ों की गौरव गाथा के साथ ही भगवान शिव का गुणगान बहुत ही रोचक ढंग से सुनाते हैं. संगम की रेत पर नागा संन्यासियों के साथ संतों-महंतों, महांडलेश्वरों की निराली दुनिया के बीच भजन करके आजीविका चलाने वाले जंगम साधु शिवनाम की अलख जगाने में जुटे हैं.
मान्यता है कि इनका जन्म भगवान शिव की जांघ से हुआ है इसलिए इन्हें जंगम जोगी कहा जाता है. बता दें कि जंगम परिवार का एक बच्चा जोगी जरुर बनता है. ये लोग देश के अलग अलग हिस्सों में घूमकर शिव भजन सुनाते हैं और अपना पेट पालते हैं. देश के जिस भी कोने में कुंभ लगता हैं ये वहां जरुर पहुंचते हैं.
मूलत: शैव संप्रदाय से जुड़े जंगम साधुओं की इस टोली में हर एक को शिवपुराण की सभी कथाएं कंठस्थ हैं. जंगम साधुओं की वेशभूषा सिखों से मिलती-जुलती है. यह सिर पर दशनामी पगड़ी के साथ काली पट्टी पर तांबे-पीतल से बने गुलदान में मोर के पंखों का गुच्छ धारण करते हैं. कपड़े पर सामने की ओर सर्प निशान के अतिरिक्त कॉलर वाले कुर्ते पहने और हाथ में खझड़ी, मजीरा, घंटियां लिए साधुओं का दल अखाड़ों की छावनी में आजकल अलग ही दिख रहा है.
कुरुक्षेत्र से आए जंगम साधु मूलत: दशनाम अखाड़ों के भाट हैं, जो अपनी अलग, अनूठी अभिनय संवाद शैली में अखाड़ों की गौरव गाथा के साथ ही शिव की कथा भी अत्यंत रोचक तरीके से सुनाते हैं. इनका काम दशनाम संन्यास की परंपराओं का गुणगान करना है. ये पूर्वजों से लेकर अब तक की कहानी गायनशैली में इस तरह कहते हैं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है.
टोली के साथ आए गिरि जंगम के अनुसार, प्रत्येक जंगम जोगी को शिवपुराण की कथा याद है. भगवान शिव ने कहा था कि कभी माया को हाथ में नहीं लेना, इसलिए दान भी हाथ में नहीं लेते. हम भेंट को हाथ से नहीं लेते, बल्कि अपनी घंटी को उलट करके उसी में दक्षिणा लेते हैं. एक अखाड़े से दूसरे अखाड़े में घूमते, कथा सुनाते जंगम साधुओं का यह क्रम पूरे मेले के दौरान जारी रहेगा.
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